लोकसभा चुनाव 2019 में बादल रहा है उत्तर प्रदेश का चुनावी समीकरण

आम चुनावों में यूं तो हर बार उत्तर प्रदेश पर सबकी निगाहें रहती हैं कि यहां जो बाजी मारेगा, दिल्ली उसी की होगी। पिछली बार यानी 2014 में नरेन्द्र मोदी ने वडोदरा के साथ-साथ वाराणसी से चुनाव लड़ा, दोनों जगह जीत दर्ज की और फिर गुजरात के वडोदरा को छोड़कर उत्तरप्रदेश के वाराणसी को चुना। नरेन्द्र मोदी के कारण तब उत्तरप्रदेश का चुनाव काफी दिलचस्प हो गया था, उनका मुकाबला करने के लिए आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल भी वाराणसी से चुनाव लड़नेे पहुंच गए थे। इस बार भी उत्तरप्रदेश में आम चुनावों का मुकाबला रोचक रहेगा, क्योंकि इस बार प्रत्याशियों के साथ-साथ गठबंधन का खेल भी दिलचस्प होगा। उपचुनावों में भाजपा का मुकाबला करने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन का सफल प्रयोग किया। कैराना, गोरखपुर, फूलपुर जैसी सीटें भाजपा से हथिया लीं।
इस गठबंधन को आम चुनावों में भी जारी रखने का ऐलान सपा-बसपा ने किया। दोनों दलों में कहीं कोई खटास न आ पाए, इसका ख्याल रखा और सीटों का बंटवारा आपसी समझ से कर लिया। इस गठबंधन में रालोद भी शामिल है। जिसने थोड़ी नानुकुर के बाद सीट बंटवारे पर सहमति जतला दी है। पहले उम्मीद थी कि कांग्रेस भी इस गठबंधन का हिस्सा होगी, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन की कोशिशें वह लगातार कर रही है। लेकिन सपा-बसपा ने जब अपने गठबंधन का ऐलान किया तो कांग्रेस उसमें शामिल नहीं थी। हालांकि अमेठी और रायबरेली ये दो सीटें कांग्रेस के लिए छोड़नेे की सदाशयता इन दोनों दलों ने दिखाई। इधर प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद यह सुगबुगाहट थी कि सपा-बसपा कांग्रेस को अपने साथ ले सकती हैं।
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कांग्रेस को 15-17 सीटें दी जा सकती हैं। लेकिन न कांग्रेस ने ऐसी चर्चाओं पर कोई प्रतिक्रिया दी, न ये बातें हकीकत में बदली। यह साफ हो गया कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अपने दम पर ही चुनाव लड़ेगी, जिसमें कुछ छोटी पार्टियों को वह अपने साथ ले सकती है। सपा-बसपा से गठबंधन न होने के बावजूद दोनों पक्षों से एक-दूसरे के लिए कोई कड़वी बात नहीं कही गई। अब खबर ये भी है कि जैसे सपा-बसपा रायबरेली-अमेठी से अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी, वैसे ही कांग्रेस ने मुलायम परिवार के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है।
गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव के मैनपुरी से लड़नेे की घोषणा हो चुकी है, और कन्नौज से डिंपल यादव  लड़ेंगी, जबकि आजमगढ़ से अखिलेश लड़ सकते हैं। हालांकि यादव परिवार के अन्य सदस्यों को कांग्रेस से यह रियायत नहींमिलेगी। सपा के साथ तो कांग्रेस के सौहाद्रपूर्ण रिश्ते चुनाव में दिखेंगे, लेकिन बसपा के साथ क्या समीकरण रहेगा, यह जानने की उत्सुकता बनी रहेगी। गौरतलब है कि मंगलवार को ही बसपा सुप्रीमो मायावती ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि देश में कहीं भी गठबंधन नहीं करेगी। बसपा ने हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था।
लेकिन नतीजों के बाद तीन राज्यों यानी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बसपा ने कांग्रेस पार्टी को समर्थन दिया था। इन तीनों राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार है। मायावती का कहना है कि समाजवादी पार्टी के साथ उत्तर प्रदेश में गठबंधन सही इरादे और पारस्परिक आदर के साथ किया गया ताकि भाजपा को हराया जा सके। मंशा तो कांग्रेस की भी यही है लेकिन फिर भी मायावती कांग्रेस को साथ नहीं लेना चाहतीं। जानकारों के मुताबिक इसकी दो वजहें हैं, पहला मायावती और कांग्रेस के वोट बैंक में बहुत $फ$र्क नहीं है और दूसरा कारण यह है कि पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई ठोस वोट बैंक नहीं है। ऐसे में मायावती को लगता है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन से कांग्रेस को तो $फायदा होगा लेकिन उनकी पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा।
बहरहाल, दलित, पिछड़े और मुस्लिम वोटबैंक के लिए अब एक ओर कांग्रेस होगी, दूसरी ओर सपा-बसपा और इन दोनों की काट भाजपा तलाशेगी। इस मुकाबले में अब एक नया कोण भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर का भी जुड़ गया है। मंगलवार को देवबंद में उनकी पदयात्रा रोकी गई और उन्हें हिरासत में लिया गया। उनकी तबियत बिगड़नेे पर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनसे मिलने प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया पहुंचे। चंद्रशेखर का कहना है कि वे मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। साथ ही यह भी कहा कि लोकसभा चुनाव में मायावती को पूरा समर्थन दिया जाएगा। चंद्रशेखर भी अब दलितों के बड़े नेता हैं और अब तक मायावती का साथ उन्हें नहींमिला है। लेकिन अब उत्तरप्रदेश की राजनीति में चुनावी समीकरण भी बदल रहे हैं, देखना ये है कि नतीजों में भी यह बदलाव देखने मिलता है या नहीं।

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