रोहिंग्याओं पर सरकार ने क्या कार्रवाई की, प्रदेश हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट ने रोहिंग्याओं को प्रदेश से बाहर भेजे जाने पर सरकार से जवाब मांगा है। इनके खिलाफ क्या कार्रवाई की और क्या कदम उठाए, इसकी जानकारी सरकार को देनी होगी। एडवोकेट हुनर गुप्ता की ओर से दायर एक जनहित याचिका में म्यांमार और बांग्लादेश से अवैध रूप से जम्मू-कश्मीर में आए रोहिंग्याओं की पहचान करने के लिए एक पूर्व सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति व सरकार को इस दिशा में निर्देश देने की मांग की गई है।

मंगलवार को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन कोटिश्वर सिंह व न्यायाधीश एमए चौधरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई की। खंडपीठ ने सरकार को उच्चतम न्यायालय में लंबित रोहिंग्याओं के मामले में नवीनतम स्थिति और कार्रवाई के बारे में सूचित करने को कहा। जम्मू-कश्मीर या संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रदेश में कभी भी कोई शरणार्थी शिविर घोषित नहीं किया गया है।

याचिका में बांग्लादेशी और म्यांमार के अवैध अप्रवासियों को दिए गए सभी लाभों को वापस लेने की मांग की गई है। प्रदेश में 13400 म्यांमार और बांग्लादेशी अवैध अप्रवासी जम्मू-कश्मीर राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहे हैं। हालांकि वास्तविक आंकड़े आधिकारिक आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं। 1982 में म्यांमार सरकार ने उन्हें गैर-राष्ट्रीय घोषित कर दिया, जिसके कारण उनका पड़ोसी बांग्लादेश, थाईलैंड और यहां तक कि पाकिस्तान में प्रवास हुआ, हालांकि इन देशों में भी उनका स्वागत नहीं किया गया।

याचिका में बताया गया कि लगभग 1700 रोहंगिया परिवार जिनमें लगभग 8500 लोग शामिल हैं प्रदेश में हैं। यह विभिन्न बस्तियों में रहते हैं। भू-माफिया राज्य की भूमि, प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से वन क्षेत्रों के साथ-साथ जल निकायों पर अतिक्रमण करने के लिए, बांग्लादेश और म्यांमार के इन अवैध अप्रवासियों को पहले वन क्षेत्रों और जल निकायों के पास बसाते हैं।

बांग्लादेश और म्यांमार के कई अवैध अप्रवासियों ने अवैध रूप से राशन कार्ड, मतदाता कार्ड, आधार कार्ड के साथ-साथ स्थायी निवासी प्रमाण पत्र हासिल कर लिए हैं। उन पर मादक पदार्थों की तस्करी, हवाला लेनदेन जैसी विभिन्न राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का संदेह है।

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