पढ़ाई का बोझ बन रहा है बच्चों में मानसिक परेशानियों की वजह

बदलते वक्त ने सिर्फ लोगों के कपड़े पहनने का अंदाज ही नहीं बदला है, बल्कि उनकी सोच, रहन-सहन और फूड हैबिट्स में भी इसकी झलक देखने को मिल रही है। वैसे इस बदलाव में और भी बहुत सारी चीज़ें शामिल हैं जिसमें से एक एजुकेशन सिस्टम भी है। पढ़ने-लिखने का सीधा कनेक्शन अच्छे भविष्य से जुड़ा हुआ है। इसलिए इसे लेकर बच्चों पर शुरू से ही एक अलग तरह का प्रेशर रहता है, लेकिन आजकल यह कुछ ज्यादा बढ़ गया है। जिसके चलते स्टूडेंट्स कई तरह की मानसिक परेशानियों से गुजर रहे हैं। 

कम उम्र में पढ़ाई के चलते बच्चों में बढ़ रही मानसिक परेशानियां चिंता का विषय है। कॉम्पिटिशन को देखते हुए स्टूडेंट्स पर अच्छे परफॉर्मेंस को लेकर एक अलग ही दबाव रहता है। जिसके चलते वो गुस्सैल, आक्रामक और अंडर कॉन्फिडेंट फील कर सकते हैं। वहीं इसके चलते सिरदर्द, पेट दर्द और नींद न आना जैसे लक्षणों का भी अनुभव हो सकता है। कुछ मामलों में ये मानसिक समस्याएं खुद को नुकसान पहुंचाने की भी वजह बन सकती हैं। 

बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या से निपटने के लिए इन बातों पर गौर करना है जरूरी-

मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या के लक्षणों को पहचानें

अगर आपका बच्चा हर वक्त गुस्से में रहता है, पहले की तुलना में लोगों से मिलना-जुलना कम हुआ है, खानपान पर ध्यान नहीं दे रहा और सोने-जागने के पैटर्न में भी बदलाव दिख रहा है, तो ये तनाव और डिप्रेशन के लक्षण हैं। समय रहते इसकी पहचान कर इसे गंभीर स्थिति पर पहुंचने से रोक सकते हैं। पढ़ना-लिखना जरूरी है, लेकिन बच्चों पर इस चीज़ का इतना प्रेशर बिल्कुल भी न बनाएं कि वो बचपन में भी स्ट्रेस की गिरफ्त में आ जाएं। 

खुलकर बातचीत करें

घर, स्कूल, कोचिंग हर जगह पढ़ाई के साथ-साथ एक ऐसा माहौल तैयार करें, जहां बच्चे अपनी समस्याओं पर खुलकर बातचीत कर सकें। बिना डरे या घबराए। बच्चों को इसकी आजादी देकर आप उन्हें तनाव, डिप्रेशन की गिरफ्त में आने से बचा सकते हैं। साथ ही उन्हें यह समझाएं कि मेंटली हेल्दी रहना भी फिजिकली हेल्दी रहना जितना ही जरूरी है और अगर इसमें उन्हें किसी एक्सपर्ट की हेल्प लेनी पड़े, तो इसमें संकोच न करें। 

सोशल प्रेशर से दूर रखें

हेल्दी कॉम्पिटिशन के बारे में उन्हें बताएं। जिससे पढ़ने-लिखने या दूसरे कामों के लिए मोटिवेशन मिलता है, न कि तनाव बढ़ता है। यकीन मानिए इससे बच्चे एकेडमिक और दूसरे क्षेत्रों में ज्यादा बेहतर परफॉर्म करते हैं। 

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