दादा-दादी की खुराक का असर आप पर हुआ था, आपकी खुराक आपके पोते पोतियों पर डालेगी असर…

हमारी जीन्स का पीढ़ियों तक असर होता है. ये जीन्स पीढ़ियों तक कैसे अपनी अभिव्यक्ति बदलती हैं, इसे विज्ञान की एपिजेनिटिक्स नाम की शाखा कहा जाता है. दशकों के अध्ययन के बाद, अब वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आपके दादा दादी ने जो खाया, वह आपके और आपके बच्चों को प्रभावित कर रहा है. इतना ही नहीं आप को खा रहे हैं वह आपके पोते पोतियों को प्रभावित करेगा.

बिल्कुल सटीक रूप से, आहार संबंधी प्राथमिकताएं और अभिव्यक्तियां परिवार में चलती हैं. एपिजेनेटिक्स के पोषण संबंधी पहलुओं को पोषण संबंधी एपिजेनेटिक्स कहा जाता है. नॉर्थ डकोटा विश्वविद्यालय में पोषण और आहार विज्ञान के सहायक प्रोफेसर नथानिएल जॉनसन और अन्य शोधकर्ताओं के अनुसार, आज एक व्यक्ति जो आहार विकल्प चुनता है वह उनके भविष्य के बच्चों के आनुवंशिकी को प्रभावित करता है.

एपिजेनेटिक्स की जड़ें दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नीदरलैंड पर नाजियों के कब्जे वाले इलाके के लोगों में हैं. डचों को लगभग 2,000 किलोकैलोरी के सामान्य आहार के मुकाबले 400 से 800 किलोकैलोरी के राशन पर रहने के लिए मजबूर किया गया था. लगभग 20,000 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 45 लाख लोग कुपोषण का शिकार हो गए थे.

अध्ययन में यह पाया गया है कि नीदरलैंड में आहार में बदलाव के कारण IGF2 नामक जीन में परिवर्तन हुआ जो वृद्धि और विकास से संबंधित है. इससे उन डच महिलाओं के बच्चों और पोते-पोतियों दोनों की मांसपेशियों की वृद्धि रुक गई, जो नीदरलैंड पर नाजी कब्जे के कारण उत्पन्न आहार संबंधी चुनौतियों से बच गए थे.

डच हंगर विंटर’ के नतीजों के अनुसार, इस सटीक के कारण की वजह से, नीदरलैंड की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की पीढ़ियों में मोटापा, हृदय रोग, मधुमेह और जन्म के समय कम वजन का खतरा बढ़ गया था. मानव शरीर, अपनी जीवित रहने की प्रवृत्ति की सीमा के भीतर, बाहरी चुनौतियों के प्रभाव को झेलने का प्रयास करता है.चुनौती की इन अवधियों के दौरान प्राप्त गुण, कभी-कभी भविष्य की पीढ़ियों को विरासत में मिलते हैं.

हाल ही में भेड़ों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि जन्म से लेकर दूध छुड़ाने तक दिए जाने वाले अमीनो एसिड मेथियोनीन के पूरक पैतृक आहार ने अगली तीन पीढ़ियों के विकास और प्रजनन गुणों को प्रभावित किया है.

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