प्रख्‍यात कवि हरिवश राय बच्‍चन ने लिखी अपनी आत्‍मकथा ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’….

प्रख्‍यात कवि हरिवश राय बच्‍चन ने अपनी आत्‍मकथा ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’ लिखी। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि इसे लिखने की प्रेरणा उन्‍हें कहां से मिली? हरिवंश राय बच्‍चन से उनकी मृत्‍यु तक करीब 45 साल जुड़े रहे बिहार के गया निवासी रामनिरंजन परिमलेंदु बताते हैं कि बच्‍चन ने उनके कहने पर अपनी आत्‍मकथा लिखने का फैसला किया था। दोनों के बीच लंबे समय तक पत्राचार चलता रहा। इन्‍हीं पत्रों काे संकलित कर परिमलेंदु ने एक पुस्‍तक ‘बच्चन पत्रों के दर्पण में’ प्रकाशित कराया।

रामनिरंजन परिमलेंदु को हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ सहित अन्य कविता संग्रहों के कई पद्य कंठस्थ हैं।

वे बताते हैं कि एक बार बच्‍चन ने उन्‍हें मनीऑर्डर से बीमार पिता के फल खाने के लिए दो रुपये भेजे थे, लेकिन जब रुपये आए पिता स्‍वर्गवासी हो चुके थे।

बड़े कवि के साथ बड़े इंसान भी थे बच्चन

रामनिरंजन दैनिक जागरण से बातचीत बच्‍चन की मधुशाला की पंक्तियों (‘पीड़ा में आंनद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला…’) के साथ शुरु करते हैं। कहते हैं, हरिवंश राय बच्चन जितने बड़े कवि थे, उतने ही बड़े इंसान भी।

मधुशाला सहित अन्य कविता संग्रह भी कंठस्थ

गया के दक्षिण दरवाजा मोहल्ले में रहने वाले परिमलेंदु को आज भी मधुशाला सहित अन्य कविता संग्रहों के कई पद्य कंठस्थ हैं। परिमलेंदु को दर्जनों बार दिल्ली, पटना और इलाहाबाद में उनका सानिध्य मिला। वर्ष 1957 में ‘नई धारा’ के राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह पर अभिनंदन ग्रंथ के प्रकाशन हेतु बतौर संयोजक परिमलेंदु ने बच्चन को एक कविता लिखने के लिए पहला पत्र लिखा। तब से पत्राचार और मिलने-जुलने का जो सिलसिला शुरु हुआ, वह उनकी मौत तक चला।

 

बीमार पिता के नाम भेजा था दो सौ रुपये का मनीऑर्डर

परिमलेंदु बताते हैं, 1966 में उनके पिता जगन्नाथ प्रसाद जब बीमार पड़े, तब उन्होंने बच्चन को लिखे एक पत्र में पिताजी की बीमारी का भी जिक्र किया था। तब बच्चन ने मनीऑर्डर के माध्यम से दो रुपये भेजे और नीचे में लिखा कि पिताजी के लिए फल खाने हेतु यह राशि आप स्वीकार करेंगे। जब उनकी राशि आई तो पिताजी स्वर्गवासी हो चुके थे, इसलिए उसे वापस कर उन्हें स्वीकार करने का अनुरोध किया। तब भरे मन से उन्होंने पत्र लिखकर राशि स्वीकार ली।

खुद कार ड्राइव कर घर छोड़ने गईं थीं तेजी बच्‍चन

अतीत की स्‍मृतियों में खोए 80 वसंत पार कर चुके परिमलेंदु की आंखें नम हो गईं। बताया कि 1968 में बच्चन परिवार दिल्ली के 13, विलिंगडन क्रिसेंट में रहता था। एक दिन दोनों के बीच साहित्य पर लंबी चर्चा चली। रात के 11.30 बज गए। तब बिड़ला कॉटन मिल के पास मेरे घर पर खुद कार ड्राइव कर तेजी बच्‍चन ने छोड़ा था।

पत्रों को संकलित कर किया ‘बच्चन पत्रों के दर्पण में’ प्रकाशित

परिमलेंदु बताते हैं, ‘एक लंबी अवधि तक उनसे साहित्य और घर-परिवार को लेकर पत्राचार होता रहा। इन्हीं पत्रों को संकलित कर ‘बच्चन पत्रों के दर्पण में’ प्रकाशित कराया। इसमें बच्चन के लिखे 213 पत्र संकलित हैं। इनमें भारतीय साहित्य और समय तथा काल के साथ उसके उतार-चढ़ाव का भी जिक्र है। उन पत्रों को दिल्ली के गांधी ग्रंथालय में सुरक्षित रखा गया है।

बच्चन को आत्मकथा लिखने के लिए किया प्रेरित

कहते हैं, ”बच्चन को आत्मकथा लिखने के लिए मैंने कई बार कहा। उसकी महत्ता पर जोर दिया। तब उन्होंने ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’ लिखी।” यह चार खंडों में लिखी उनकी आत्‍मकथा का पहला खंड था, जिसे उन्‍होंने 1969 में लिखा। इसके बाद ‘नीड़ का निर्माण फिर’ (1970), ‘बसेरे से दूर’ (1977) तथा ‘दशद्वार से सोपान तक’ (1985) की रचना की।

मरकर भी करोड़ों दिलों में जिंदा हैं बच्‍चन

हरिवंश राय बच्‍चन 18 जनवरी, 2003 को दुनिया से चले गए, लेकिन अपनी कविताओं में अमर हो गए हैं। वे करोड़ों दिलों में आज भी जिंदा हैं।

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