राज्यसभा में भी संशोधन बिल पास, गृह मंत्री ने कहा-1947 में बंटवारे के बाद…

राज्यसभा में जबरदस्त सियासी गहमागहमी के बीच चर्चित नागरिकता संशोधन विधेयक 125 के मुकाबले 105 मतों से पारित हो गया। इसी के साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से उत्पीड़न के शिकार गैर मुस्लिम छह समुदायों को भारत की नागरिकता देने का कानूनी रास्ता साफ हो गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को विधेयक पर हुई मैराथन चर्चा का जवाब देते हुए विपक्षी दलों पर नागरिकता बिल के नाम पर देश के मुसलमानों में भय और संशय पैदा करने का आरोप लगाया।

अमित शाह ने दिया विपक्ष की आपत्तियों पर जवाब

उनका साफ कहना था कि यह विधेयक भारत के किसी मुसलमान की नागरिकता छीनने नहीं बल्कि इन तीन देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने से जुड़ा है। गृह मंत्री ने यह भी दोहराया कि धर्म के आधार पर देश का बंटवारा नहीं होता तो इस विधेयक को लाने की जरूरत ही नहीं होती।राज्यसभा में करीब सात घंटे की चर्चा के बाद विपक्ष के दर्जनों संशोधनों और विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के प्रस्ताव को बहुमत से खारिज कर दिया गया। राज्यसभा में विधेयक पर मतदान के दौरान शिवसेना ने सदन से बाहर रहकर इसमें हिस्सा नहीं लिया।

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सदन के कुल 240 में से 10 सदस्य अलग-अलग वजहों से अनुपस्थित रहे। सरकार और विपक्ष के बीच बिल को लेकर सदन में जमकर सियासी संग्राम हुआ। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रवर समिति में भेजने और अपने संशोधनों के लिए विपक्ष ने पांच बार सदन में मत विभाजन करा सरकार को वोटिंग के लिए बाध्य किया।

दिखा सियासी कौशल

विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने संयम, आक्रामकता और सियासी कौशल का जबरदस्त मेल करते हुए विपक्षी दलों के सभी सवालों का जवाब दिया। विधेयक को मुस्लिम विरोधी बताने पर उन्होंने कहा कि देश के गृह मंत्री के नाते वह सभी मुस्लिम भाई-बहनों से कह रहे हैं कि वे इस देश के सम्मानित नागरिक हैं और उनकी नागरिकता का इस बिल से कोई लेना-देना नहीं। गृह मंत्री ने कई बार तथ्यों के साथ कांग्रेस को आईना दिखाते हुए बताया कि किस तरह 1947 की कांग्रेस कार्यसमिति में पाकिस्तान में प्रताड़ित सिखों और हिंदुओं के हितों की रक्षा के लिए प्रस्ताव पारित किया गया था। इसी तरह संप्रग सरकार के दौरान राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मांग पर 13 हजार सिखों और हिंदुओं को नागरिकता दी गई थी। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने भी 2003 में बांग्लादेश से उत्पीड़न के शिकार होकर आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने की संसद में बात कही थी। गृह मंत्री ने कटाक्ष करते हुए कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति के प्रस्ताव को जब मोदी सरकार लागू कर रही है तो फिर कांग्रेस क्यों विरोध कर रही है?

पाकिस्तान की भाषा बोलती है कांग्रेस

अमित शाह ने कहा कि यह संयोग है या कुछ और मगर सच्चाई यह है कि कांग्रेस के नेताओं की भाषा और पाकिस्तान की भाषा एक जैसी दिखती है। पाकिस्तान के पीएम का बयान और कांग्रेस के एक नेता का सदन में बयान बिल्कुल एक जैसा है। सर्जिकल स्ट्राइक और अनुच्छेद 370 के समय भी इन दोनों के बयान इसी तरह एक समान थे। गृह मंत्री के इस आरोप का कांग्रेस सदस्यों ने जोरदार विरोध करते हुए हंगामा भी किया। हालांकि इसके बावजूद गृह मंत्री ने कहा कि नेहरू-लियाकत समझौते का पड़ोसी देश पालन करता, तो इस विधेयक की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने आंकड़ों और तथ्यों के साथ यह बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों पर भयंकर अत्याचार हुए हैं और इन समुदायों को नागरिकता देना भारत का कर्तव्य है।

मुस्लिमों के लिए रास्ता बंद नहीं

गृह मंत्री ने स्पष्ट किया कि मुसलमानों को देश में शरण मांगने का रास्ता बंद नहीं किया गया है। मोदी सरकार इन तीनों देशों में व्यक्तिगत रूप से प्रताड़ित होने वाले मुसलमानों की भी चिंता करती है और पिछले पांच वर्षों में वहां से आने वाले 566 मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी गई है। उन्होंने विपक्ष पर पंथनिरपेक्षता को सीमित दायरे में देखने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे सिर्फ मुसलमान को शामिल होने को ही पंथनिरपेक्षता मानते हैं। भारत को मुस्लिम मुक्त करने के आरोपों पर गृह मंत्री ने कहा कि ऐसी बचकानी बातें विपक्ष को नहीं करनी चाहिए। शाह ने कहा कि यह देश मुसलमान मुक्त नहीं होगा क्योंकि हमारा एक ही धर्म है, वह है संविधान, जो देश को कभी भी मुस्लिम मुक्त बनाने की इजाजत नहीं देता।

मुस्लिम विरोधी नहीं है सरकार

कांग्रेस की ओर से मोदी सरकार को मुस्लिम विरोधी साबित करने के लिए एक के बाद एक विधेयक लाने के आरोप का अमित शाह ने तीखा प्रतिकार किया। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि अनुच्छेद 370, तीन तलाक और नागरिकता कानून में संशोधन मुस्लिम विरोधी नहीं हैं। मोदी सरकार ने मुस्लिम माताओं व बहनों को उनका अधिकार दिया है। इसी तरह से कश्मीर में मुस्लिम के अलावा हिंदू, सिख, जैन व बौद्ध सभी धर्म को मानने वाले रहते हैं। अनुच्छेद 370 हटाने को मुस्लिम विरोधी कैसे बताया जा सकता है। इसी तरह नागरिकता कानून में संशोधन किसी को नागरिकता देने के लिए है, किसी की नागरिकता लेने के लिए नहीं है। इस दौरान गृह मंत्री ने जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के संसद में बयान का हवाला दिया तो टीएमसी सांसदों ने व्यवस्था का सवाल उठाकर जमकर हंगामा किया। टीएमसी के विरोध के मद्देनजर गृह मंत्री ने तब ममता के बयान का उल्लेख करने पर जोर नहीं दिया।

कानून सम्मत है विधेयक

विधेयक को संविधान के अनुच्छेद 14 समेत तमाम प्रावधानों के खिलाफ बताने और सुप्रीम कोर्ट में इसके खारिज हो जाने के विपक्षी दलों के तर्क को भी तथ्यों के साथ गृह मंत्री ने नकार दिया। साथ ही कहा कि यह विधेयक बिल्कुल कानून और संविधान सम्मत है। श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को इसमें शामिल नहीं करने के सवाल पर गृह मंत्री ने साफ कहा कि समस्या विशेष के समाधान के लिए यह बिल लाया गया है। ऐसा पहले बांग्लादेश और युगांडा से आए भारतीय मूल के लोगों के लिए हो चुका है। ऐसे में जब श्रीलंका का मसला आएगा तो सरकार उसका समाधान करेगी।

गृह मंत्री ने यह भी कहा

– यह जल्दबाजी नहीं है। हम चाहते तो आपकी तरह सत्ता का सुख भोग सकते थे। लेकिन मोदी सरकार सत्ता का सुख भोगने के लिए नहीं, देश की समस्याओं का समाधान करने के लिए आई है। चुनाव साढ़े चार साल बाद है, इसके बावजूद हम लगातार काम कर रहे हैं।

– 1947 में बंटवारे के बाद एक प्रार्थना सभा में खुद महात्मा गांधी ने कहा था कि पाकिस्तान में रह गए हिंदू और सिख चाहें तो आ सकते हैं और भारत को उनकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

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