रंगों, फूलों से अलग वाराणसी में राख से खेली जाती है होली

होली खुशियों, रंगों का त्योहार है। इस दिन लोग सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर इस त्योहार की बधाइयां देते हैं और साथ में झूमते-गाते हैं। वैसे सिर्फ रंगों से ही नहीं, मथुरा-वृंदावन में तो फूलों, लड्डुओं से भी होली खेली जाती है और वाराणसी में तो चिता की राख से भी होली खेलने की परंपरा है। जिसे ‘मसाने की होली’ नाम से जाना जाता है। ये बहुत ही अलग तरह की होली होती है। अगर आप इस अनोखी होली का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको वाराणसी आना होगा। कल यानी 21 मार्च को काशी में चिता भस्म की होली खेली जाएगी। 

क्यों शुरू हुई ये परंपरा?

कहा जाता हैं रंगभरी एकादशी के दिन जब भोले शंकर माता पार्वती का गौना कराकर उन्हें काशी ले आए थे। तब उन्होंने सबके साथ मिलकर गुलाल से होली खेली थी, लेकिन वह भूत, प्रेत, पिशाच, जीव- जंतु आदि के साथ गुलाल वाली होली नहीं खेल पाए थे। फिर उन्होंने शमशान में रंगभरी एकादशी के ठीक एक दिन बाद अपनी इस टोली के साथ मसान की होली खेली थी, तभी से चिता भस्म  मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। 

कैसे मनाते हैं यह होली?

मसान होली खासतौर से वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर मनाई जाती है, जो यहां का प्रसिद्ध श्मशान घाट है। लोगों की भीड़ सुबह से ही यहां इकट्ठा होने लगती है। साधुओं और शिव भक्तों का समूह शिव की पूजा-अर्चना और हवन करता है। भजन-कीर्तन के साथ नृत्य का भी आयोजन होता है। फिर चिता-भस्म से होली खेली जाती है। 

मसान होली का उत्सव मृत्यु को एक दुख की तरह नहीं, बल्कि मोक्ष प्राप्ति की तरह देखना बताता है। अगर आपने पहले कभी ये होली नहीं देखी है, तो आप इस बार इसे देखने का प्लान बना सकते हैं। भारत के ज्यादातर शहरों से वाराणसी के लिए ट्रेनें और फ्लाइट्स की सुविधा है। कुछ अलग तरह की होली का एक्सपीरियंस इस बार लें।

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