शादी में बिछिया पहनने और मेंहदी लगाने की ये है बड़ी वजह
हिंदू संस्कृति की मान्यताओं को अक्सर अंधविश्वास का नाम देकर उसकी आलोचना की जाती है। जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आर्य संस्कृति की हर मान्यता के पीछे वैज्ञानिक तर्क भी हैं। शादी में मेंहदी लगाने और बिछिया पहनने की परंपरा को ही ले लीजिए। इन दोनों के पीछे अपने वैज्ञानिक तर्क हैं। ऐसी ही कुछ अन्य मान्यताएं जो हमारे दैनिक जीवन में देखने को मिलती हैं। आइए जानते हैं क्या हैं इनके पीछे के वैज्ञानिक तर्क…
नमस्कार में छिपा है अच्छे स्वास्थ्य का मंत्र
जब आप अपनी दोनों हथेलियों को जोड़कर नमस्कार करते हैं तो एक ऊर्जा पैदा होती है। नमस्कार करना खुद को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने के बराबर है।
बिछिया पहनना
शादी के वक्त कन्या के पैर में बिछिया दबाया जाता है। दोनों पांवों के बीच की तीन उंगलियों में बिछिया पहना जाता है। मांग में सोने का टीका सजाने और चांदी की बिछिया पहनने का अर्थ है कि नवविवाहिता को आत्मकारक सूर्य और मन कारक चंद्रमा दोनों की कृपा मिलती रहे।
माथे पर तिलक लगाना
माथे के मध्य में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इस स्थान पर तिलक लगाने से व्यक्ति को अपनी ओर अन्य लोगों का ध्यानाकर्षण करने में मदद मिलती है।
मंदिर में इसलिए बजाया जाता है घंटा
मंदिर में घंटे की आवाज से वहां मौजूद कई जीवाणु नष्ट होते हैं और साथ ही वातावरण से निगेटिव एनर्जी भी दूर होती है।
तुलसी और पीपल की पूजा
तुलसी में मौजूद रसायन कीटनाशक का काम करते हैं। इसलिए तुलसी के सेवन और तुलसी की पूजा करने से हमें उसका लाभ मिलता है। इसी तरह पीपल का भी धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों तरह से महत्व है। यह वृक्ष अन्य पेड़-पौधों की तुलना में अधिक मात्रा में वातावरण में ऑक्सीजन की अभिवृद्धि करता है।
भोजन के अंत में मिठाई
जब हम किसी साधु संत को भोज कराते हैं तो अंत में मिठाई अवश्य परोसते हैं। इसका कारण यह है कि मसालेदार भोजन को खाने से शरीर में कुछ एसिड बनने लगते हैं और ये ही एसिड भोजन को पचाने का काम करते हैं। मीठा खाने से उन एसिड से पैदा होने वाली जलन को कुछ हद तक शांत किया जाता है।
हाथों में मेंहदी लगाना
मेंहदी को एक औषधि माना जाता है और तन को शीतलता प्रदान करती है। शादी से पहले दुल्हन को मेंहदी लगाने से उसे विवाह संबंधी तनाव से राहत मिलती है