देवनागरी लिपि और उसकी वैज्ञानिकता

ओम प्रकाश तिवारी
देवनागरी लिपि का उद्गम प्राचीन भारतीय लिपि ब्राम्ही से माना जाता है। सातवीं शताब्दी से देवनागरी लिपि के प्रयोग के प्रमाण मिलते हैं। आठवीं शताब्दी से इस लिपि का भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापक विस्तार होता है। देवनागरी लिपि को विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि माना जाता है। यह मूलतः ध्वनि प्रधान लिपि है।
देवनागरी लिपि का प्रारंभिक रूप सीधा एवं सहज था । सभ्यता के विकास के साथ इसे भी आकर्षक तथा व्यवस्थित करके वर्तमान रूप में लाया गया। इसमें ‘पाणिनि’ के व्याकरण-ग्रंथ ‘अष्टाध्यायी’ के अनुसार ११ स्वर और ३३ व्यंजनों का समावेश हुआ। व्यंजन में २५ वर्ण स्पर्श, चार वर्ण अंतःस्थ और चार वर्ण हैं। व्यंजनों में स्वराभाव दिखाने के लिए हलंत लगाना पड़ता है। टंकण सुविधा की दृष्टि से वर्तमान में लिपि-संकेतों में आवश्यक संशोधन किये गए हैं। इसके साथ ही वर्णमाला में सभी संभव ध्वनियों के लिए विशेष संकेत भी नियत किए गए हैं ।
देवनागरी लिपि की सबसे बड़ी विशेषता उसका ध्वनिपरक होना है। यह लिपि संकेत, लेखन तथा उच्चारण में कोई भेद नहीं रखती है। पाठक को अपनी तरफ से किसी ध्वन्यांश को मिलाने या छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती है।
देवनागरी की वर्णमाला के वर्गीकरण में व्याकरण शास्त्र के अनुसार उच्चारण-स्थान, श्वास-गति और जिह्वा की स्थितियों का बराबर ध्यान रखा जाता है। इतनी वैज्ञानिकता विश्व की अन्य किसी भी लिपि में अप्राप्य है । एक भाषा वैज्ञानिक ने देवनागरी के स्वर चिन्हों के खोखले यंत्र बनाये और उन यंत्रों में फूंकने पर उसी स्वर की ध्वनि निकलती थी। देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है।
अंग्रेजी में लिपियों का उच्चारण शब्दपरक है तथा उच्चारण और लेखन में कोई व्यवस्था नहीं है। जैसे -बी यू टी का उच्चारण ‘बट’ है तो पी यू टी का ‘पुट’ होता है। एक ही स्वर ‘यु’ कहीं ‘यू’ है, ‘उ’ है तो कहीं ‘अ’ है। इसी तरह अरबी लिपि में तीन स्वरों से तेरह स्वरों का काम लिया जाता है। देवनागरी लिपि के उच्चारण में परिपूर्ण निर्विलपता के कारण लिखने, पढ़ने और समझने में कठिनाई नहीं होती है।
देवनागरी वर्णमाला के व्यंजनों के वर्गीकरण में उनके उच्चारण-स्थानों का क्रमिक सामीप्य के साथ ही स्वरों के आधार-निर्धारण में उनके उच्चारण को भी ह्रस्व, दीर्घनुत के रूप में सम्यक् विभाजन किया है। इस प्रकार देवनागरी लिपि के प्रत्येक वर्ण प्राय: निर्दोष हैं। हाल के वर्षों में टंकण की सुविधा को ध्यान में रखते हुए देवनागरी लिपि के स्वर, व्यंजन, संयुक्त अक्षर, पूर्ण विराम आदि के लेखन में भी बदलाव किये गए हैं। हालांकि इससे लिपि के आकार-गठन का सौंदर्य कम हुआ है। इसके साथ ही संयुक्त अक्षरों की उच्चारण-शुद्धि में भी विकार की संभावना बढ़ गई है। इन तमाम सीमाओं के बावजूद नागरी लिपि अपने वर्तमान रूप में श्रेष्ठ है।
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