फ्लेवर वाली लॉलीपॉप बताएंगी, रोगी को मुंह का कैंसर है या नहीं!

कई बार कैंसर की जांच ही पहले ही बड़ी तकलीफ झेल रहे मरीज के लिए बहुत कष्टदायी हो जाती है. ऐसी एक जांच मुंह के कैंसर के लिए की जाने वाली बायोप्सी है, जिसमें मरीज के मुंह के अंदर कैमरा डाला जाता है और तस्वीरें लेकर जांचा जाता है कि मरीज को कैंसर है या नहीं. अगर है, तो किस स्टेज का है वगैहर वगैरह. पर वैज्ञानिक एक नई तकनीक पर काम कर रहे हैं जिसमें स्वादिष्ट लॉलीपॉप ही सारी जानकारी दे सकेगी.

बायोप्सी के ऐसे परंपरागत बहुत प्रभावी तो होते हैं, लेकिन वे दर्दनाक, समय लेने वाले होते हैं जिनमें खास तरह का काबिलियत भी लगती है. दूसरी तरफ, इंडीपेंडेट के मुताबिक, लॉलीपॉप वाली तकनीक एक सौम्य तरीका और बेहतर विकल्प पेश करेगी. इस तकनीक पर यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के वैज्ञानिक काम कर रहे हैं.

इस लॉलीपॉप में स्मार्ट हाइड्रोजेल जैसे पदार्थ का उपयोग किया जाएगा. जब मरीज लॉलीपॉप चूसेंगे, तो उस पर मरीज की लार लिपट जाएगी. हाड्रोजेल एक तरह की आणविक जाली की तरह काम करेगी, जिसमें लार और कैंसर के बायोमेकर का काम करने वाले प्रोटीन फंस जाएंगे.

बाद में ये फंसे हुए प्रोटीन को लैब में हाइड्रोजेल से काट कर निकाला जाएगा और उसकी जांच कर विश्लेषण किया जा सकेगा. बर्मिंघम यूनिवर्सिटी में बायोसेंसर्स की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रुचि गुप्ता को पूरी उम्मीद है कि यह प्रोजेक्ट सफल होकर ही रहेगा, जिसके अगले चरण पर काम चल रहा है.

इस प्रोजोक्ट की कैंसर रिसर्च यूके और इंजीनियरिंग एंड फिजिक्स साइंस रिसर्च काउंसिल की ओर से करीब 3 करोड़ 69 लाख रुपये का अनुदान मिला है. फिलहाल शोधकर्ता लॉली पॉप के लिए सही फ्लेवर की तलाश में लगे हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान जांच के तरीकों में होने वाली परेशानी से यह तकनीक निजात दिलाने में सफल रहेगी.

इस तकनीक की सबसे अच्छी बात यही है कि यह मुंह के कैंसर को पकड़ने के कम तकलीफ देने वाली और ज्यादा सहूलियत वाली है क्योंकि इसे विकसित करने का मकसद ही यही है. इतना ही नहीं, इससे जांच के नतीजों में भी बेहतर सटीकता देखने को मिलेगी और कैंसर देखरेख की दिशा में मरीजों की तकलीफ कम हो जाएगी.

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