रिसर्च में खुलासा: जानिए क्यों आती है आत्महत्या की ईच्छा…

हर 40 सेंकड में दुनिया में कोई व्यक्ति सुसाइड यानी आत्महत्या कर लेता है। यह काफी चौंकाने वाला तथ्य है लेकिन भारत में आंकड़े और भी ज्यादा भयावह स्थिति बयां करते हैं। दक्षिण-उत्तर एशिया में भारत में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है। दुनिया के जेनेरेशन जेड यानी 90 में पैदा हुए लोगों के बीच आत्महत्या मौत का दूसरा बड़ा कारण है।

लड़कियों की हर छोटी बड़ी परेशानियों को फोकस में रखकर वीमेन हेल्थ और केयर पर फोकस करने वाली वेलनेस साइट हेल्थ शॉट्स पर छपी रिपोर्ट के मुताबिक मानसिक स्वास्थ्य ने कई शारीरिक बीमारियों जैसे कैंसर, जन्मजात अक्षमता, फेफड़ों और दिल की बीमारियों को पीछे छोड़ दिया है यानी मानसिक स्वास्थय खराब होने की वजह से लोगों की मौतें हो रही हैं। जिस तरह से हमने शारीरिक परेशानियों के उदाहरण दिए, उसके विपरीत  दिमाग में क्या चल रहा है या इसकी क्या स्थिति है, यह चिकित्सा क्षेत्र में किसी रहस्य की तरह ही है। 

 रिसर्च करने वाले डॉक्टर और वैज्ञानिक इस स्थिति की पकड़ से अब उतनी दूर नहीं हैं। Journal Molecular Psychiatry में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया गया कि दिमाग में मौजूद किन कारकों की वजह से कोई व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है।

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“जरा कल्पना करें, जिस बीमारी को हम जानते हैं उसकी वजह से सालाना करीब एक मिलियन लोग मर जाते हैं जबकि इसके चौथाई लोग तीस साल की उम्र के होते हैं। फिर भी हम इस बीमारी के बारे में इतना नहीं जानते कि कह सकें कि कुछ लोग इस बीमारी की चपेट में आखिर क्यों आ जाते हैं?”
शोर्ध की पहली लेखिका डॉ एनि लोरा बन हरमेनल (कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी)  ने कुछ इस तरह इस बीमारी पर प्रकाश डाला था। इसके साथ ही उन्होंने कहा “हम आत्महत्या के साथ इस स्थिति में पहुंच गए हैं। हम दिमाग के बारे में बहुत कम जानते हैं कि इसके साथ क्या चल रहा है। आत्महत्या के मामलों में लिंग अंतर भी देखें और यह खासतौर पर जवान लोगों को ही अपनी चपेट में ले रहा है।” 

रिसर्च टीम ने अपने दो दशकों के अवलोकन में मस्तिष्क में आने वाले आत्महत्या के ख्यालों और व्यवहार में बदलाव पर स्टडी की, इसके फलस्वरुप उन्होंने पाया कि दिमाग की संरचना, कार्य, आणविक बदलाव आदि आत्महत्या के खतरे को बढ़ाने वाली वजह बन सकते हैं। वहीं, उन्होंने दिमाग में मौजूद दो नेटवर्क की पहचान की, जिसकी वजह से कुछ लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति सबसे ज्यादा पाई जाती है। 

दूसरे नेटवर्क के क्षेत्र को ‘डोरसल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स’ और ‘इंफीरियर फ्रंटल गाइरस सिस्टम’ के नाम से जाना जाता है। इस नेटवर्क में बदलाव होने से आत्महत्या करने का प्रभाव बढ़ता है। इसी भाग में फैसले लेने की क्षमता, परेशानियों का हल निकालना और व्यवहार को नियंत्रित करने जैसी भूमिकाएं भी जुड़ी हुई हैं। 

यह स्टडी क्यो हैं जरुरी 

सोचिए कि आप बीमार हैं और आप में जी मिचलाना, बुखार और शरीर में दर्द होने के लक्षण दिख रहे हैं। ऐसे में लक्षण को देखते हुए आप पेरासिटामोल की गोली लेंगे, जिससे आपको आराम मिलेगा लेकिन जब आप डॉक्टर के पास जाएंगे, तो वो किसी भी एंटीबॉयोटिक्स की दवा देने से पहले आपको ब्लड टेस्ट आदि कराकर परेशानी का पता लगाएगा। 

इसी तरह आत्महत्या के मामले में दिमाग की स्थिति या आत्महत्या के खतरे को मापकर मदद नहीं की जा सकती। इस वजह से मानसिक रोगों के विशेषज्ञ अक्सर किसी व्यक्ति के लक्षण या उसके द्वारा पहले की गई आत्महत्या की कोशिश को देखते हुए उसका ईलाज करते हैं। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि  रिसर्च के द्वारा उजागर हुई इन बातों से मानसिक रोगों के ईलाज के लिए एक दिशा मिलेगी। जिससे बेहतर ईलाज के साथ आत्महत्या के बढ़ते खतरे के कम होने की उम्मीद भी की जा रही है। 

                                                                                                                                         साभार :हेल्थ शॉट्स

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