तमिलनाडु का उच्ची पिल्लयार गणेश मंदिर, जाना जाता है अपनी वास्तुकला के लिए

चारों तरफ गणेशोत्सव की धूम देखी जा सकती हैं। गणपति के मंदिरों में दर्शन करने के लिए भक्तों की कतारें लगी हुई हैं। सभी चाहते है कि गणेशोत्सव के इस पावन पर्व में गणपति के दर्शन कर खुद को आनंद की अनुभूति करवाई जाए। इसलिए भक्तगण के अनके मंदिरों के दर्शन करने जाते हैं। आज हम भी आपके लिए गणेश जी का एक ऐसा मंदिर लेकर आए हैं जो बहुत ही पुराना हैं और अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता हैं। हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु के उच्ची पिल्लयार गणेश मंदिर के बारे में। तो आइये जानते है इस मंदिर के बारे में।

तमिलनाडु के त्रिची में उच्ची पिल्लयार, भगवान गणेश का बहुत ही बड़ा मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर की ऊंचाई 273 फुट है। इस मंदिर का रास्ता 400 सीढ़ियों को तय करके ही आता है। पौराणिक साक्ष्य बताते हैं कि यह वो स्थान है जो भगवान गणेश और रावण के भाई विभिषण से जुड़ी एक हैरान कर देने वाली घटना से संबंध रखता है।

इस मंदिर की वास्तुकला देखने ही बनती है। इस मंदिर को रॉक फोर्ट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि यह मंदिर 86 फीट ऊंचे विशाल पत्थर पर बना है। माना जाता है कि इस पत्थर को काटना सबसे पहले पल्लवों ने शुरू किया था, लेकिन विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत मदुरई के नायकों ने इस मंदिर को पूर्ण किया। इस मंदिर को निहारने लोग दूर दूर से यहां आते हैं। यह प्राचीन मंदिर है इसलिए पूरी तरह से भारतीय पुरातात्विक विभाग के अंतर्गत सुरक्षित है। रात के समय इस मंदिर का जनमगाता स्वरूप और भी देखते बनता है।

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इस मंदिर से एक पौराणिक कहानी भी जुड़ी हुई है, ऐसा माना जाता है कि रावण के वध के बाद प्रभु राम ने भेट के रूप में विभीषण को रंगनाथ की एक मूर्ति दी थी। जो भगवान विष्णु का ही रूप है। जब यह मूर्ति विभीषण को दी गई तो सभी देवताओं इस बात का विरोध किया। इस मूर्ति की स्थापना के लिए विभीषण आगे बढ़ें और तमिलनाडु के त्रिची पहुंच गए। लेकिन इस मूर्ति के साथ एक तथ्य बी जुड़ा था वो यह था कि यह मूर्ति एक बार जहां रख दी जाएगी वहीं स्थापित हो जाएगी।

चूकि विभीषण बहुत चल चुके थे तो उनका स्नान करने का मन हुआ । सामने कावेरी नदी बह रही थी। नदी में स्नान के उद्देश्य से वे किसी को ढूंढने लगे। तभी उस स्थान पर एक चरवाहे बालक के रूप में भगवान गणेश का आगमन हुआ। विभीषण ने वो मूर्ति उस बालक के हाथ में थमा दी और कहा कि इसे जमीन पर न रखना। लेकिन जैसे ही विभीषण स्नान के लिए कावेरी नदी में उतरा, भगवान गणेश ने वो प्रतिमा जमीन पर रख दी।

यह देख विभीषण क्रोधित हो गया, और उस बालक के गुस्से से दौड़ा। विभीषण को आते देख भगवान गणेश वहां से भागकर एक पहाड़ी चोटी पर जा बैठे। आगे रास्ता नहीं था इसलिए बालक को वहीं रूकना पड़ा। बालक के इस व्यवहार से क्रोधित होकर विभीषण ने भगवान गणेश के सर पर वार किया। वार के बाद भगवान अपने स्वरूप में आए जिसके बाद विभीषण ने अपने किए की माफी मांगी। तब से गणेश भगवान इस ऊंची पहाड़ी पर विराजमान है।

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