74 हजार साल पहले आई थी कयामत, खत्म ही होने वाले थे इंसान, लेकिन फिर जो हुआ…

इंसान के इतिहास में कई मौके ऐसे भी आए हैं जब उसके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था. लेकिन 74 हजार साल पहले एक घटना ऐसी हुई थी, जिससे इंसानों के पूरी तरह के खत्म होने की नौबत आ गई थी, लेकिन इंसान इससे बचने में सफल रहे. सुमात्रा के माउंट टोबा पर एक अतिविशाल ज्वालामुखी जो पृथ्वी के इतिहास का सबसे शक्तिशाली विस्फोट था. वैज्ञानिकों का दावा है कि इस ज्वालामुखी के कारण पृथ्वी से सफाया ही हो गया था, लेकिन नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मानव इस विनाशकारी घटना से कैसे बच सका.

इस अध्ययन में उत्तरपश्चिम इथोपिया में हुई पुरातत्व खुदाई से कुछ चौंकाने वाला जानकारियां हासिल की हैं. नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि उस जगह को शिफना-मेतेमा 1 कहा जाता है. शोधकर्ताओं ने ज्वालामुखी ग्लास, जानवरों के अवशेष, और मानव निर्मत औजारों का माइक्रोस्कोप से अध्ययन किया.

अध्ययन के प्रमुख लेखक जॉन केपलमैन ने सीएनएन को बताया कि ये टुकड़े इंसानी बालों से भी ज्यादा महीन थे, फिर भी इनका रासायनिक विश्लेषण किया जा सका. शोधकर्ताओं नेपाया कि उस समय इंसानों ने शानदर लचीलापन दिखाय और विपरीत हालातों में गजब की जीवटता दिखाई. इस दौरान उन्होंने अपनी खुराक में बदलाव किया और स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर सूखे और गर्म हालात में खुद को जिंदा रखा.

इन हालातों में भोजन के लिए केवल जमीनी जानवरों पर निर्भर रहने की जगह इंसानों ने मछलियों को अपने भोजन के रूप में अपनाया. भूभाग बलने से जमीन में छोटे गड्ढे बन गए थे जहां से मछली पकड़ना आसान हो गया था. खुराक में यह लचीलापन लाना इंसानों के लिए बहुत ही कारगर साबित हुआ.

स्टडी इस धारणा को चुनौती देती है कि इसकी वजह से इंसान अफ्रीका से बाहर बसने को मजबूर हो गया था. शोधकर्ताओं का कहना है कि हरियाली का इंतजार करने की जगह इंसानों ने नीले रास्ते, यानी नदियों के रास्ते अपनाए होंगे और पास ही के नए इलाके में पहुंचे होंगे. खुदाई मिले उपकरण बताते हैं कि उस समय के इंसानों ने शिकार अपनाने के साथ ही उपकरणों में हालात के मुताबिक बदलाव भी किए थे. दावा किया जा रहा है यह अध्ययन होमोसेपियन्स विकास और विस्थापन की बहुत ही जरूरी जानकारी देने वाला साबित होगा

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