MBBS डॉक्टरों के लिए नया ‘लोगो’, अब पैथी का भ्रम दूर हो जाएगा

नागपुर. आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि एमबीबीएस करने वाले डॉक्टरों के लिए एक नया ‘लोगो’ आ रहा है। इसका उपयोग अब सिर्फ एमबीबीएस करने वाले डॉक्टर ही करेंगे। इसके लिए हमें एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) मिल गई है और जल्द ही उसका पंजीयन होने वाला है। इसके बाद डॉक्टरों की पैथी का भ्रम दूर हो जाएगा।
MBBS डॉक्टरों के लिए नया 'लोगो', अब पैथी का भ्रम दूर हो जाएगा
शनिवार को आईएमए हाउस में पत्रकारों से रू-ब-रू डॉ. अग्रवाल ने कहा कि सभी पैथी में पढ़ने वाले अपने नाम के आगे डॉ. लगाते हैं। इनमें होमियोपैथी, आयुर्वेद, फिजियोथेरेपी आदि शामिल हैं। बकौल डॉ. अग्रवाल, हमने इसका विरोध किया और कहा कि आयुर्वेद वाले वैद्य और अन्य अपनी पैथी के अनुसार लिखें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कोई भी पैथी वाला सुनने को तैयार नहीं था। इसलिए हम अपना अलग लोगो लाए हैं। इसे एनओसी मिल चुकी है और सिर्फ पंजीयन कराना शेष है।

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आईएमए के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अशोक अढाव, निर्वाचित महाराष्ट्र अध्यक्ष डॉ. वाई.एस. देशपांडे, नागपुर के अध्यक्ष डॉॅ. वैशाली खंडाईत, सचिव डॉ. प्रशांत राठी, पूर्व नागपुर अध्यक्ष डॉ. अविनाश वासे, डॉ. अजय काटे आदि उपस्थित थे।
 
घर में बैठने के लिए भी लगती हैं ढेरों एनओसी
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि एक डॉक्टर को घर में बैठने के िलए भी ढेरों एनओसी की जरूरत पड़ती है। इससे इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिलता है। इसकी शिकायत भी की गई है। मांग की गई है कि क्लीनिकल स्टेब्लिसमेंट एक्ट के साथ सारी एनओसी के िलए सिंगल विंडो व्यवस्था हो। इस पर सरकार का कहना है कि स्वास्थ्य से जुड़े जितने भी विभाग हैं, उनकी एक साथ अनुमति मिल जाएगी लेकिन अन्य विभाग के बारे में कहना मुश्किल है। उल्लेखनीय है कि पीसीपीएनडीटी, एमटीपी, ध्वनि-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, एनएमसी, बॉयो मेडिकल वेस्ट के लिए कई विभागों की एनओसी लेनी पड़ती है।
आतिशबाजी से रहेंगे दूर
आईएमए से जुड़े चिकित्सक इस दिवाली आतिशबाजी से दूरी बनाएंगे। प्रदूषणमुक्त दीपावली मनाया जाएगा।
 
सरकार ही लगा सकती है रोक
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि एक कंपनी एक दवा तीन नाम से अलग-अलग बेचती है। इनकी कीमतों में बहुत ज्यादा अंतर होता है। ऐसे में डॉक्टर पर आरोप लगते हैं कि वह महंगी दवाएं लिख रहा है। तीन अलग-अलग दाम पर कोई दवा अलग-अलग नाम से बेची जाती है, जिसकी अनुमति सरकार देती है। उस पर ही रोक लगनी चाहिए। डॉक्टरों को रेट की पूरी जानकारी नहीं होती कि कौन सी दवा कितने की बिक रही है।
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