तो इसलिए अफगान तालिबान और अमेरिका के बीच दोबारा बात शुरू कराने में जुटा पाकिस्तान

अफगान तालिबान और अमेरिका के बीच शांति वार्ता में मदद करने और मध्यस्थता के लिए पाकिस्तान ने कवायद शुरू कर दी है. इस वक्त अफगान तालिबान का एक दल इस्लामाबाद में है. इस दल की इमरान खान सरकार से बात होनी है.

मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में अफगान तालिबान का 12 सदस्यीय दल गुरुवार को इस्लामाबाद पहुंचा. ये दल पाकिस्तानी राजनीतिक नेतृत्व और अमेरिकी प्रशासन के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के तौर तरीके तलाश करने के लिए पहुंचा है.

बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान के अहम चुनावों से पहले अफगान तालिबान और अमेरिका के बीच होने वाली बातचीत को रद्द कर दिया था.

अफगान तालिबान का दल पाकिस्तान विदेश दफ्तर पहुंचा. यहां पाक विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के नेतृत्व वाले पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल से उसकी बात होगी.

लंदन में भारत से 70 साल से चल रहा केस हारा पाकिस्तान

पाकिस्तान अफगानिस्तान को लेकर अपना यही रुख जताता रहा है कि वो अफगानिस्तान में शांति चाहता है और वहां की जटिल स्थिति का बातचीत से समाधान ढूंढने के पक्ष में है. अफगान तालिबान के दल की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से भी मुलाकात की संभावना है.

वहीं ‘अफगानिस्तान सुलह’ के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि ज़ल्माय खलीलज़ाद भी अपने दल के साथ इस्लामाबाद के दौरे पर हैं. उनकी अफगान तालिबान के दल के साथ इस्लामाबाद में बैठक हो सकती है. अफगान तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत रद्द होने के बाद ये पहला मौका होगा जब दोनों पक्ष आमने सामने होंगे.

खलीलज़ाद पाकिस्तानी नेतृत्व के साथ कई गहन बैठकें कर चुके हैं. इन बैठकों में अफगानिस्तान में शांति की अहमियत पर चर्चा हुई. साथ ही ये भी विचार किया गया कि किस तरह अमेरिकी सेनाओं की चरणबद्ध वापसी से संघर्ष को समाप्त किया जा सकता है.

पाकिस्तान ने तालिबान को दिया था न्योता

बता दें कि पाकिस्तान ने दोहा में तालिबान पॉलिटिकल कमीशन (TPC) को इस्लामाबाद का दौरा करने का न्योता दिया था. इसके पीछे पाकिस्तान ने अमेरिका और अफगान तालिबान के बीच रुकी हुई बातचीत को दोबारा शुरू किए जाने की मंशा जताई थी.

दरअसल, काबुल में एक आतंकी हमले में एक अमेरिकी सैनिक की मौत के बाद ट्रंप ने अफगान तालिबान से वार्ता से कदम पीछे खींच लिए थे.

अफगान तालिबान ने रखी थी शर्त

ट्रंप के इस फैसले से पहले दोनों पक्षों में नौ महीने से वार्ता का सिलसिला चल रहा था और माना जा रहा था कि ये निर्णायक दौर मे पहुंच चुका है. हालांकि इस पूरी प्रक्रिया से अफगान सरकार को बाहर रखा गया था. अफगान तालिबान ने यही शर्त रखी थी कि अशरफ गनी के नेतृत्व वाली अफगान सरकार से वो किसी तरह की बात नहीं करेगा.  

बता दें कि अफगानिस्तान में चुनाव परे हो गए हैं और सरकार काबुल प्रशासन का नियंत्रण लेने वाली है. ऐसे में ये देखना अहम होगा कि अफगान तालिबान नई लोकतांत्रिक सरकार पर किस तरह की प्रतिक्रिया देता है.

ये सवाल भी अहम है कि क्या पाकिस्तान अफगान तालिबान को ये मनाने में सफल रहेगा कि वो नई अफगान सरकार को भी वार्ता प्रक्रिया में एक स्टोकहोल्डर माने. अफगान तालिबान पहले ऐसे किसी भी प्रस्ताव को जोर देकर खारिज करता रहा है. बता दें कि इमरान खान ने हाल में संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में सहयोग देने की बात कही थी.

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