केंद्र सरकार ने सब्सिडी में बड़ा बदलाव किया

केंद्र सरकार ने पिछले दस वर्षों में सब्सिडी में बड़ा बदलाव किया है। पहले खाद और खाद्य क्षेत्र के साथ पेट्रोलियम पर भी बराबर सब्सिडी मिलती थी। अब पेट्रोलियम पर महज 1.2 फीसदी जबकि 98 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी खाद और खाद्य पर दी जा रही है।

बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2014 तक सब्सिडी का 26.4 फीसदी हिस्सा खाद पर खर्च होता था। 36.1 फीसदी खाद्य क्षेत्र में और 33.5 फीसदी हिस्सा पेट्रोलियम में जाता था। यानी कुल सब्सिडी का 96 फीसदी हिस्सा इन्हीं तीनों पर खर्च होता था। अब खाद्य पर 47 फीसदी, खाद पर 44 फीसदी और पेट्रोलियम पर केवल 1.2 फीसदी हिस्सा खर्च हो रहा है। पेट्रोलियम पर सब्सिडी कम होने का कारण इसे सरकार के नियमन से बाहर रखना है। वित्त वर्ष 2010-2023 के बीच सालाना 2.5-2.6 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च हो रहे थे।  वित्त वर्ष 2017-19 के दौरान यह 5.4 फीसदी घटकर 2.2 लाख करोड़ रुपये हो गया, लेकिन कोरोना के बाद इसमें बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। वित्तवर्ष 2020 में कोरोना के प्रभावितों की मदद के लिए सब्सिडी बढ़कर 7.60 लाख करोड़ रुपये हो गई।

राज्यों का सब्सिडी खर्च 5.7 फीसदी बढ़ा 
2019 से 2023 के दौरान राज्यों का सब्सिडी पर खर्च 5.7% बढ़ गया है। कोविड से पहले यह दो से तीन लाख करोड़ था, जो अब 3.4 लाख करोड़ हो गया। राज्य ज्यादा सब्सिडी बिजली, पानी, कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में दे रहे हैं। 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 10 का योगदान 81% है। इसमें महाराष्ट्र 13.9%, तमिलनाडु 9.5% और गुजरात का 8.3 फीसदी योगदान है।

उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति 1,064 रुपये का खर्च
उत्तर प्रदेश सालाना प्रति व्यक्ति सब्सिडी पर 1,064 रुपये खर्च करता है। ओड़िसा में यह 865 रुपये है जबकि उत्तराखंड में 287 रुपये है। हालांकि, हिमाचल में 2,875 रुपये, मध्यप्रदेश 2,655 रुपये, हरियाणा में 3,692 रुपये प्रति व्यक्ति सब्सिडी पर राज्य खर्च कर रहे हैं। पंजाब, कर्नाटक, गुजरात और तमिलनाडु प्रति व्यक्ति 4,000 रुपये से ज्यादा खर्च कर रहे हैं।

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