चंडीगढ़: राज्यपाल ने फिर रोके तीन विधेयक

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद भी पंजाब सरकार और राजभवन में टकराव बरकरार है। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने प्रदेश सरकार की ओर से स्वीकृति के लिए भेजे तीन विधेयकों को रोक दिया है। बुधवार को राजभवन की ओर से राज्य सरकार को सूचित किया है कि संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत राष्ट्रपति के विचार के लिए तीन विधेयकों को आरक्षित रखा गया है। जून में पारित इन तीनों विधेयकों पर राज्यपाल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से सलाह लेकर ही फैसला लेंगे। राजभवन में लंबित इन तीन विधेयकों में सीएम को प्रदेश के विश्वविद्यालयों का चांसलर बनाने का विधेयक भी शामिल है।

पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक 2023, पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक 2023 और सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक 2023 इसी साल 19-20 जून को बुलाए गए विधानसभा सत्र में पारित किए गए थे। राज्यपाल की ओर से विधेयकों को स्वीकृति न दिए जाने पर पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

राज्यपाल ने उक्त विधेयकों के साथ 19-20 जून के विधानसभा सत्र को ही अवैध करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद राजभवन ने तीन वित्त विधेयकों को 28-29 नवंबर को बुलाए सत्र में पेश करने की अनुमति दे दी थी, लेकिन उक्त तीन विधेयकों पर फैसला नहीं किया। अब राज्यपाल का यह कदम सुप्रीम कोर्ट की ओर से 19-20 जून के सत्र को सांविधानिक रूप से वैध बताए जाने के कुछ दिनों बाद आया है।

रोके गए विधेयकों में ये हैं प्रावधान
सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक-2023 का उद्देश्य अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर से गुरबाणी का निशुल्क प्रसारण सुनिश्चित करना है। अब तक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से प्रसारण के अधिकार केवल एक निजी चैनल को दिए हुए थे।

पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक-2023 के जरिये राज्य की ओर से संचालित 12 विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में राज्यपाल की जगह सीएम को नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है। फिलहाल, नियमानुसार राज्य से सभी विश्वविद्यालयों के चांसलर सूबे के राज्यपाल हैं। उनकी संस्तुति से ही इन विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति हो सकती है।

पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक-2023 के जरिये राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) पद पर उपयुक्त व्यक्तियों के चयन और नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र प्रक्रिया तंत्र स्थापित करने का प्रावधान किया गया है। फिलहाल, डीजीपी की नियुक्ति के लिए उपयुक्त व्यक्ति का चयन यूपीएससी की ओर से राज्य सरकार की तरफ से वरिष्ठता के आधार पर भेजे गए अफसरों के पैनल से होता है।

विवाद के बाद सरकार लाई थी संशोधन विधेयक
पंजाब में आम आदमी पार्टी के सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच विभिन्न मुद्दों और अधिकार क्षेत्र को लेकर विवाद गहरा गया था। दोनों के बीच विवाद उस समय और गरमाया जब सीएम ने राज्य के तीन विश्वविद्यालयों में अपनी मर्जी से वाइस चांसलरों की नियुक्ति कर मंजूरी के लिए फाइल राज्यपाल के पास भेजी। राज्यपाल ने यह कहते हुए नियुक्तियों को रद्द कर दिया कि राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के चांसलर वह स्वयं हैं और वाइस चांसलरों की नियुक्ति का फैसला भी वही लेंगे। राज्य सरकार इस पद के लिए केवल नाम भेज सकती है। इसी दौरान, राज्यपाल ने डीजीपी की नियमित नियुक्ति न होने पर भी सवाल उठाए। इसी बीच, राज्य सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक-2023 और पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक-2023 समेत तीन विधेयक पारित कर दिए।

सरकार और राजभवन के बीच लंबा विवाद
बजट सत्र और उस दौरान पारित विधेयकों को बढ़ाकर सत्र बुलाने का मुद्दा मान सरकार और राजभवन के बीच विवाद के केंद्र में रहा है। 24 नवंबर को मुख्यमंत्री मान ने पुरोहित को पत्र लिखकर विधानसभा की ओर से पारित लंबित पांच विधेयकों पर अपनी सहमति देने का अनुरोध किया था। उस समय राज्यपाल ने कहा था कि वे उनके विचाराधीन हैं और कानून के अनुसार उचित निर्णय शीघ्रता से लिया जाएगा। पुरोहित ने पिछले हफ्ते पंजाब संबद्ध कॉलेज (सेवा की सुरक्षा) संशोधन विधेयक, 2023 को मंजूरी दे दी। एक अन्य विधेयक-राज्य सतर्कता आयोग (निरसन) विधेयक, 2022, जिसे सितंबर 2022 में पारित किया गया था, को अभी तक राज्यपाल की सहमति नहीं मिली है।

सुप्रीम कोर्ट ने सत्र को ठहराया था वैध
सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर के अपने फैसले में पंजाब के राज्यपाल को 19 और 20 जून को आयोजित सांविधानिक रूप से वैध सत्र के दौरान पारित विधेयकों पर निर्णय लेने का निर्देश देते हुए कहा था कि राज्यपाल की शक्ति का उपयोग कानून बनाने की प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने पंजाब की आप सरकार की याचिका पर फैसला सुनाया था।

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