भारत में कोरोना की पर्याप्त जांच हो रही है?

न्यूज डेस्क

भारत कोरोना वायरस की महामारी का सामना कैसे कर रहा है, इसको लेकर दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञों की नजरें टिकी हैं। कोरोना पर नियंत्रण को लेकर जहां सरकार के कामकाज की तारीफ हो रही है तो वहीं यह सवाल लगातार उठ रहा है कि कोरोना वायरस के मामलों की जांच पर्याप्त संख्या में नहीं हो रही है।

भारत में जांच की संख्या बढ़ाने के लिए सुझाव दिया जा रहा है। डब्ल्यूएचओ भी भारत के परिप्रेक्ष्य में बार-बार कह रहा है कि सिर्फ लॉकडाउन से कोरोना पर नियंत्रण संभव नहीं है। हालांकि सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि भारत में कोरोना मामलों के टेस्क कम हो रहे हैं।

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भारत में कोरोना संक्रमण के कुल मामलों की संख्या अब 13,387 हो गई है। गुरुवार को सरकार ने कहा है कि भारत में 24 टेस्ट में से एक कोविड-19 पॉजिटिव निकल कर आ रहा है। सरकार और आईसीएमआर यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोरोना वायरस के मामलों की जांच पर्याप्त संख्या में नहीं हो रही है इस आलोचना को सिरे से नकार दिया है।

अपनी टेस्टिंग रणनीति को सही ठहराते हुए आईसीएमआर ने कहा है कि हर 10 लाख लोगों पर कितने टेस्ट हुए सिर्फ यही सही पैमाना नहीं है। सरकार ने कहा कि जो आंकड़ा सरकार की टेस्टिंग रणनीति की सफलता बयान करता है वो यह है कि भारत में 24 टेस्ट में से एक कोविड-19 पॉजिटिव निकल कर आ रहा है।

आईसीएमआर ने कहा कि भारत के मुकाबले जापान में 11.7 टेस्ट में से एक पॉजिटिव है, इटली में 6.7 में से एक, अमेरिका में 5.3 में से एक और ब्रिटेन में 3.4 में से एक पॉजिटिव हैं। आईसीएमआर ने इस बात से भी इंकार किया कि भारत की टेस्टिंग क्षमता कम है। उसने कहा कि रोजाना 42,418 सैंपल टेस्ट किए जा सकते हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि भारत में कोविड-19 के मरीजों में से मर जाने वालों की दर 3.3 प्रतिशत है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताई गई वैश्विक दर 3.4 प्रतिशत के लगभग बराबर ही है।

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सरकार के मुताबिक देश में कोविड-19 के मरीजों के ठीक होने की दर 12.02 प्रतिशत है। सरकार ने कहा कि आने वाले दिनों में टेस्टिंग की गति और बढ़ाए जाने की उम्मीद है, क्योंकि चीन से मंगवाए गए पांच लाख टेस्टिंग किट भारत पहुंच चुके हैं और 6.5 लाख अतिरिक्त किट चीन से भेजे जा चुके हैं। यह सारे रैपिड टेस्टिंग किट हैं और इनका इस्तेमाल सिर्फ सर्विलांस के लिए होगा, हॉटस्पॉट स्थानों पर नजर रखने के लिए और यह जानने के लिए हॉटस्पॉट बढ़ रहे हैं या कम हो रहे हैं।

भारत के लिए तीन से चार सप्ताह अहम साबित होने वाले है। इसी दौरान तस्वीर साफ हो जायेगी। यह वायरस संक्रमण के शुरुआती दिन ही हैं। देश में एक्टिव मामले सात दिनों में दोगुने हो रहे हैं, यह पहले की तुलना में धीमी दर है। देश में मौत की भी दर कम है अब यह बढ़ रहा है, जो चिंता का विषय है।

हम सब जानते हैं कि देश में कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की स्थिति है। इसलिए इसके साक्ष्य को तलाशने की जरूरत है। आने वाले दिनों का प्रत्येक सप्ताह बेहद अहम साबित होने वाला है। कोरोना संक्रमण के ग्राफ को सपाट बनाने के लिए अब कहीं ज्यादा निगरानी की जरूरत होगी कि कौन संक्रमित है और कौन संक्रमित नहीं है। इसके लिए भारत को लाखों टेस्टिंग किट और प्रशिक्षित तकनीशियनों की जरूरत होगी।

देश के कई वायरोलॉजिस्टों का कहना है कि देश में ज्यादा से ज्यादा लोगों को टेस्ट करने की जरूरत है। कुछ वायरोलॉजिस्टों का मानना है कि बड़े पैमाने पर लोगों का एंटी बॉडी टेस्ट-उंगली से रक्त सैंपल लेकर भी किया जाना चाहिए। इससे लोगों के शरीर में प्रोटेक्टिव एंटीबाडीज की मौजूदगी का पता चलेगा।वहीं कुछ वायरोलॉजिस्टों का कहना है भारत को प्लाज्मा थेरेपी को भी देखने की जरूरत है। प्लाजमा थेरेपी में संक्रमण से उबरने वाले मरीज की अनुमति से उनके रक्त की जरूरत होगी। इसमें ज्यादा एंटी बॉडी वाले रक्त प्लाजमा को संक्रमित मरीज के रक्त में मिलाया जाता है। कई डॉक्टरों के अनुसारकोरोना संक्रमण के इलाज में यह उम्मीद भरा रास्ता हो सकता है।

कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सरकार सख्त कदम उठा रही है। पहले सरकार ने 21 दिन का लॉकडाउन किया और बाद में इसमें 19 दिन का विस्तार दिया है। लोगों को घरों तक सीमित रखने के लिए पुलिस भी सख्ती बरत रही है, लेकिन प्रवासी मजदूरों के पलायन ने एक बार फिर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा दी।

देश के कुछ हिस्सों से एक बार फिर प्रवासी श्रमिकों के उनके गृह राज्य की तरफ पैदल पलायन की खबरें आ रही हैं। तालाबंदी बढ़ाए जाने के बाद यह श्रमिक एक बार फिर अपने अपने ठिकानों से निकल गए। बताया जा रहा है कि मुंबई-आगरा हाइवे पर इस समय सैकड़ों श्रमिक पैदल चल रहे हैं और अपने अपने गांवों की तरफ जा रहे हैं। इनमें से कइयों को पुलिस ने वापस भेज दिया है लेकिन कई पुलिस से बच कर निकल भी गए हैं।

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