नेताजी की फाइलों में दबा रहस्य और राजनीति

subhashfiles_20_09_2015प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात” में इसे अपने लिए बड़ी खुशी का मौका बताया कि अगले महीने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 50 से ज्यादा परिजन प्रधानमंत्री निवास आएंगे। लेकिन उन्होंने नेताजी से संबंधित फाइलों का कोई जिक्र नहीं किया। पूरी संभावना है कि नेताजी के परिजन इन फाइलों को जारी करने की मांग प्रधानमंत्री के सामने रखेंगे, जबकि मोदी सरकार इससे इनकार कर चुकी है।

तीन हफ्ते पहले केंद्र ने साफ-साफ कहा कि नेताजी से संबंधित फाइलों को जारी नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे दूसरे देशों से भारत के संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। एक साल पहले खुफिया ब्यूरो ने भी आरटीआई कानून के तहत उसके पास मौजूद फाइलों को देने से मना कर दिया था। पिछले 18 अगस्त को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने फेसबुक पेज के जरिए ‘पुण्यतिथि” पर सुभाष चंद्र बोस को श्रद्धांजलि दी। 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू में हुए विमान हादसे में ही नेताजी की मृत्यु होने की घोषणा की गई थी। लेकिन उनके कई परिजन और अनेक भारतवासी इस बात पर यकीन नहीं करते।

जाहिर है, गृह मंत्री की टिप्पणी से नेताजी के ऐसे मुरीद नाराज हुए। यही पृष्ठभूमि है जिसमें बीते शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने नेताजी से जुड़ी 64 फाइलें जारी कर दीं। इसके तुरंत बाद भाजपा महासचिव सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार के पास मौजूद ज्यादातर फाइलों का संबंध कांग्रेस सरकार द्वारा नेताजी के परिवार की जासूसी कराने से है, जबकि केंद्र के पास मौजूद फाइलें चार दूसरे देशों से संबंधित हैं। साफ है, ममता बनर्जी ने भले अपनी सरकार के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया हो, मगर जारी फाइलों से नेताजी की मृत्यु का रहस्य सुलझने की न्यूनतम संभावना है।

दरअसल, इनसे सिर्फ दो जानकारियां मिलती हैं। अमेरिकी और ब्रिटिश खुफिया संदेशों के हवाले से इनमें ऐसी चर्चा दर्ज है कि 1945 में मौत की घोषणा के बाद भी नेताजी शायद जीवित थे। लेकिन ऐसी चर्चाएं पिछले 70 साल से जारी हैं। दूसरी सूचना यह है कि 1972 तक नेताजी के परिवार की जासूसी हुई। मगर यह जानकारी भी हाल में केंद्र के हवाले से सार्वजनिक हो चुकी है।

इसीलिए यह मानने का ठोस कारण है कि ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले इन फाइलों के जरिए राजनीतिक चाल चली है। उन्होंने एक साथ भाजपा, वाम मोर्चे और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने का औजार जुटाया है। सबसे तीखा निशाना भाजपा पर है, जो पश्चिम बंगाल में नई उभरती ताकत है।

भाजपा दशकों तक नेताजी से संबंधित फाइलें जारी करने की मांग करती रही। लेकिन केंद्र में दो बार सत्ता में आने पर उसने खुद ऐसा नहीं किया। तो ममता इसे चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं। इसीलिए अब निगाहें प्रधानमंत्री से नेताजी के परिजनों की मुलाकात पर होंगी। क्या मोदी उस रोज कोई ऐसा एलान करेंगे, जिससे ममता का ताजा औजार भोथरा हो जाए?

 
 
 
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