स्वाइन फ्लू : थोड़ी सी लापरवाही बन सकती है खतरनाक, सही इलाज में ना करें देरी

एक बार फिर स्वाइन फ्लू ने डराकर रख दिया है। उत्तरी भारत में कड़ाके की ठंड के मौसम में तापमान के उतार-चढ़ाव ने इसकी आशंकाओं को बढ़ा दिया है।

देश के अलग-अलग राज्यों में एक बार फिर स्वाइन फ्लू का प्रकोप जारी है। अकेले दिल्ली में बीते पंद्रह दिनों के भीतर स्वाइन फ्लू के डेढ़ सौ से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा राजस्थान और पंजाब में भी हालात बुरे होते नजर आ रहे हैं।
कई अन्य फ्लू की ही तरह स्वाइन फ्लू में भी नाक से पानी आना, बार-बार छींक आना, कफ, गले में खराश और शरीर में दर्द आदि की शिकायत रहती है। इसकी स्थिति में ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत होती है।
वर्ष 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) ने इसे पैन्डेमिक (महामारी ) करार दे दिया था। बावजूद इसके चिकित्सकों का कहना है कि अगर समय रहते स्वाइन फ्लू के लक्षणों की पहचान कर ली जाए और कुछ जरूरी टेस्ट करवाने के साथ तुरंत इलाज की प्रक्रिया शुरू कर दी जाए तो इसकी गंभीर स्थिति से निपटा जा सकता है। पहले से ही किसी बीमारी से लंबे समय से ग्रस्त व्यक्ति या जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है और गर्भवती महिलाओं को स्वाइन फ्लू की चपेट में आने की आशंका ज्यादा रहती है।

क्या है स्वाइन फ्लू
यह सांस संबंधी एक ऐसी बीमारी है, जो संक्रमण के जरिए फैलती है और सामान्यत: सूअरों में पायी जाती है। पश्चिमी देशों से फैली यह बीमारी आज बदलते मौसम के साथ दुनियाभर के कई देशों में तेजी से फैल रही है। इस रोग का वाहक टाइप ‘ए’ इन्फ्लूएंजा वायरस एच1एन1 है, जिसकी खोज सबसे पहले सन 1930 में की गयी थी। दरअसल, यह वायरस हवा के जरिये हमारे वातावरण में फैलता है, जिसके शुरुआती लक्षण सामान्य बुखार के रूप में सामने आते हैं। किसी ठोस स्थान पर एच1एन1 वायरस 24 घंटे तक जीवित रह सकता है, जबकि किसी तरल स्थान पर यह केवल 20 मिनट तक जीवित रहता है।
कैसे फैलता है  
स्वाइन फ्लू वायरस विभिन्न जानवरों और पक्षियों में प्रविष्ट होकर उन्हें संक्रमित कर देता है। इंसान के शरीर में यह वायरस बहुत कम देखा जाता है। मनुष्यों में एच1एन1 वायरस सूअर के अधिक संपर्क में रहने की वजह से होता है। इसके अलावा अगर सूअर के मांस को ठीक से पकाकर न खाया जाए तो भी यह वायरस फैलता है। एच1एन1 के अलावा इस वायरस के खोजे गए अन्य प्रतिरूपों में एच1एन2, एच3एन2 और एच3एन1 आदि शामिल हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि  पक्षी इन्फ्लूएंजा, मानव इन्फ्लूएंजा और सूअर इन्फ्लूएंजा यह तीन प्रकार के इन्फ्लूएंजा आपस में मिलकर बार-बार अलग-अलग ढंग से प्रकट होते हैं। इस विषाणु के कारण सूअरों में सर्दी, छींक, नाक एवं आंख से पानी बहने जैसे लक्षण पैदा होते हैं। इसलिए संक्रमित सूअर के संपर्क में रहने वाले व्यक्ति जब इस वायरस की चपेट में आ जाते हैं तो उनके छींकने या खांसने से उनके आस-पास के लोगों को भी यह वायरस अपना शिकार बना लेता है। संक्रमित व्यक्ति द्वारा दरवाजे, फोन, की-बोर्ड, रिमोट कंट्रोल जैसे रोजाना के इस्तेमाल में आने वाली आम चीजों से भी यह वायरस तेजी से फैल सकता है।

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