जानें क्‍यों पिछले 18 वर्षों से देवी के इस मंदिर में चढ़ाई जा रही हैं चप्पल-सैंडल

मंदिर के अंदर जाने से पहले अक्सर ‌हम अपने जूते चप्पल बाहर ही उतार देते हैं। मंदिर में जूते चप्पल पहनकर जाना निषेध होता है, लेकिन एक ऐसा मंदिर है जहां देवी को चप्पल सैंडल ही चढ़ाई जाती है। यही नहीं ये जूते चप्पल विदेशों से भी आते है। वैसे यहां पर जूते चप्पल चढ़ाने की परम्परा सदियों से नहीं है, बल्कि 18 साल पहले ही शुरू हुई है। जानें 18 साल पहले कैसे शुरू हुई ये परंपरा मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कोलार इलाके में एक पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर अपनी अनोनी परंपरा के कारण विश्वभर में प्रसिद्घ है। यहां भक्त अपनी मन्नत पूरी होने के बाद नए जूते, चप्पल व सैंडल चढ़ाते है। यही नहीं गर्मियों में तो लोग चश्मा, टोपी प घड़ी भी चढ़ाते है।

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जानें क्‍यों पिछले 18 वर्षों से देवी के इस मंदिर में चढ़ाई जा रही हैं चप्पल-सैंडल

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मां दुर्गा के सिद्घदात्री पहाड़ावला मंदिर को लोग जीजी बाई मंदिर भी कहते है। दरअसल करीब 18 वर्ष पहले ओम प्रकाश महाराज ने मूर्ति की स्‍थापना की और शिव पार्वती का विवाह करवाया। इस विवाह में उन्होंने खुद कन्यादान किया। तब से वे मां सिद्घदात्री को अपनी बेटी मानकर पूजा करते है। आम लोगों की तरह बेटी के सभी शौक पूरे भी करते हैं। ओम प्रकाश महाराज के अनुसार मां दुर्गा की देखभाल एक बेटी की तरह होती है। कई बार ऐसा भी होता है कि अगर उन्हें आभास हो कि देवी पहने गए कपडों से खुश नहीं है तो दो से तीन घंटों में ही कपड़े बदलने भी पड़ते है। 

विदेश में बस चुके जीजी बाई के भक्त भी उन्हें वहां से चप्पल- सैंडल भेजते है। एक दिन चप्‍प्ल चढ़ाने के बाद उसे बांट दी जाती है। 
 
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