वर्तमान का आनंद उठाएं, भविष्य आनंदमय होगा

yoga-man11_20151015_92330_06_07_2015जर्मन मूल के आध्यात्मिक गुरु एक्हार्ट टाल का चिंतन कहता है, वर्तमान में होने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने की बजाए उसे सहज भाव से स्वीकार लेना ही हमारे जीवन को आनंदमय बना देता है। अतीत और भविष्य को छोड़ वर्तमान के साथ चलकर यह सुख हर व्यक्ति पा सकता है।

महान भारतीय चिंतक और आध्यात्मिक गुरु जे. कृष्णमूर्ति ने एक बार अपने श्रोताओं को यह पूछकर आश्चर्यचकित कर दिया कि क्या आप मेरा रहस्य जानना चाहते हैं? सभी चौकन्ने हो गए। गुरु ने स्पष्ट रूप से बताया कि मेरा रहस्य यह है कि ‘जो कुछ बाहर होता है, मैं उस पर ध्यान नहीं देता।’ मुझे शक है कि उनके ज्यादातर श्रोता इसे समझ न पाए हों, लेकिन इस सरल वाक्य का बहुत व्यापक अर्थ है।

बाहर जो कुछ होता है, मैं उस पर ध्यान नहीं देता हूं। इसका तात्पर्य यह है कि अंदर जो कुछ भी हो रहा है, मैं उसके साथ हूं। इसका तात्पर्य है कि बाहर का जो बदलाव है, उस पर आंतरिक प्रतिरोध न करना। वर्तमान के साथ जुड़ने से आपके कार्यों को बुद्धिमत्ता की ताकत मिल जाती है।

इसके इस तरह समझें जापान के एक शहर में जेन गुरु हाकुइन रहते थे। उनकी बड़ी इज्जत थी। अनेक लोग उनसे शिक्षा के लिए आते थे। उनके कुछ विरोधी भी थे। उन्होंने साजिशन अफवाह फैला दी कि एक कुंवारी युवती के गर्भवती होने में हाकुइन का हाथ है। लड़की के परिवार वाले और मोहल्ले वाले हाकुइन के पास गए। उन्होंने आरोप लगाए कि लड़की ने स्वीकार लिया है कि उसके बच्चे का पिता हाकुइन ही है। हाकुइन ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। सिर्फ इतना कहा ‘क्या ऐसा है?’

इस घटना से हाकुइन की ख्याति खत्म हो गई। लोगों का आना खत्म हो गया। लेकिन वह परेशान नहीं हुए। बच्चे का जन्म हुआ तो युवती के माता-पिता बच्चे को हाइकुन के पास छोड़ गए कि आप इसका पालन-पोषण कीजिए। गुरु ने बच्चे की देखभाल बहुत प्यार से की।

एक साल बाद बच्चे के प्रति गुरु के प्यार को देख युवती को पश्चाताप हुआ कि इतने अच्छे आदमी पर उसने झूठा आरोप लगाया। युवती ने सबके सामने माफी मांगते हुए बच्चे के असली पिता का नाम बता दिया। उसके परिवार वाले शर्मिंदा होकर गुरु से माफी मांगने लगे और कहने लगे कि इस बच्चे के पिता आप नहीं है। गुरु ने बच्चे को लौटाते हुए सिर्फ यह कहा ‘क्या ऐसा है?’

गुरु ने झूठ और सच, बुरी खबर और अच्छी खबर पर एक ही तरह की प्रतिक्रिया की। उन्होंने क्षण के यथार्थ को, अच्छा-बुरा जैसा भी था। उसे उसी तरह स्वीकार कर लिया। उनके लिए जो भी क्षण है, उस क्षण जैसा भी है, वैसा ही है। जो हो रहा है, उसके साथ वे पूरी तरह हैं और जो हो रहा है, उनका उन पर कोई असर नहीं है।

दरअसल समस्या तब आती है, जब आप कुछ भी होने का विरोध करते हैं। तब आप जो हो रहा है, उसकी दया पर निर्भर हो जाते हैं। तब दुनिया आपकी खुशी और आपकी नाखुशी तय करने वाली बन जाती है। आपके जीवन का वर्तमान जो भी रूप ग्रहण करता है वह इस बात पर निर्भर करता है कि आप वर्तमान के साथ कैसा संबंध चाहते हैं?

उसके लिए मैत्री भाव रखें, उसका स्वागत करें, चाहे वह किसी भी रूप में सामने हो। शीघ्र ही आप इसका असर देखेंगे। तब जीवन आपके लिए मित्र बन जाता है। लोग सहायता करने लगते हैं। परिस्थितियां अनुकूल हो जाती हैं।

 
 
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