खत्म हो रही हैं GST की दिक्कतें, अब अर्थव्यवस्था में सुधार के नये संकेत

जीएसटी का शुरुआती व्यवधानकारी प्रभाव अब खत्म हो गया है। महंगाई नियंत्रित है और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि सकारात्मक है। ऐसे में अर्थव्यवस्था अब फर्राटा भरने को तैयार है। वित्त मंत्रालय के आर्थिक कार्य विभाग के सचिव एस. सी. गर्ग का कहना है कि महंगाई की दर आज काफी नीचे है। वहीं मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र ने अगस्त में 3.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है जबकि पूर्व के दो महीनों में यह -0.5 प्रतिशत और -0.3 प्रतिशत थी। इसके साथ ही जीएसटी लागू होने पर शुरुआती व्यवधानकारी प्रभाव भी अब खत्म हो गया है।

गर्ग ने यह बात महंगाई और औद्योगिक उत्पादन के ताजा आंकड़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए कही। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया ट्विटर पर व्यक्त की। गौरतलब है कि अगस्त में औद्योगिक उत्पादन की दर बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो गयी है जो बीते नौ महीनों में सर्वोच्च है। आइआइपी में यह वृद्धि मुख्यत: खनन और बिजली क्षेत्र में शानदार वृद्धि और कैपिटल गुड्स के उत्पादन में वृद्धि से हुई है।

दरअसल सरकार की यह प्रतिक्रिया इसलिए अहम है क्योंकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश की विकास दर घटकर 5.7 प्रतिशत पर आ गयी है जो बीते तीन साल में न्यूनतम है। विकास दर में गिरावट की मुख्य वजह नोटबंदी का असर और जीएसटी की तैयारियों के चलते औद्योगिक गतिविधियों में ठहराव आना है। हालांकि विकास दर सुस्त पड़ने के बावजूद रिजर्व बैंक ने हाल में अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा करते समय रेपो दर को छह प्रतिशत पर बरकरार ही रखा है। आरबीआइ ने अपने इस निर्णय की वजह मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावनाओं को बताया है।

हालांकि गर्ग का कहना है कि सितंबर में खुदरा महंगाई दर 3.3 प्रतिशत रही है। वहीं खाद्य महंगाई दर 1.8 प्रतिशत के स्तर पर है। इस तरह खुदरा महंगाई दर आरबीआइ के लक्ष्य चार प्रतिशत से काफी नीचे है। बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि अर्थव्यवस्था आने वाले दिनों में गति पकड़ेगी।

आर्थिक विकास दर में सुधार पर ज्यादा आशावान: भल्ला 

हाल में गठित प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य सुरजीत भल्ला ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष में दर 6.5 फीसद रह सकती है। हालांकि सरकार ने पहले 7.3 फीसद विकास दर की अनुमान जताया था। दो सप्ताह पहले के मुकाबले आज वह विकास दर को लेकर ज्यादा आशावान हैं। हाल में गठित प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य सुरजीत भल्ला ने एक इंटरव्यू में यह बात कही है। एक अन्य सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के मुकाबले 3.2 फीसद राजकोषीय घाटा लक्ष्य को हासिल कर सकती है। बैंकों के पुनर्पूजीकरण के प्रयासों के तहत सरकार बैंकों और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बेचने की रफ्तार तेज कर सकती है।

बगैर जीएसटी नंबर के अब राज्यों को नहीं मिल पाएगा मिड-डे मील के लिए खाद्यान्न

स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले मिड-डे मील के लिए राज्यों को अब जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) नंबर लेना अनिवार्य होगा। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) ने इसके बगैर राज्यों को आगे खाद्यान्न देने से मना कर दिया है। एफसीआइ ने इसकी जानकारी मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भी दी है। मंत्रालय ने सभी राज्यों को शीघ्र ही जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने का निर्देश दिया है।

खास बात यह है कि मिड-डे मील के तहत मिलने वाले खाद्यान्न को सरकार ने जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है। एफसीआइ ने अपने कामकाज को पारदर्शी बनाने के लिए इसे अनिवार्य किया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के स्कूली शिक्षा विभाग के मिड-डे मील डिवीजन ने सभी राज्यों से कहा है कि इसका मतलब मिड-डे मील को जीएसटी के दायरे में लाया जाना नहीं है। एफसीआइ ने अपने कामकाज को पारदर्शी बनाए रखने के लिए ही यह व्यवस्था की है। मंत्रालय के मिड-डे मील डिवीजन के निदेशक जी. विजय भास्कर ने राज्यों से मिड-डे मील का खाद्यान्न लेने के लिए जीएसटी नंबर लेने को कहा है।

योजना के तहत मौजूदा समय में देश के करीब 12.65 लाख स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील दिया जाता है। इसके लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी एफसीआइ की है। केंद्र राज्यों को प्रति बच्चे के हिसाब से धन मुहैया कराता है। इसके तहत बच्चों को स्कूलों में पोषक आहार उपलब्ध कराया जाता है।

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मिड-डे मील की यह है मौजूदा व्यवस्था

केंद्र की वित्तीय मदद से संचालित मिड-डे मील के संचालन की जिम्मेदारी राज्यों पर है। राज्य सरकार को एफसीआइ से खाद्यान्न की खरीद करनी होती है। अन्य सामग्रियों की खरीद के लिए राज्य सरकार ने एक प्रणाली विकसित कर रखी है। इसके तहत ही पूरी खरीद की जाती है।

 
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