समंदर में भटक रहे इन लाखों मछुआरों की सुध कौन लेगा ?

न्यूज डेस्क

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में हुए लॉकडाउन की वजह से हर कोई परेशान है। लॉकडाउन ने हर तबके को प्रभावित किया है। जहां किसान अपनी फसल बेंच न पाने की वजह से चिंतित हैं तो वहीं एक माह से संमदर में भटक रहे हजारों मछुआरों का संकट बढ़ गया है।

भारत 25 मार्च से लॉकडाउन है। इस दौरान एक अरब की आबादी घरों में बंद है। लॉकडाउन लागू होने के बाद से जो जहां है वहीं रुक गया है। किसी के भी आने-जाने पर मनाही है। इस वजह से समंदर में भी हजारों मछुआरे फंस गए हैं और वह भटकने को मजबूर हैं। लॉकडाउन के चलते समंदर के रास्ते किसी को भी जमीन पर आने नहीं दिया जा रहा है, जिसकी वजह से हजारों मछुआरे अपने घरों को नहीं लौट पा रहे हैं।

इन मछुआरों ने अपने घर जाने की कोशिश की लेकिन जमीन पर रहने वाले लोगों ने उन्हें वापस समंदर में धकेल दिया। जब इन मछुआारों का सब्र जवाब दे गया तो ये महाराष्ट्र  के दो बंदरगाहों पर अपनी नाव लगाकर आने की कोशिश किए लेकिन दोनों जगहों पर अधिकारियों ने उन्हें मना कर दिया।

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इन मछुआरों को उम्मीद थी कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होगा तो वे अपने घर लौट सकेंगे, लेकिन सरकार ने लॉकडाउन में 19 दिन का विस्तार दे दिया। जिसकी वजह से इनकी बेचैनी बढऩे लगी हैं। इन लोगों को जमीन देखे एक माह से ज्यादा समय हो  गया है। 24 मार्च से इन लोगों के आने पर पाबंदी लगी हैं।

महाराष्ट्र  और गुजरात, दोनों जगह मछुआरों की यही कहानी है। मछुआरों ने जब नारगोल में नाव टिकाने की कोशिश की तो स्थानीय लोगों के विरोध के बाद उन्हें वापस समंदर का रास्ता नापना पड़ा। दरअसल लोगों को डर है कि मछुआरें कहीं कोरो नावायरस से संक्रमित हुए तो उनके यहां इस वायरस का खतरा बढ़ जाएगा। थक-हारकर इन लोगों ने उंबरगांव के बंदरगाह पर उतरने की कोशिश की, लेकिन वहां तो हालात और खराब हो गए। स्थानीय लोगों ने उन पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। मजबूरन ये वहां से जाने को मजबूर हो गए।

करीब दो दर्जन नावों में सवार ये मछुआरे आखिरकार महाराष्ट्र  के दहानु डॉक में फंसे हुए हैं। मुंबई से करीब 135 किलोमीटर दूर यही डॉक इन लोगों के लिए आशियाना बना हुआ है। मछुआरों के मुताबिक लॉकडाउन की वजह से समंदर में फंसे ऐसे मछुआरों की संख्या एक लाख से भी ज्यादा है। इन मछुआरों के लिए एक सुकून ये है कि इन्हें खाने-पीने की किल्लत नहीं है।

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ये मामला सिर्फ इन मछुआरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अरब सागर में मछुआरों के ऐसे कई जत्थे इसी तरह फंसे हुए हैं। इनमें से कई तो प्रवासी कामगार है। बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों मछुआरे भी अरब सागर में ऐसे ही नावों में अपनी जिंदगी काट रहे हैं।

लॉकडाउन से पैदा हुई परिस्थितियों के मद्देनजर महाराष्ट्र  माछीमार कृति समिति ने अगले तीन महीनों के लिए मछुआरा परिवारों के लिए मुफ्त राशन की मांग की है। इसके अलावा मछुआरों और मछली श्रमिकों को सरकारी लोन देने की भी मांग समिति द्वारा की गई है।

समुद्र में मानसून के आसपास 61 दिनों के लिए मछली पकडऩे पर प्रतिबंध होता है। मार्च 2017 में केंद्र सरकार ने पूर्वी और पश्चिमी तट पर भारतीय अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ)  में गहरे समुद्र में मछली पकडऩे की गतिविधियों पर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे, जो आज भी लागू होता है।

इस अधिसूचना में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप सहित देश के दोनों तटों पर मत्स्य संसाधनों के संरक्षण और समुद्री सुरक्षा के लिए 61 दिनों का प्रतिबंध लगाया जाता है। इस अवधि के दौरान परम्परागत गैर-मोटर चालित नावों को छोड़कर मछली पकड़ने की सभी गतिविधियों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाता है। आम तौर पर देश के पूर्वी तट पर यह प्रतिबंध 15 अप्रैल से 14 जून तक लागू होता है, जबकि पश्चिमी तट पर यह 1 जून से शुरू होकर 31 जुलाई को समाप्त होता है।

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हाल ही में लॉकडाउन लागू होने के दो हफ्ते बाद 10 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक निर्देश जारी किया था, जिसमें मछली पकडऩे, जलीय कृषि उद्योग के संचालन में छूट दी गई थी। इसमें फीडिंग, रखरखाव, पैकेजिंग, कोल्ड चेन, बिक्री, विपणन, हैचरी, फीड प्लांट, झींगा और मछली उत्पादों की आवाजाही संबंधी गतिविधियां शामिल हैं।

10 अप्रैल के निर्देशों के अनुसार पश्चिमी तट पर मछुआरों के पास मछली पकडऩे की गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए मई अंत तक का समय है, लेकिन देश के पूर्वी तट पर मछली पकडऩे पर प्रतिबंध पहले ही लागू हो चुका है। इस तरह लॉकडाउन की वजह से पूर्वी तट पर मछली पकड़ने वाले मछुआरों की आजीविका को एक तगड़ा झटका लगा है और अब तक सरकार की तरफ से इन मछुआरों के लिए कोई वित्तीय मदद की घोषणा नहीं हुई है।

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