जातिवाद बनाम विकास की लड़ाई में कौन जीतेगा बाजी, मतदाताओं पर टिकी नजर

बांदा। जहां कभी डाकुओं के फरमान और गोलियों की गूंज से चुनावी भाग्य के फैसले होते थे अब वहां जातिवाद के जहरबुझे तीर से सियासी लड़ाई जीतने की कोशिश खुलेआम हो रही है। राजनीतिक दलों ने इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दे दिया है। अदालत और चुनाव आयोग के आदेश बेमानी हो गये हैं।जातिवाद बनाम विकास की लड़ाई में कौन जीतेगा बाजी, मतदाताओं पर टिकी नजरबांदा: ‘लड़ै कोई जीतिहैं विवेकै।’ इस बार यह जुमला खतरे में है। तीन बार से यहां के विधायक रहे कांग्रेस के प्रत्याशी के लिए इस बार के बनते बिगड़ते समीकरण और सत्ता विरोधी लहर उनके लिए गंभीर खतरा बन चुकी हैं। भाजपा प्रत्याशी प्रकाश द्विवेदी उनके लिए मुश्किलें पेश कर रहे हैं। वहीं सपा ने जिस मुस्लिम प्रत्याशी के नाम की घोषणा पहले ही कर दी थी, उसकी नाराजगी का नजला भी उन्हीं पर गिर रहा है।

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बांदा सदर और तिंदवारी जैसी ठाकुर बहुल सीटें कांग्रेस के पास हैं, जिसे बचाने में कांग्रेस को पसीने छूट रहे हैं। सोशल इंजीनियरिंग के तहत भाजपा ने तिंदवारी में प्रजापति उम्मीदवार उतारा है। जबकि यहां निषाद और ठाकुरों का प्रभुत्व रहा है। यहां से 11 बार ठाकुर और सात बार निषाद चुनाव जीते हैं। जाहिर है भाजपा इन दो जातियों के प्रभुत्व के खिलाफ उपजे असंतोष का फायदा उठाना चाहती है।

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बसपा से आये ब्रजेश प्रजापति को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है, जिसे जिताने के लिए स्वामी प्रसाद मौर्या ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। बांदा जिले की चार विधानसभा सीट सदर, नरैनी, तिंदवारी और बबेरु में से दो सीटें कांग्रेस के पास हैं। जबकि एक-एक सीट सपा और बसपा के पास है। तिदंवारी के सुमेर बाबू का कहना है ‘लोगों का मन बदला है।

1991 से सपा और बसपा का राजकाज देखि देखि से सब उबियाय गये हैं। बहुत दिना बाद बीजेपी और मोदी जैसा विकल्प मिला है। दिल्ली जैसे लखनऊ में भी कुछ कइन दीहैं। ‘वहीं तिंदवारी सीट है, जहां से वीपी सिंह चुनाव जीते तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। बांदा में भाजपा इस बार सभी सीटों पर अच्छी लड़ाई लड़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लोगों की बड़ी उम्मीदें हैं।

बड़ी जातियों से कहीं ज्यादा छोटी व पिछड़ी जातियों में ‘मोदी का क्रेज’ है। उन्हें लगता है कि सरकारी धन की चोरी करने वाले धन्नासेठ जरूर पकड़े जायेंगे। चित्रकूट जिले की दोनों सीटें हैं तो ब्राह्मण बाहुल्य लेकिन दोनों सीटों पर पिछड़ी जातियो का कब्जा रहा है। ददुआ जैसे खूंखार डकैत का भाई, भतीजा और बेटे समेत कई और परिवारी जन राजनीति के मैदान में हैं।

उसका बेटा वीर सिंह समाजवादी पार्टी का चित्रकूट से विधायक है। उसके खिलाफ बसपा और भाजपा दोनों ने ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा है। विधायक के कामकाज के तौर तरीके से यहां व्यापारी और कारोबारी सख्त खफा हैं। दलित समूह से कोरी, खटिक, बाल्मीक, पासी और कोल जैसी जातियां बिखर रही हैं जो बसपा को कमजोर कर सकती हैं।

मानिकपुर विधानसभा सीट पर कभी बसपा के दिग्गज रहे आरके पटेल ने भाजपा के उम्मीदवार है। उनका मुकाबला कांग्रेस के संपतपाल से है, जो चर्चित गुलाबी गैंग की संस्थापक महिला नेता हैं। बसपा के मौजूदा विधायक चंद्रभान सिंह के लिए खतरा हैं। जबकि यहीं से बसपा से बाहर हुए पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद और पूर्व विधायक दिनेश मिश्रा भी भाग्य आजमा रहे हैं।

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