कामसूत्र अश्लीलता नहीं, इसमें छुपे है ऐसे राज जो बताता है जीवन में…

कई हज़ार वर्षों पूर्व श्रृषि वात्स्यायन ने अपने 64 सूत्री ग्रंथ की रचना की थी जिसमें काम एवं स्त्री-पुरुष के प्रणय़ संबंधों की गहराई एवं इसके इतिहास का जिक्र मिलता है । हालांकि कामसूत्र की रचना संस्कृत भाषा में की गई लेकिन बीते कई दशकों में इसके तथ्यों को आधार बना कर विभिन्न भाषाओं में इस पर कई किताबें, कई फिल्में बनाई गई जिसमें मूल रुप से सिर्फ मानव की शारीरिक उत्तेजना, काम-वासना इत्यादि की पूर्ति का जिक्र किया गया ।

कामसूत्र में अश्लीलता नहीं

आपको हैरानी होगी कि जिस समय में इसे लिखा गया था उस सदी में पोर्नोग्राफी शब्द के कोई मायने नहीं थे और ये कामसूत्र मनुष्य के शारीरिक और मानसिक गतिविधियों को खुलकर समझाने वाले किसी टेक्स्ट बुक से कम नहीं था लेकिन आज के युग में जहां सूचना और ज्ञान के अनगिनत आयाम हैं, ये अश्लीलता का ही प्रमाण बन कर रह गया है ।

 

जबकि कामसूत्र महज़ सहवास के विभिन्न तौर-तरीकों को ही नहीं दर्शाता बल्कि ये स्त्री-पुरुष के संबंधों को मधुर बनाए रखने एवं परस्पर सामंजस्य स्थापित करने के लिए भी प्रेरित करता है ।

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इसमें सौंदर्य बढ़ाने से लेकर, पुरुषार्थ बढ़ाने और समय के अनुकूल मिलन करने के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है । साथ ही पुरुषों में स्त्रियों द्वारा पसंद किए जाने वाले गुणों पर भी चर्चा की गई है । आपको बता दें कि कामसूत्र की रचना के पहले से ही मानव जाति के शारीरिक संबंधों का प्रमाण मिलता है यानि कि स्त्री-पुरुष के संगम का इतिहास सदियों पुराना है ।

इसके मायने क्या हैं

प्राचीन शास्त्रों में भी चारों पुरुषार्थ का वर्णन किया गया है जिसमें धर्म, अर्थ, मोक्ष के साथ ‘काम’ का ज़िक्र होना इस बात की पुष्टि करता है कि ये मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

सही मायनों में यह वासना से अलग शब्द है ,काम से तात्पर्य है पांचों इन्द्रियों के साथ अपने मन अपने आत्मा के योग से संपूर्ण सुख प्राप्त करना, काम क्षणिक नहीं होता इसका अर्थ है आनंद के चरम पर पहुंचकर अपने जीवन को सकारात्मकता की ओर गतिमान बनाना ।

इसलिए कामसूत्र को अगर आप सिर्फ किसी कामुक साहित्य के तौर पर लेते हैं तो आपको इसे दूसरे नज़रिये से भी देखने की आवश्यकता है ।

आज के युगलों को क्या सिखाता है सदियों पुराना कामसूत्र

  • यह सिर्फ सेक्स नहीं बल्कि हमारे सेक्सुअल ऐनर्जी को सही दिशा में उपयोग करने को प्रेरित करता है ।
  • सिर्फ एक की संतुष्टि की बात नहीं करता इसमें दोंनो ओर बराबर सुख और आनंद को तवज्जो दिया गया है ।
  • ये मूल रुप से इंसान के ‘सेक्सुअल’ व्यवहार एवं गतिविधियों पर केंद्रित है ।
  • ये सहभागिता पर ज़ोर देते हुए पुरुषों के साथ स्त्रियों को भी पहल करने के सामान अवसर देता है ।
  • पुरुष को गुणवान स्त्री को पाने योग्य बनना सिखाता है  ।
  • ये चरमोत्सर्ग की अपेक्षा स्पर्श और प्रेमालाप के महत्व को बताता है ।
  • साथ ही ये अपेक्षाओं में जीने की बजाय स्वंय के शरीर को पसंद करना, प्रेम करना भी सिखाता है शरीर की बनावट को लेकर साथी की असहजता या उस पर प्रश्न उठाना प्रेम नहीं हो सकता ।
  • ये एक-दूजे के लिए स्वतंत्रता एवं समर्पण की भावना रखने को भी प्रेरित करता है।
  • ये बताता है कि ‘काम’ मानव शरीर की मूल आवश्यकता है इसलिए प्रसन्न रहने के लिए तथा स्वस्थ रहने के लिए  इसे अपनाना चाहिए ।
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