मुकेश अंबानी के एंटीलिया से भी ऊंचे जेके हाउस में रहा करते थे, जानें क्या है ‘सिंघानिया का इतिहास’
बेटे गौतम की हिकारत की वजह से पाई-पाई को मोहताज हुए देश के जाने माने उद्यमी विजयपत सिंहानिया जवानी केे दिनों में अपने महंगे शौक के लिए जाने जाते थे। शौक भी ऐसा कि हर कोई सोच भी न सके। ‘पद्मभूषण’ पा चुके विजयपत बाबू को हवाओं में सैर करने का जुनून था। लंबी हवाई यात्राएं उनका शगल थीं। हवाई जहाज की रफ्तार कोई और तय करे, यह उन्हें मंजूर न था। वह अपना जहाज खुद उड़ाते थे।
एक बार तो कानपुर के लोगों को उन्होंने चौंका ही दिया। वर्ष 1988 की बात है। 12 सितंबर को कैंट के सिविल एयरपोर्ट पर माइक्रो लाइट एयरक्रॉफ्ट उतरा। पायलट सीट पर बैठा शख्स कोई और नहीं बल्कि कानपुर शहर के जाने माने शख्स विजयपत सिंहानिया थे। लंदन से कानपुर तक हजारों कि लोमीटर की दूरी उन्होंने अपना हवाई जहाज खुद चलाकर तय की थी। उनके स्वागत के लिए एयरपोर्ट के बाहर मेला लगा था। शहर के ज्यादातर लोगों को तब विजयपत बाबू के इस हुनर का पता चला था।
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उद्योगपति विजयपत सिंघानिया कभी ब्रिटेन से अकेले प्लेन उड़ाकर भारत आ जाते थे। देश से जाने-माने उद्योगपति मुकेश अंबानी के एंटीलिया से भी ऊंचे घर जेके हाउस में रहा करते थे। आज स्थिति ये है कि उन्हें उसी जेके हाउस में अपने ड्यूपलेक्स घर के पजेशन के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है। उनका दावा है कि बेटे ने उनसे गाड़ी और ड्राइवर भी छीन लिया है और उनके पास पैदल चलने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। वह फिलहाल दक्षिणी मुंबई में एक किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं।
शौक ने दिलाया सम्मान और पदक
सिंहानिया परिवार से जुड़े एक शख्स बताते हैं कि इसी शौक की वजह से उन्होंने दुनिया के 100 से ज्यादा देशों की यात्रा खुद जहाज उड़ाकर की। विजयपत स्वयं का विमान उड़ाने के साथ ही ईस्ट-वेस्ट, दमानिया एलाइंस और सहारा एयरवेज के जहाज भी उड़ा चुके हैं। उनके पास 7000 से अधिक घंटे की उड़ान का अनुभव है। इनके इसी शौक की वजह से उड्डयन खेल का सर्वोच्च पुरस्कार, फेडरेशन एयरोनॉटिक इंटरनेशनल गोल्ड मेडल भी उन्हें मिला।
सिंहानिया परिवार से जुड़े एक शख्स बताते हैं कि इसी शौक की वजह से उन्होंने दुनिया के 100 से ज्यादा देशों की यात्रा खुद जहाज उड़ाकर की। विजयपत स्वयं का विमान उड़ाने के साथ ही ईस्ट-वेस्ट, दमानिया एलाइंस और सहारा एयरवेज के जहाज भी उड़ा चुके हैं। उनके पास 7000 से अधिक घंटे की उड़ान का अनुभव है। इनके इसी शौक की वजह से उड्डयन खेल का सर्वोच्च पुरस्कार, फेडरेशन एयरोनॉटिक इंटरनेशनल गोल्ड मेडल भी उन्हें मिला।
वर्ष 1994 में इंटरनेशनल राउंड द वर्ल्ड एयर रेस के लिए दिया गया था। तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने इन्हें भारतीय वायुसेना के ‘एयर कमोडोर’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया था। इसके अलावा विजयपत बाबू भारतीय वायुसेना के बैटल ऐक्सेज के स्क्वाड्रन नंबर-7 के एकमात्र असैनिक सदस्य भी रहे। तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर के ‘लाइफ टाइम एचीवमेंट पुरस्कार’ और वर्ष 2006 में प्रतिष्ठित ‘पद्मभूषण’ से भी सम्मानित किए गए।