इस वजह से भीष्म पितामह ने द्रौपदी को नहीं बचाया था चीरहारण से, अंतिम काल में बताया था कारन

हिन्दुस्तान के गौरवपूर्ण इतिहास के अगर बात करें तो महाभारत काल का जिक्र सबसे पहले आता है. महाभारत की बात करें तो सभी पात्रों में सबसे ज्यादा चर्चित और पराक्रमी थे भीष्म पितामह. भीष्म पितामह के पराक्रम की गाथा से पूरा महाभारत सराबोर है लेकिन एक बात है जो सबको भीष्म के चरित्र पर ऊँगली उठाने पर मजबूर कर देती है और वो ये है की आगेर वो इतने ही साहसी और पराक्रमी योद्धा थे तो उन्होनें भड़ी सभा में द्रौपदी के चीरहरण को क्यूँ नहीं रोका. आज हम आपको इस प्रश्न का उत्तर बताने जा रहे हैं जिसका जवाब भीष्म पितामह ने पाने आखिरी क्षणों में दिया था .

इस वजह से भीष्म पितामह ने द्रौपदी को नहीं बचाया था चीरहारण से, अंतिम काल में बताया था कारन

महान योद्धा होने के वाबजूद भी भीष्म कौरवों के साथ खड़े थे

महाभारत का युद्द भारतीय इतिहास का एक बेहद पराक्रमी काल था जिसमे बहुत से साहसी और वीर योद्धा हुए थे .इन्ही में स एके नाम भीष्म पितामह का था, इन्हें वरदान था की ये जब तक खुद ना चाहे इन्हें कोई माँ नहीं सकता. इस काल में जब पांडव और कौरव के बीच युद्ध की घोषणा हुई तो उस समय भीष्म पितामह ने कौरवों का साथ दिया था. सबसे अजीब बात ये हुई थी की जब पांडव कौरव से भड़ी सभा में द्रौपदी को हार गए थे और दुर्योधन सभी पराक्रमी योद्धा के समाने द्रौपदी का चीरहरण कर रहा था उस वक़्त अगर भीष्म पितामह चाहते तो वो इस अनहोनी को रोक सकते थे लेकिन उन्होनें ऐसा कुछ भी नहीं जिसका दुःख द्रौपदी को हमेशा रहा. द्रौपदी के साथ दुर्योधन ने ऐसी निरीह हरकत अपने साथ हुए एक अपमान का बदला लेने के लिए किया था. दरअसल में हुआ ये था की एक बार द्रौपदी ने दुर्योधन के रूप का कुछ दशियों के सामने अपमान कर दिया था जिसके बाद दुर्योधन ने भी द्रौपदी से बदला लेने की ठान ली थी.

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इस वजह से भीष्म पितामह ने नहीं बचाया था द्रौपदी को

महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाण से छल्ली कर दिया और वो म्रत्यु सैय्य पर लेते थे उस वक़्त एक एक करके सभी पांडव उनसे मिलने पहुंचे थे. उनसे मिलने वालों में द्रौपदी भी शामिल थी,उस वक़्त द्रौपदी ने भीष्म पितामह से बड़े ही उदास होकर ये प्रश्न किया था की आप तो इथे बड़े योद्धा और साहसी व्यक्ति थे फिर आपने भड़ी सभा में मुझे सबके सामने अपमानित होने से क्यूँ नही बचाया. इसके जवाब में भीष्म पितामह ने कहा की चूँकि मैंने कौरवों का नाम खाया था और मुझे नमक का हक चुकाना था इसलिए उस वक़्त मैं उनके विरूद्ध कुछ नही बोल पाया और मेरी बुद्धि भी उनके जैसी ही होगयी थी. मैं उस वक़्त सिर्फ खेल के नियम देख रहा था और मेरे पास उनके विरुद्ध कुछ भी कहने के लिए कठोर तथ्य नही थे. उन्होनें द्रौपदी से आगे ये भी कहा की मनुष्य जिसका अन्न खाता है उसका मन भी वैसा ही हो जता है और मेरे साथ भी उस वक़्त वैसा ही हुआ था. भीष्म पितामह के इस जवाब को सुनकर द्रौपदी ने उन्हें उत्तर दिया था की अधर्म के विरूद्ध आवाज उठाना मनुष्य का सबसे पहला धर्म और कर्तव्य होता है .

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