थूकने और हिंसा के पीछे है लोगों का ‘डर’

  • समस्या के हल के लिए राजनीतिक नहीं मनोवैज्ञानिक कारण खोजना होगा
  • कोरोना संकट के बाद व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मेंटल हेल्थ बहुत जरूरी

राजीव ओझा

कोई थूक रहा, कोई पीट रहा, कोई सड़कों पर नोट फेंक रहा। माहौल तनावपूर्ण है, लोग सशंकित हैं। कोरोना पता नहीं अभी कितना कहर बरपायेगा। पता नहीं पूरी तरह से जायेगा भी या नहीं। कोरोना भले ही चला जाये लेकिन इतना तय है अगले कुछ वर्षों तक इसका असर हमारे समाज और लोगों के मन-मस्तिष्क दोनों पर रहेगा।

कोरोना से लोग लगातार मर रहे हैं। लेकिन बहुत सी ऐसी चीजें भी हो रहीं हैं जो संकट के समय में नहीं होनी चाहिए। ताजा मामला महाराष्ट्र के पालघर जिले के गडचिंचाले का है। यहाँ स्थानीय लोगों ने चोर के शक में तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी। मेडिकल टीम, पुलिस और सफाई कर्मियों पर बार बार हमले हो रहे हैं। कोई फलों पर थूक लगा रहा, कोई नोट पर, कोई पार्सल पैकेट पर तो कोई लिफ्ट की बटन या घरों के भीतर थूक कर भाग जा रहा। और तो और लोग सरेआम दूसरों पर थूक रहे हैं। यह कोरी अफवाह नहीं। इनके सीसीटीवी फूटेज और वीडियो हैं।

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सवाल उठाता है कौन हैं ये लोग? कोई कह रहा तबलीगी जमात वाले हैं कोई कह रहा रोहिंग्या हैं। लेकिन ऐसे वीडियो तो चीन के वुहान से भी आए हैं, इटली और न्यूयॉर्क से भी आये हैं। उन शहरों में कौन से तबलीगी जमात वाले हैं? इस समस्या का राजनीतिक कारण खोजने के बजाय इसे मनुष्य के मनोविज्ञान में तलाशा जाये तो उत्तर आसानी से मिल जायेगा।

अमीर हो या गरीब, सब इस समय कोरोना से बुरी तरह डरे हुए हैं। लगभग पूरी दुनिया लॉक डाउन में है। लोग घरों में कैद हैं। आर्थिक मंदी के साथ ही आमदनी घटने, नौकरी जाने की पूरी आशंका है। डर, असुरक्षा की भावना, नकारात्मक सोच और एकाकीपन से लोग बेचैन हैं, तनाव में हैं। डिप्रेशन के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसी मनःस्थिति में लोग मददगार को ही दुश्मन समझ लेते हैं, नकारात्मक सोच और फ्रसटेशन के कारण ही लोगों में ‘हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे’ का मनोविज्ञान काम कर रहा है। कोरोना के वहम या संक्रमण की आशंका वाले कुछ लोग टेस्ट रिपोर्ट आने के पहले ही फ्रसटेशन का शिकार होकर थूकने या नोट आदि चाटने की हरकत करने लगते हैं।

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मनोचिकित्सक और मनोचिकित्सक ने भी समाज में पनप रहे इन खतरों के प्रति लोगों को आगाह किया है। मनोविशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस कोरोना संकट से दुनियाभर के लोगों की मानसिक सेहत पर खराब असर पड़ेगा और इसका असर लंबे समय तक रहेगा।

कोरोना काबू में आने और लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद मानसिक रूप से बीमार ऐसे लोगों की संख्या बढ़ जाएगी। उन्हें लगातार परामर्श या काउंसिलिंग और कुछ मामलों में दवा की भी जरूरत पड़ेगी। ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आर ओकॉनर का कहना है कि शराब, नशे की लत, साइबर बुलिंग, बेरोजगारी,रिश्ते टूटने की वजह से चिंता और डिप्रेशन बढ़ेगा। इसकी अनदेखी से समस्या और विकराल हो सकती है।

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ब्रिटेन की संस्था ‘लैंसेट साइकेट्री’ ने मार्च अंतहाल ही में 1100 लोगों का सर्वे किया था। पता चला कि लॉकडाउन और आइसोलेशन में रहने से लोगों में कारोबार डूबने, नौकरी जाने और बेघर होने तक का खौफ पैदा हो गया है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एड बुलमोर कहते हैं कि हमें डिजिटल संसाधनों का पूरी क्षमता से उपयोग करना होगा। लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को जांचने के लिए बेहतर और स्मार्ट तरीके खोजने होंगे। ऐसा करके ही हम इस चुनौती का सामना कर पाएंगे।

मीडिया में तबलीगी जमात और जानबूझ कर संक्रमण फ़ैलाने जैसे विषयों पर दिन भर बहस हो रही है लेकिन कोरोना संकट से उबर चुके समाज की मेंटल हेल्थ पर मीडिया का ध्यान कम ही है। कोरोना का इलाज और वैक्सीन खोजने के लिए दुनिया भर में युद्ध स्तर पर रिसर्च और प्रयोग हो रहे हैं। इसके साथ ही सभी देशों को मानव सभ्यता के इस सबसे बड़े संकट के कारण इंसान के दिमाग पर होने वाले असर को लेकर भी रिसर्च पर ध्यान देना चाहिए। व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए लोगों का मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी बहुत जरूरी है।

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