कल राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा पद्मश्री डॉ. पातर का अंतिम संस्कार

पातर अपनी पत्नी के साथ लुधियाना में रहते थे। उनके बेटे मनराज पातर और अंकुर ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। उनके भारत लौटने पर 13 मई को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। 

मैं रात का आखिरी जजीरा… घुल रहा, विलाप करता हूं… मैं मारे गए वक्तों का आखिरी टुकड़ा हूं। जख्मी हूं अपने वाक्यों के जंगल में छिपा कराहता हूं, तमाम मर गए पितरों के नाखून मेरी छाती में घोंपे पड़े हैं। जरा देखो तो सही मर चुकों को भी जिंदा रहने की कितनी लालसा है।…अल्फाजों में दर्द को पिरोने वाले पंजाब की इस सदी के महान कवि पद्मश्री सुरजीत पातर (80) का शनिवार को निधन हो गया। 

सुरजीत पातर का निधन लुधियाना में उनके आवास पर दिल का दौरा पड़ने से हुआ। शनिवार सुबह उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान सहित कई प्रमुख हस्तियों ने निधन पर शोक प्रकट किया है। साहित्य अकादमी व पद्मश्री से सम्मानित पातर ने किसान आंदोलन के समर्थन में पद्मश्री लौटाने का एलान तक कर दिया था।
पातर अपनी पत्नी के साथ लुधियाना में रहते थे। उनके बेटे मनराज पातर और अंकुर ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। उनके भारत लौटने पर 13 मई को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। 

जालंधर के गांव पत्तड़ कलां में जन्मे सुरजीत पातर ने साहित्य के क्षेत्र में अहम उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने पंजाबी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। पंजाब विवि, पटियाला से मास्टर डिग्री लेने के बाद, पातर ने गुरु नानक देव (अमृतसर) विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद उन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (लुधियाना) में पंजाबी के प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया और वहीं से सेवानिवृत्त हुए। 

प्रमुख कविताएं, जो चर्चा का केंद्र रहीं
मोमबत्तियां, आइया नंद किशोर, हनेरा जरेगा किवें, फासला, कोई डालियां चों लंगिया हवा बणके, मैं रात का आखिरी जजीरा, कभी नहीं सोचा था, मेरी प्रतीक्षा, ग्यारह हजार रातें, दो वृक्षों की बातचीत, इक लरज़ता नीर था, एक लफ्ज विदा लिखना और जब बुत बन जाता है।

ये सम्मान मिले
1979 में पंजाबी साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1999 में पंचनद पुरस्कार, 2007 में आनंद काव्य पुरस्कार, 2009 में सरस्वती सम्मान, 2009 में गंगाधर राष्ट्रीय कविता, 2012 में पद्मश्री सम्मान, 2014 में कुसुमाग्रज पुरस्कार

फिल्मों में भी रहा योगदान
डॉ. पातर ने शहीद ऊधम सिंह और दीपा मेहता की हेवन ऑन अर्थ के पंजाबी संस्करण जैसी फिल्मों के लिए संवाद लिखकर पंजाबी सिनेमा में योगदान दिया।

आखिरी सांस तक पंजाबी भाषा के लिए फिक्रमंद रहे सुरजीत पातर
 सुरजीत पातर लोगों के शायर थे, हर साल 26 जनवरी को लाल किले में होने वाले कवि सम्मेलन में वह अपनी कविताएं सुनाते तो सामने दर्शक दीर्घा में खामोशी छा जाती। उनकी कविताएं सीधे लोगों के दिल में उतरतीं। अब ये कवि सम्मेलन होना बंद हो गया है, लेकिन 2014 तक वह लगातार इसमें हिस्सा लेते रहे। सुरजीत पातर से अपनी 42 साल पुरानी दोस्ती को याद करते हुए दिल्ली सरकार की पंजाबी अकादमी के पूर्व सचिव डॉ. रवैल सिंह की आंखें नम हो गईं।

 साहित्य अकादमी के पंजाबी सलाहकार बोर्ड के मौजूदा संयोजक  डॉ. रवैल सिंह ने कहा कि वक्त बेवक्त सुरजीत ने बहुत कुछ लिखा। जब पंजाब में उग्रवाद चरम पर था, तब उनकी कविताएं आवाम को सही रास्ता दिखा रही थीं। उनकी पंक्ति ‘पहले वार से सानू बंदया सी हुड़ शिवकुमार दी बारी है’ लोगों की जुबान पर रहती। 

  वह पंजाब में बढ़ती हिंसा और द्वेष से द्रवित थे। अपनी कविता में उन्होंने अपने अंदर के मनोभावों को उतार के रख दिया था। वह पंजाब के लोगों को बता रहे थे कि 1947 में देश के बंटवारे के साथ पंजाब का भी बंटवारा हो गया। अब यदि हिंदू भी हमसे अलग हो गए तो पंजाब के पास आखिर क्या बचेगा। रवैल सिंह कहते हैं कि पंजाबी की आधुनिक कविता में अमृता प्रीतम, शिवकुमार के बाद सुरजीत पातर का नाम आता है। उनकी कविताएं अमर हैं। पातर की कविताएं लोगों की जुबान पर चढ़ी हुई हैं। वह खुद स्टेज पर गाकर सुनाते भी थे।

गूगल के प्लेटफाॅर्म जैमिनी में पंजाबी शामिल नहीं होने पर चिंतित थे
पिछले हफ्ते ही चंडीगढ़ में हुए एक बड़े सेमिनार में रवैल सिंह की आखिरी बार अपने दोस्त सुरजीत से मुलाकात हुई थी। सुरजीत पातर पंजाब आर्ट्स काउंसिल के चेयरमैन थे, तो वहां दोनों ने ही मंच पर भाषण दिया था। शाम को भी बड़ी देर तक दोनों से साथ में समय बिताया। फिर बृहस्पतिवार को फोन पर बात हुई, जिसमें वह पंजाबी भाषा को लेकर बेहद फिक्रमंद थे। गूगल के प्लेटफाॅर्म जैमिनी में पंजाबी को शामिल नहीं किया गया है। इसको लेकर वह चिंतित थे, वह कह रहे थे कि पंजाबी के फ्यूचर इंटेलिजेंस के लिए ये अच्छा नहीं है। 

किसी की सिफारिश से नहीं मिले सम्मान
रवैल सिंह ने कहा कि सुरजीत पातर को किसी की सिफारिश से इतने बड़े-बड़े सम्मान नहीं मिले। सबसे पहले साहित्य अकादमी ने उन्हें सम्मान दिया। फिर बिड़ला फाउंडेशन की ओर से इन्हें सरस्वती सम्मान मिला। इसके बाद इन्हें महामहिम राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया। वह मार्च में साहित्य अकादमी के एक बड़े कार्यक्रम में शामिल होने दिल्ली आए थे, जिसमें दुनिया की 72 भाषाओं के 1200 से ज्यादा साहित्यकार हिस्सा ले रहे थे। शाम को कार्यक्रम खत्म होने पर वह सुरजीत के साथ आईआईसी घूमने चले गए। वहां पर एक बड़े अफसर ने इन्हें पहचान लिया। सुरजीत पहली बार उस शख्स से मिल रहे थे, लेकिन उसे हंसते हुए अपनी कविताएं सुना रहे थे। वह सही मायने में आम लोगों के कवि थे।

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