हिमानी कल्याण को बचपन से कार चलाने का शौक था, जबकि उसके पिता उसे कार चलाने से मना करते थे। अपनी जिद से पायलट बन गईं। पढ़िए हिमानी की प्रेरणा भरी कहानी..
महाराष्ट्र में गोंदिया के बिरसी हवाई पट्टी से उड़ान भरकर मध्यप्रदेश के बालाघाट के खैरलांजी में बाणगंगा नदी में 26 अप्रैल को क्रैश हुए एयरक्राफ्ट हादसे में मृतक ट्रेनी कामर्शियल पायलट हिमानी कल्याण (24) का शव जैसे ही उसके पैतृक गांव कुटेल में पहुंचा तो हर किसी की आंखें नम हो गई। ग्रामीण बुधवार से शव के इंतजार में थे। वीरवार दोपहर को हिमानी का शव गांव में पहुंचा तो सन्नाटा पसर गया।
हर किसी की जुबान पर यही बात थी कि एक बेटी का सपना पूरा होने से पहले बेटी ही एक सपना बन गई। बता दें कि हिमानी ने 199 घंटे हवाई प्रशिक्षण के पूरे कर लिये थे, मात्र एक घंटा बाकी था, यह हिमानी के लिए ट्रेनिंग की आखिरी उड़ान थी, लेकिन लाइसेंस मिलने से एक घंटे पहले ही हिमानी की जिंदगी की आखिरी उड़ान बन गई। वहीं, ट्रेनी पायलट के परिवार की महिलाएं रोते-रोते यही बोलती रही कि उनकी बेटी ने अभी तक नाम कमाया था।
महिलाओं का कहना था कि बेटी हिमानी ने छोटी सी उम्र में बड़ा काम कर दिया। अगर एक घंटे की उड़ान सफलतापूर्वक पूरी हो जाती तो हिमानी पायलट बन जाती। जबकि भगवान को यह मंजूर नहीं था, बेटी की उड़ान पूरी होने से पहले बेटी जिंदगी से ही उड़ान भर गई। गौरतलब है कि महाराष्ट्र के गोदियां के बिरसी हवाई पट्टी से बुधवार सुबह नौ बजे हिमानी कल्याण ने अपने ट्रेनर पायलेट रंजन गुप्ता के साथ उड़ान भरी थी।
हिमानी महाराष्ट्र गोंदिया स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एविएशन ट्रेनिंग एंड मैनेजमेंट से कामर्शियल पायलट की दो साल से ट्रेनिंग ले रही थी और यह उसकी ट्रेनिंग की आखिरी उड़ान थी।
उड़ान भरने के लगभग 55 मिनट बाद ही उनका एटीसी से संपर्क टूट गया और मध्यप्रदेश स्थित बालाघाट से 65 किलोमीटर दूर लावनी और महाराष्ट्र के देवरी गांव के बीच ट्रेनिंग एयरक्राफ्ट बाणगंगा नदी में क्रैश हो गया। इसमें उसकी मौत हो गई। हिमानी का जन्म गांव कुटेल में हुआ था। इसके बाद हिमानी के पिता गुरदयाल अपने परिवार के साथ लगभग दो दशक से दिल्ली में रह रहे थे, लेकिन उनके बड़े भाई जसमेर व कृपाल सिंह गांव कुटेल में ही रह रहे है।