सनातन धर्म में कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है, जिससे जाने-अनजाने में कोई पाप नहीं हुआ हो। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता है, यदि विधि-विधान से पापमोचिनी एकादशी का पावन व्रत किया जाए। पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने वाली पापमोचिनी एकादशी का व्रत इस साल 31 मार्च को पड़ रहा है। भगवान विष्णु को समर्पित इस एकादशी का महत्व एवं पौराणिक कथा के बारे में जानने के लिए आगे की स्लाइड क्लिक करें —
एकादशी व्रत का महत्व
धर्मशास्त्रों में एकादशी तिथि को विष्णु स्वरुप माना गया है। इस तिथि को पूजित होने पर संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्री हरि संतुष्ट होकर अपने भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करते हैं। बड़े-बड़े यज्ञों से भगवान को उतना संतोष नहीं मिलता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है।
पापमोचिनी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। मन से भोग-विलास की भावना त्यागकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान के समक्ष बैठकर भगवद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए।
पापमोचिनी एकादशी व्रत का फल
पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से सहस्त्र अर्थात् हजार गायों के दान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि पापमोचिनी एकादशी का व्रत बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला है। एकादशी तिथि को रात्रि में जागरण करने का बहुत महत्त्व बताया गया है। पदम् पुराण के अनुसार जो मनुष्य पापमोचिनी एकादशी का व्रत करते हैं, उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है।
तब ऋषि ने दिया पिशाचनी होने का श्राप
काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से वह विरत हो चुके हैं, उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया।
इस व्रत को करने पर अप्सरा हुई श्राप मुक्त
श्राप से दुःखी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिये अनुनय करने लगी। अप्सरा की याचना से द्रवित हो मेधावी ऋषि ने उसे विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिये कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था, अतः ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया, जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गई। पाप से मुक्त होने के पश्चात अप्सरा को सुन्दर रूप प्राप्त हुआ और वह स्वर्ग के लिये प्रस्थान कर गई।
जानें क्यों वर्जित है एकादशी पर चावल खाना
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए, इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी, इसलिए इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णु प्रिया एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।
एकादशी पर चावल न खाने का ज्योतिषीय कारण
ज्योतिष मान्यता के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है, इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।एकादशी व्रत में मन का पवित्र और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है, इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाना वर्जित कहा गया है।
यदि व्रत करना न संभव हो तो…
जो लोग किसी कारण से एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं, उन्हें श्री हरि एवं देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए एकादशी के दिन खान-पान एवं व्यवहार में सात्विकता का पालन करना चाहिए। इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा नहीं खाएं। एकादशी के दिन किसी से झूठ या अप्रिय वचन न बोलें और प्रभु का स्मरण करें।