केंद्र सरकार का फैसला, नागरिकों का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार नहीं

केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि नागरिक अपने शरीर के अंगों पर “पूर्ण” अधिकार का दावा नहीं कर सकते. इसलिए वे आधार नामांकन के लिए डिजिटल फिंगरप्रिंट और आईरिस को लेने से मना नहीं कर सकते हैं. आयकर अधिनियम की धारा 139एए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में यह बात कही.नागरिकों का अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार नहीं

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एके सीकरी और अशोक भूषण की पीठ से एटर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि किसी के शरीर पर पूर्ण अधिकार की अवधारणा एक मिथक है और ऐसे कई कानून हैं, जो इस तरह के अधिकार पर प्रतिबंध लगाते हैं. आयकर अधिनियम की धारा 139 एए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में केंद्र ने अपना यह पक्ष रखा.

रोहतगी ने तर्क दिया कि कोई भी व्यक्ति अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार का दावा नहीं कर सकता है क्योंकि कानून लोगों को आत्महत्या करने और महिलाओं को अग्रिम चरण पर गर्भपात करने से रोकता है. यदि उनका अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार होता, तो लोग अपने शरीर के साथ जो भी करना चाहते, वह करने के लिए स्वतंत्र होते.कानून ने उन्हें पूर्ण अधिकार नहीं दिया है.

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हालांकि, अदालत ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि उनके द्वारा दिए गए उदाहरण उपयुक्त नहीं थे, क्योंकि यह मामले कराधान कानून से संबंधित है और अपराध के साथ नहीं. कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यक्ति के अधिकार और राज्य के कार्यों के बीच संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए.इस पर रोहतगी ने कहा कि एक आपराधिक मामले में आरोपी के रक्त और फिंगरप्रिंट के नमूने लेने के लिए सहमति नहीं ली जाती है. इसलिए पैन कार्ड को आधार के साथ जोड़ने में कोई बुराई नहीं है.

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