पुलिस की एक छोटी सी चूक ने बेगुनाह को बना दिया अभियुक्त, कोर्ट जारी किया गिरफ्तारी वारंट

पुलिस की एक छोटी सी चूक ने बेगुनाह का सुख चैन छीन लिया। गिरफ्तारी न हो जाए इसलिए वह भागा-भागा घूम रहा है। दरअसल, पुलिस ने विवेचना तो सही आरोपित के नाम से की लेकिन चार्जशीट में गलत नाम लिख दिया। इस पर कोर्ट ने भी संज्ञान ले लिया। दस वर्ष बाद गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ तो बेगुनाह को इसकी जानकारी हुई। अधिवक्ता अब हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।

ये है मामला

मामला दो सगे भाइयों से जुड़ा है। 13 दिसंबर 2006 को तत्कालीन नजीराबाद इंस्पेक्टर परशुराम त्रिपाठी ने शास्त्री नगर निवासी अनीस तिवारी को तमंचे के साथ गिरफ्तार कर जेल भेजा था। सीएमएम कोर्ट से जमानत मिली तो भाई मनीष तिवारी ने जमानत के रूप में बंधपत्र दाखिल किए। अनीस पर मुकदमा चलाने के लिए डीएम की अनुमति आवश्यक थी, लिहाजा पुलिस ने 9 जनवरी 2007 को तत्कालीन जिलाधिकारी अनुराग श्रीवास्तव की अनुमति प्राप्त की।

यहां हुई गलती

एसआइ कुंवरपाल सिंह ने पूरी विवेचना अनीस के नाम से की लेकिन चार्जशीट में मनीष का नाम लिख दिया। कोर्ट ने 16 मार्च 2007 को चार्जशीट पर संज्ञान लेकर मनीष के खिलाफ वारंट जारी कर दिया।

गिरफ्तारी वारंट जारी होने पर उठा पर्दा

अधिवक्ता अविनाश कटियार बताते हैं कि दिसंबर 2009 को जारी जमानती वारंट दस वर्ष तक चलता रहा। वारंट जमानती था इसलिए पुलिस ने भी तामील नहीं कराया। 22 मई 2019 को न्यायालय ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया। वारंट लेकर पुलिस घर पहुंची तो घटनाक्रम से पर्दा उठा। अधिवक्ता के मुताबिक वह हाईकोर्ट में चार्जशीट क्वैश का प्रार्थना पत्र देंगे।

इनका ये है कहना

पुलिस ने बड़ी गलती की है। इससे एक बेगुनाह परेशान हो रहा है। चार्जशीट पर संज्ञान जब लिया गया तभी गौर किया जाना चाहिए था। हाईकोर्ट से निश्चित ही राहत मिलेगी।

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