भाजपा सरकार का बड़ा बयान, बिहार-महाराष्ट्र में मिलकर लड़ेंगे चुनाव
पिछले चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर बिहार की 40 सीटों में से 31 पर एनडीए के उम्मीदवार जीते थे। उनमें से 22 भाजपा, 6 लोजपा और 3 रालोसपा को मिली थीं। अकेले लड़ने वाले जदयू को केवल दो सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लड़े राजद को चार और कांग्रेस को दो सीटों पर विजय मिली थी। एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी) के खाते में गई थी। अब जदयू की एनडीए में वापसी हो चुकी है। वह केवल दो सीटों पर तो सीमित नहीं रहना चाहती। जदयू नेता 25 सीटों मांग रही है। यानी जदयू को साधने के लिए एनडीए घटकों को अपनी जीती हुई सीटें छोड़ना पड़ेंगी। इसी वजह से उनमें बेचैनी है।
भाजपा के सूत्रों के अनुसार, वह खुद केवल 22 जीती हुई सीटों पर लड़ेंगी। बाकी बची हुई 18 सीटों में से 6 पर लोजपा और 12 पर जदयू के उम्मीदवार लड़ेंगे। चूंकि रालोसपा अपने अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री घोषित करने जैसे बहुत असंगत मांगे कर रही हैं, उसे एनडीए से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। वैसे भी कुशवाहा राजद नेता तेजस्वी यादव से कई बार मुलाकात कर चुके हैं। वे केवल एक ही शर्त पर एनडीए में रुक सकते हैं यदि वे अपनी मांग जीती हुई तीन सीटें तक सीमित कर लें। तब तीनों अन्य दल अपने कोटे की एक-एक सीट रालोसपा के लिए छोड़ देंगे।
महाराष्ट्र की गुत्थी
पार्टी के सूत्रों के अनुसार, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ हुई मुलाकात के बाद दोनों दल 2014 के फार्मूले पर राजी हैं। तब भाजपा ने राज्य की 48 में से 26 सीटों पर चुनाव लड़ कर 23 पर विजय पाई थी। सेना ने 22 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 18 सीटें जीती थीं। लेकिन विधानसभा सीटों के बंटवारे को लेकर अभी भी दोनों पार्टियां अड़ी हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में पार्टियां अलग अलग लड़ी थीं। तब भाजपा ने 260 सीटों पर लड़कर 122 जीती थीं जबकि सेना ने 282 पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह केवल 63 सीटें ही जीत पाई थी। सेना चाहती है कि भाजपा लोकसभा की ज्यादा सीटों पर लड़े और उसे विधानसभा की ज्यादा सीटों पर लड़ने दे। लेकिन पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो चुकी भाजपा इसके लिए तैयार नहीं है। हालांकि उसका मानना है कि वह इस मामले पर भी कोई बीच का रास्ता निकालने में कामयाब हो जाएगी।