बसपा ने दिए एक बार फिर वापस आने के संकेत, दलितों के साथ मुस्लिम भी लौटे

प्रदेश में नगर निगम चुनावों में भाजपा का पलड़ा भारी है, पिछले चुनावों के मुकाबले भाजपा ने इस बार नगर निगम के साथ साथ नगर पालिका और नगर पंचायतों में भी शानदार प्रदर्शन किया है। परिणामों के अनुसार भाजपा ने नगर निगम की 16 में से 14 सीटों पर जीत दर्ज की है। जबकि पालिका और नगर पंचायत की काफी सीटें भी उसकी झोली में आ गई हैं।
बसपा ने दिए एक बार फिर वापस आने के संकेत, दलितों के साथ मुस्लिम भी लौटेखास बात ये है कि भाजपा के सामने बाकी सभी विपक्षी पार्टियां चारों खाने चित्त दिख रही हैं, केवल बसपा ही भगवा दल के सामने कुछ संघर्ष कर सकी है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पश्चिम यूपी की राजनीति के केंद्र और भाजपा के गढ़ मेरठ में भी मायावती की बसपा ने भाजपा को धूल चटा दी, जहां नीले निशान वाली पार्टी की प्रत्याशी सुनीता वर्मा 234817 वोट पाकर विजेता रहीं।
वहीं भाजपा प्रत्याशी कांता कर्दम को 205235 मत पाकर दूसरे नंबर से ही संतोष करना पड़ा। अलीगढ़ नगर निगम में भी बसपा के मोहम्मद फुरकान 125682 मत पाकर विजेता रहे। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को 10,445 मतों से हराया। सपा और कांग्रेस दोनों के ही प्रत्याशी मुकाबले में कहीं नहीं दिखे।

विधानसभा चुनावों में हार के बाद खुद संभाली संगठन को दुरुस्त करने की कमान

इसके अलावा बाकी निकायों में भी बसपा ने अच्छा प्रदर्शन किया। प्रदेश की 198 नगर पालिकाओं में से बसपा को 29 सीटें मिली हैं। प्रदेशभर में भाजपा को जहां भी कड़ी टक्कर मिली वो बसपा के उम्‍मीदवारों ने ही दी।

बसपा के इस प्रदर्शन को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद पार्टी सुप्रीमो मायावती ने संगठन को दुरुस्त करने के लिए राज्यसभा चुनावों से इस्तीफे का जो दांव चला था वो काम करता दिख रहा है।

मौजूदा निकाय चुनावों में बसपा को जिन सीटों पर हार का मुंह देखना भी पड़ा है वहां भी उसका प्रदर्शन कमतर नहीं रहा। राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद मायावती लगातार संगठन के स्तर पर काम कर रही हैं, इसके लिए उन्होंने कई जगह पार्टी पदाधिकारियों को बदला है तो कई जगह पुराने और विश्वस्त चेहरों को दोबारा कमान सौंपी गई है।

संगठन के प्रति मायावती की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस समय यूपी में निकाय चुनावों की मतगणनना चल रही थी उसी दौरान वह राजस्‍थान में स्‍थानीय कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थीं।

पहले लोकसभा चुनावों में सूपडा साफ और फिर यूपी के विधानसभा चुनावों में बुरी गत के बाद मायावती ने पार्टी को मजबूत करने के ‌लिए खुद ही मोर्चा संभाला। 

बसपा के खाते में वापिस लौटते दिखे दलित और मुस्लिम

यूपी के साथ ही देशभर में दलितों के खिलाफ हुए तमाम मुद्दों को मायावती ने प्रमुखता से उठाया, इस दौरान हर बार उनके निशाने पर भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ही रहे।

दलित अस्मिता के मुद्दे को मायावती ने पूरे जोर शोर से तूल दिया, जिसका नतीजा ये रहा कि पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में उनका जो कोर दलित वोट बैंक हिंदुत्व के नाम पर उनसे छिटककर भाजपा के पाले में चला गया था वो निकाय चुनावों में वापस लौटता दिखा।

खास बात ये रही कि मायावती की इस मुहिम में उन्हें मुस्लिम वोटरों को भी साथ मिला, जिन्होंने जहां जहां बसपा उम्‍मीदवार मजबूत स्थिति में दिखा वहां वहां पूरी रणनीति के साथ उसके पक्ष में एकतरफा मतदान किया।

मेरठ में बसपा उम्‍मीदवार की जीत इसकी एक बानगी भर हैं, जहां बसपा को मुस्लिमों का लगभग एकतरफा समर्थन मिला जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी दीपू मनोठिया मात्र 46,530 वोट पास सकीं, जबकि कांग्रेस को 29,201 वोट मिले। इसी सीट पर पिछले निकाय चुनाव में सपा उम्‍मीदवार रफीक अंसारी को एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे।

 
 
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