सरकार के लिए आई मुश्किल, लेकिन कोर्ट निरस्त कर सकता है 35 ए

 जम्मू कश्मीर के नागरिक होने का दर्जा तय करने का राज्य सरकार को हक देने वाला अनुच्छेद 35ए आजकल सवालों में है। सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत दो याचिकाएं लंबित हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अनुच्छेद 35ए में बदलाव करने या इसे समाप्त करने का सरकार के पास क्या अधिकार है और प्रक्रिया क्या है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट इस मामले में किस हद तक हस्तक्षेप कर सकता है।

सरकार के लिए आई मुश्किल, लेकिन कोर्ट निरस्त कर सकता है 35 ए

कानूनविदों की मानें तो सरकार के लिए इससे छेड़छाड़ करना बहुत आसान नहीं है लेकिन कोर्ट संवैधानिक मानदंडों की कसौटी पर खरा न पाने पर इसे निरस्त कर सकता है।

संविधान के पीछे एपेन्डिक्स में शामिल अनुच्छेद 35ए सवालों में इसलिए है क्योंकि इसे संविधान में शामिल करने से पहले अन्य अनुच्छेदों की तरह संसद में चर्चा नहीं हुई और न ही ये संसद से पास होकर आया।

ये अनुच्छेद 1954 में राष्ट्रपति आदेश से संविधान में शामिल हुआ। इसे संविधान का हिस्सा बनाने से पहले तय प्रक्रिया पूरी न होने के आधार पर एक वर्ग लगातार इसकी खिलाफत करता आ रहा है।

यह भी तर्क है कि जब राष्ट्रपति के आदेश से इसे शामिल किया जा सकता है तो फिर राष्ट्रपति उसे वापस भी ले सकते हैं। लेकिन पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी इससे सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं कि अब ये अनुच्छेद संविधान का हिस्सा है और कानूनन इसकी उतनी ही अहमियत है जितनी अन्य अनुच्छेदों की है। इसमें कोई भी बदलाव या संशोधन करने के लिए संविधान संशोधन की प्रक्रिया अपनानी होगी, जो कि बहुत आसान नहीं है। हालांकि वे मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक कसौटी पर कमजोर पाकर इसे निरस्त कर सकता है।

संविधान संशोधन की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में दी गई है जिसके मुताबिक संशोधन का प्रस्ताव दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास होना चाहिए इसके बाद पचास फीसद राज्य विधानसभाओं से मंजूर होने के बाद ही संशोधन हो सकता है। लेकिन संविधानविद सुभाष कश्यप का मानना है कि अनुच्छेद 35ए में बदलाव के लिए संविधान संशोधन की तय प्रक्रिया पूरी करना जरूरी नहीं है इसे दूसरे तरीके से भी कानूनन और संवैधानिक तौर पर हटाया व बदला जा सकता है।

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कश्यप कहते हैं कि अनुच्छेद 35ए के प्रेसीडेंशियल आदेश की शुरुआत में कहा गया है कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 370(1) में दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जम्मू कश्मीर सरकार की सहमति से ये आदेश जारी कर रहे हैं। इसी प्रक्रिया से इसे हटाया या बदला जा सकता है। राष्ट्रपति जम्मू कश्मीर सरकार से मशविरा करके अनुच्छेद 35ए के प्रेसीडेश्यिल आदेश को वापस ले सकते हैं या इसमे बदलाव कर सकते हैं। कानून और राजनीति दोनों का अनुभव रखने वाले उत्तर प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता और वरिष्ठ वकील विजय बहादुर सिंह भी कश्यप की दलीलों से सहमत नजर आते हैं।

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