हिसार: कंकालों के DNA अर्क से मिलान को लेकर राखीगढ़ी के 12 लोगों के लिए सैंपल
हड़प्पा कालीन सभ्यता के गांव राखीगढ़ी से निकले कंकालों के डीएनए के अर्क से ग्रामीणों के डीएनए के मिलान के लिए 12 लोगों के सैंपल लिए गए हैं। बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी) लखनऊ के वैज्ञानिकों ने हाल ही में राखीगढ़ी गांव के 12 मूल निवासियों के लार और मल के नमूने लिए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के विशेषज्ञ इन लोगों के डीएनए का राखीगढ़ी से निकले एक पुरुष के कंकाल से लिए गए डीएनए के साथ मिलान करवाएंगे। इसकी रिपोर्ट आने में तीन से चार महीने लग सकते हैं। बता दें कि डेक्कन कॉलेज पुणे ने वर्ष 2015-16 में साइट नंबर 7 पर खोदाई का कार्य किया था, उस समय यहां से कंकाल मिले थे।
बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज लखनऊ के वैज्ञानिक नीरज राय ने गांव के निवासियों के नमूने संग्रह कराए हैं ताकि उनके डीएनए का मिलान गांव में स्थित हड़प्पा कालीन टीले में बरामद कंकालों के डीएनए अर्क से की जा सके। वैज्ञानिक इस डीएनए के माध्यम से यह पता लगाना चाहते हैं कि राखीगढ़ी गांव अब रह रहे लोग और लगभग 5000 साल पहले उसी गांव में रहने वाले लोगों की आनुवंशिकी (जेनेटिक्स) समान थी।
बीएसआईपी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक नीरज ने बताया कि उन्होंने इस गांव के मूल निवासियों से नमूने एकत्र किए हैं। वह नमूनों का विश्लेषण और जांच कर रहे हैं। आधुनिक काल और हड़प्पा काल के दौरान यहां रहने वाले लोगों के डीएनए नमूनों की तुलना के नतीजे आने में तीन से चार महीने लगेंगे। राखीगढ़ी में हड़प्पा युग के टीलों ने दुनिया भर के इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का ध्यान आकर्षित किया था क्योंकि इसे सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे बड़े शहरों में से एक माना जाता है।
परिणाम जानने के लिए ग्रामीण भी काफी उत्सुक
पुरातत्व में गहरी रुचि रखने वाले ग्रामीणों ने कहा कि वे भी अपनी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जानने के लिए उत्सुक हैं। शुरुआत में लगभग एक दशक पहले तक स्थानीय निवासी पुरातत्वविदों की गतिविधियों से अलग-थलग थे लेकिन अब ग्रामीण पुरातत्वविदों की खोज से भलीभांति परिचित हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपने अतीत में भी गहरी दिलचस्पी है जो प्री हड़प्पन यानी लगभग आठ हजार साल पुराना है।