शरद, लालू और पप्पू के रंग में रंगे मधेपुरा की सियासी जंग इस बार हुई बेरंग!

पटनाः बिहार की हाईप्रोफाइल सीटों में शुमार मधेपुरा संसदीय सीट कभी दिग्गज राजनेता शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और पप्पू यादव के रंग में रंगी नजर आती थी, लेकिन इस बार के चुनाव में इन तीन राजनेताओं में किसी के भी नहीं होने पर यहां की सियासी जंग ‘बेरंग’ हो गई है। मधेपुरा संसदीय क्षेत्र समाजवाद वाली राजनीति के जरिए जनता के बीच अलग पहचान बनाने वाले दिग्गज राजनेता शरद यादव का गढ़ रहा है।

मधेपुरा में अपना ‘रंग’ जमाने में माहिर शरद यादव, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और बाहुबली पूर्व सांसद पप्पू यादव के बीच की सियासी जंग भी यहां के वोटरों के लिए हमेशा रुचि का विषय रहा है। वर्ष 1991 से लेकर वर्ष 2019 तक मधेपुरा में हुए लोकसभा चुनाव में शरद यादव ने तो लगातार मधेपुरा से अपनी किस्मत आजमाई, वहीं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और पप्पू यादव ने भी कुछ मौके पर मधेपुरा से चुनाव लड़ा। तैतीस वर्षों में यह पहली बार हो रहा है जब मधेपुरा संसदीय सीट पर न तो शरद, न तो लालू और न ही पप्पू नजर आ रहे हैं। देश की राजनीति को प्रभावित करने वाले मंडल मसीहा के नाम से प्रसिद्ध शरद यादव ने 12 जनवरी 2023 को अंतिम सांस ली। वहीं, चारा घोटाला मामले में सजा होने के कारण राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चुनाव लड़ने से वंचित हैं।

पप्पू यादव ने वर्ष 2019 में मधेपुरा में हुई करारी हार के बाद अपना रणक्षेत्र बदल लिया और इस बार उन्होंने पूर्णिया से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपनी किस्मत आजमाई है। ऐसे में यहां के मतदाताओं को शरद-लालू और पप्पू की कमी खल रही है। मधेपुरा का चुनावी ‘रंग’ और सियासी ‘जंग’ बेरंग हो गया है। बिहार की सियासत में एक बड़ा ही प्रचलित नारा है,‘रोम है पोप का, मधेपुरा है गोप का।’वर्ष1962 के लोकसभा चुनाव में यह नारा इतना मशहूर हुआ कि मामला कोर्ट तक पहुंच गया। वर्ष 1962 में तीसरा आम चुनाव था, जब सोशलिस्ट पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले भूपेन्द्र नारायण मंडल (बीएन मंडल) ने सहरसा लोकसभा से प्रसिद्ध कांग्रेस के कद्दावर नेता ललित नारायण मिश्रा (पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बड़े भाई) को हराया था, लेकिन, फैसले को इस आरोप के आधार पर अदालत में चुनौती दी गई थी कि बीएन मंडल ने अपने एक पैम्फलेट में जातिवादी नारा ‘‘रोम है पोप का, मधेपुरा है गोप का” का इस्तेमाल किया था, जिसने सांप्रदायिक भावनाओं को हवा दी थी। मामला कोर्ट तक पहुंचा और अदालत ने 1962 के चुनाव परिणाम को अमान्य करार दिया और बीएन मंडल को कोई भी चुनाव लड़ने से रोक दिया। हालांकि, बाद में उन्होंने केस जीत लिया। वर्ष 1964 में सहरसा सीट पर उपचुनाव हुए।

इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे लहटन चौधरी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार बीएन मंडल को पराजित किया। वर्ष 1962 का यह नारा आज भी मधेपुरा की सच्चाई है। मधेपुरा लोकसभा के चुनावी इतिहास में तो यादव जाति के अलावा कोई सांसद बना ही नहीं। यहां का यादव वोटर ही किसी भी दल के नेता के चुनावी हार-जीत का रुख तय करते हैं। कहा जाता है कि मधेपुरा की राजनीति पूरे कोसी इलाके को दिशा देती है। सुपौल,मधेपुरा और खगड़िया लोकसभा सीटों पर सियासी एजेंडा सेट करने का काम मधेपुरा ही करता रहा है। देश में मंडलवादी राजनीति की प्रयोग भूमि और ‘यादव लैंड’ के नाम से मशहूर यह क्षेत्र समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं के लिए उर्वर रहा है। मधेपुरा लोकसभा सीट से (राजद) सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ,जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय शरद यादव, मंडल कमीशन के अध्यक्ष बिन्देश्वरी प्रसाद (बीपी मंडल), राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव जैसे राजनीतिक धुरंधर अपनी किस्मत आजमा चुके हैं।

मधेपुरा पहले सहरसा संसदीय क्षेत्र में शामिल था। वर्ष 1967 में मधेपुरा संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में आया। वर्ष 1967 से ही मधेपुरा देश के हॉट सीटों में शामिल रहा है। यहां शुरू से अब तक समाजवादियों का ही बोलबाला रहा है। समाजवादियों के बीच ही चुनावी टक्कर होती रही है, लेकिन कोई भी समाजवादी नेता हैट्रिक लगाने में सफल नहीं रहा। अब तक मधेपुरा के प्रथम सांसद बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) और शरद यादव ही लगातार दो बार लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे, हालांकि, हर चुनाव के बाद यहां की जनता अपना सांसद बदलती रही। बिहार के कोसी इलाके की हाईप्रोफाइल मधेपुरा लोकसभा सीट पर यहां के मतदाताओं ने लालू प्रसाद, शरद यादव और पप्पू यादव जैसे दिग्गजों को भी हार का स्वाद चखाया है। यहां से दो बार सांसद रह चुके पप्पू यादव की तीसरी बार जमानत हो गयी थी। मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र के लिए पहली बार 1967 में वोट डाले गए थे। मधेपुरा से पहली बार लोकसभा में नुमाइंदगी करने का गौरव दिग्गज समाजवादी नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल को हासिल है। इससे पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी बीपी मंडल ने वर्ष 1952 में त्रिवेणीगंज-मधेपुरा विधानसभा और वर्ष 1957 और वर्ष 1962 में कांग्रेस के टिकट पर मधेपुरा विधानसभा से जीत हासिल की थी। वर्ष 1967 के मधेपुरा लोकसभा चुनाव के पहले बीपी मंडल, डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए।

बीपी मंडल ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के टिकट पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस प्रत्याशी केके मंडल को पराजित किया। बीएन मंडल महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में संविद सरकार में सांसद होते हुए मंत्री बन गए। कांग्रेस इस सरकार को टिकने नहीं देना चाह रही थी और इससे पहले के मुख्यमंत्री केबी सहाय इसमें पूरी ताकत झोंक रहे थे। इसी क्रम में संविद सरकार के मंत्री बीपी मंडल को आगे किया गया। बीपी मंडल के मुख्यमंत्री बनने में अड़चन थी। रास्ता यह निकाला गया कि कोई दूसरा कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बन जाए और वह राज्यपाल के पास विधान परिषद के लिए बीपी मंडल के नाम की अनुशंसा कर दे तो काम हो जाएगा। बीपी मंडल ने सतीश सिंह के नाम पर सहमति जताई। महामाया प्रसाद की सरकार गिरी और सतीश प्रसाद सिंह मुख्यमंत्री बने। सतीश प्रसाद को कैबिनेट बुलाकर एक अनुशंसा करनी थी कि बीपी मंडल को राज्यपाल विधान परिषद के लिए नॉमिनेट कर दें। सतीश सिंह ने मंडल के लिए यह कर दिया। सतीश प्रसाद सिंह ने इस्तीफा दिया और बीपी मंडल, 01 फरवरी 1968 को बिहार के मुख्यमंत्री बने। हालांकि कुछ दिनों के बाद ही बीपी मंडल की सरकार गिर गई। भोला पासवान शास्त्री अगले मुख्यमंत्री बने। इसके बाद मधेपुरा लोकसभा सीट पर वर्ष 1968 में उपचुनाव करवाए गए। बीपी मंडल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भाग्य आजमाया, लोगों ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी उन्हें सिर आंखों पर बिठाते हुए विजयी बनाया।वर्ष 1971 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद यादव ने जीत हासिल की।

यादव ने शोषित दल बिहार उम्मीदवार बीपी मंडल को पराजित किया। मधेपुरा लोकसभा सीट में हार के बाद बीपी मंडल ने वर्ष 1972 में मधेपुरा विधानसभा सीट से चुनाव जीता। वर्ष 1977 में मधेपुरा लोकसभा चनाव में भारतीय लोक दल (बीएलडी) के टिकट पर बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने कांग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र प्रसाद यादव को मात दी।वर्ष 1980 के चुनाव में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री देवराज उर्स की पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (उर्स) के राजेंद्र प्रसाद यादव ने इंदिरा कांग्रेस के रामेंद्र कुमार यादव रवि को मात दी। जनता पार्टी के बीपी मंडल तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1984 के चुनाव में मधेपुरा सीट पर कांग्रेस के महावीर प्रसाद यादव ने लोकदल प्रत्याशी राजेन्द्र प्रसाद यादव को हराया। 11 अक्टूबर 1988 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर जब देश में विश्वनाथ प्रताप सिह (वीपी सिंह) के नेतृत्व में नई पार्टी जनता दल का गठन हुआ तो वर्ष 1989 में मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से रमेश कुमार यादव रवि (रमेंद्र कुमार रवि) को जनता दल का उम्मीदवार बनाया गया। कांग्रेस विरोधी लहर में रामेंद्र कुमार यादव रवि ने कांग्रेस के महावीर प्रसाद यादव को पराजित किया। निर्दलीय राजेन्द्र प्रसाद यादव तीसरे नंबर पर रहे।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शरद यादव ने मधेपुरा को अपनी सियासी कर्मभूमि के रूप में चुना। शरद यादव ने अपना पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 1974 में जबलपुर से जीता था। 27 साल के युवा नेता शरद यादव ने कांग्रेस के गढ़ जबलपुर को ढ़हा दिया और उपचुनाव जीत कर संसद में शानदार एंट्री मारी। इसके बाद शरद यादव वर्ष 1977 में भी जबलपुर सीट से जीते। वर्ष 1980 में विमान हादसे में इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी का निधन हो गया। उस समय संजय गांधी अमेठी के सांसद थे। वर्ष 1981 में अमेठी लोकसभा सीट पर शरद यादव ने लोकदल के टिकट पर काग्रेस प्रत्याशी इंदिरा गाधी के पुत्र राजीव गांधी के विरूद्ध चुनाव लड़ा, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसी जीत के बाद राजीव गांधी पहली बार संसद पहुंचे थे। शरद यादव ने वर्ष 1989 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश की बदायूं सीट जीती। वर्ष 1991 में मधेपुरा लोकसभा सीट पर चुनाव की कहानी काफी दिलचस्प है। इसी पृष्ठभूमि में लहटन चौधरी के शिष्य आनंद मोहन, जो वर्ष 1990 में जनता दल के टिकट पर सहरसा जिले के महिषी से बिहार विधान सभा के लिए सदस्य चुने गए थे, ने जनता दल से अपने को अलग कर लिया और चंद्रशेखर के गुट में चले गए। आनंद मोहन उन नेताओं की टीम में शामिल हो गए, जो वीपी सिंह द्वारा ओबीसी को दिए गए 27 फीसदी आरक्षण का विरोध कर रहे थे। इस सीट के पहले सांसद बीपी मंडल थे, जिनकी अध्यक्षता में मंडल कमीशन की रिपोर्ट तैयार हुई थी, जिसे 1990 में वीपी सिंह सरकार ने लागू करके ओबीसी आरक्षण का रास्ता खोला। शरद यादव ने इसका समर्थन किया था। उस वक्त आनंद मोहन बिहार में मंडल के खिलाफ छिड़ी लड़ाई का युवा चेहरा बन गए थे।

आनंद मोहन पिछड़ों की काट के रूप में अगड़ी जाति के बीच एक बड़ा चेहरा बनते जा रहे थे। आनंद मोहन सिंह ने अपनी इसी छवि का लाभ उठाने की कोशिश की और बिहार में यादवों का गढ़ कहे जाने वाले मधेपुरा से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। बिहार में एक चर्चित कहावत है ‘रोम पोप का और मधेपुरा गोप का ‘यानी मधेपुरा से कोई गोप यानी यादव ही जीत सकता है। आनंद मोहन ने इसी नारे को तोड़ने के लिए मधेपुरा से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। लेकिन चुनाव से ऐन पहले वहां के हालात बदल चुके थे। आनंद मोहन, जनता दल के उम्मीदवार को टक्कर दे रहे थे, तभी एक निर्दलीय प्रत्याशी राजकुमारी देवी की हत्या कर दी गई, जिससे चुनाव टाल दिया गया। वर्ष1991 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की बदायूं सीट से जनता दल के बड़े नेता शरद यादव चुनाव हार गए थे। मधेपुरा में दोबारा चुनाव होना था और यादव बहुल सीट थी तो शरद यादव अब इस सीट से लड़ना चाहते थे।पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास ने खुलेआम कह दिया कि शरद यादव बड़े नेता हैं और उनको मधेपुरा से लड़ाकर हमें बिहार से संसद भेजना चाहिए। वीपी सिंह ने भी कह दिया कि शरद यादव मधेपुरा से लड़ें। शरद यादव चुनाव लड़ने मधेपुरा पहुंच गए।

शरद यादव ने जनता पार्टी के आनंद मोहन को पराजित किया। कांग्रेस के राजेन्द्र प्रसाद यादव तीसरे नंबर पर रहे। 1996 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर यहां से जीतकर शरद यादव फिर लोकसभा पहुंचे। उन्होंने बीपी मंडल के रिश्तेदार समता पार्टी के आनंद मंडल को पराजित किया। वर्ष 1997 मे लालू प्रसाद यादव जनता दल से अलग हो गये और अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बनाई। मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र तब चर्चा में और आया जब लोकसभा चुनाव 1998 में एक ही धारा की राजनीति करने वाले शरद यादव (जनता दल) और लालू प्रसाद (राजद) चुनाव मैदान में आमने-सामने हुए। इसी चुनाव में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व निदेशक निर्मल कुमार सिह (एनके सिंह) ने राजनीति में कदम रखा। एनके सिंह इस चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे। एनके सिंह ने बतौर पुलिस अधीक्षक तीन अक्टूबर 1977 को देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी को भ्रष्टाचार के एक मामले में अदभ्य साहस जुटाकर गिरफ्तार किया था। उस समय केन्द्र में मोरारजी देसाई की सरकार थी। एनके सिंह दिल्ली पुलिस के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) भी रहे हैं। इस चुनाव में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, जनता दल प्रत्याशी शरद यादव को पराजित कर संसद पहुंचे, लेकिन अगले ही वर्ष 1999 में हुए चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के टिकट पर चुनाव अखाड़े में उतरे शरद यादव ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को पटखनी दे दी। वर्ष 2004 के चुनाव में भी एक बार फिर शरद और लालू आमने-सामने थे। इस चुनाव में भी एनके सिंह समता पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे। राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने जदयू के शरद यादव को पराजित कर फिर इस सीट पर विजय पताका फहराई। एनके सिंह पांचवे नंबर पर रहे। हालांकि, छपरा से भी चुनाव जीने के कारण लालू यादव ने मधेपुरा की सीट छोड़ दी।

इसी साल 2004 में हुए उपचुनाव में लालू यादव ने राजद के टिकट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को उतारा और वह जीतकर दिल्ली पहुंचने में कामयाब रहे। वर्ष 2009 में जदयू के शरद यादव एक बार फिर मधेपुरा के चुनावी मैदान में उतर बाजी मार ली। उन्होंने राजद के प्रो.रवीन्द्र चरण यादव को पराजित किया। कांग्रेस से डॉक्टर तारा नंद सदा तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2014 में यहां से पप्पू यादव की चुनावी किस्मत एक बार फिर खुली और वह राजद के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2014 में मोदी की सुनामी में भी पप्पू यादव ने जीत हासिल की। पप्पू यादव ने जदयू के शरद यादव को पराजित किया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी पूर्व मंत्री रेणु कुश्वाहा के पति विजय कुमार सिह तीसरे नंबर पर रहे। उस समय जदयू और भाजपा अलग हो चुकी थी। यदि दोनों पार्टियां साथ होतीं तो परिणाम शायद उनके हक़ में जा सकता था। वर्ष 2019 में मधेपुरा का चुनाव काफी रोचक रहा। मधेपुरा में त्रिकोणीय जंग देखने को मिली थी। मधेपुरा से तत्कालीन सासंद पप्पू यादव इस बार का मधेपुरा चुनाव महागठबंधन में शामिल होकर लड़ना चाहते थे लेकिन बात नहीं बन सकी। राजद से निलंबित पप्पू यादव अपनी जन अधिकार पार्टी (जाप) के टिकट पर समर में उतरे। कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सारथी रहे शरद यादव ने 2014 का आम चुनाव जदयू के टिकट पर लड़ा था लेकिन उन्हें राजद प्रत्याशी पप्पू यादव से करीब पराजित होना पड़ा। जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकतांत्रिक जनता दल (लोजद) के अध्यक्ष शरद यादव ने इस बार राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के टिकट से चुनाव मैदान में ताल ठोका। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) उम्मीदवार पूर्व सांसद एवं बिहार के तत्कालीन आपदा एवं लघु सिंचाई मंत्री दिनेशचंद्र यादव चुनावी रणभूमि में उतरे। कभी जनता दल और बाद में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में दूसरों की जीत-हार की व्यूह रचना करने वाले शरद यादव की हसरत पांचवी बार मधेपुरा से संसद पहुंचने की थी।

लालू प्रसाद यादव और शरद यादव की राजनीतिक मित्रता एक अंतराल के बाद दुबारा परवान चढ़ी थी। वर्ष 1999 में राजग के उम्मीदवार के रूप में शरद यादव ने लालू यादव को पराजित किया था। उस समय लालू यादव ने घोषणा की थी कि वह शरद को कागजी शेर और जनाधार विहीन नेता साबित कर देंगे। दूसरी तरफ शरद यादव का दावा था कि वे खुद को यादवों का असली और बड़े नेता के रूप स्थापित करेंगे। हालांकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां बदल गई और शरद यादव को लालू यादव का साथ मिला था। वर्ष 2019 में जदयू और भाजपा ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। दोनों के साझा उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव चुनावी मैदान में थे। इसका फायदा दिनेश चंद्र यादव को मिला। जदयू के दिनेश चंद्र यादव ने राजद के शरद यादव को पराजित कर दिया। जाप अध्यक्ष पप्पू यादव की जमानत जप्त हो गई। मधेपुरा सीट पर हुए त्रिकोणीय मुकाबले की लड़ाई काफी दिलचस्प रही थी। दिनेश चंद्र यादव ने इससे पूर्व भी वर्ष 1996 और वर्ष 1999 में सहरसा संसदीय सीट और वर्ष 2009 में खगड़िया संसदीय सीट से जीत हासिल की थी। दिनेश चंद्र यादव इस बार के चुनाव में चुनावी चौका लगाने के प्रयास में है। मधेपुरा सीट से सबसे अधिक चार बार शरद यादव सांसद रह चुके हैं। यहां से चार बार राजद, दो बार कांग्रेस, तीन बार जनता दल, तीन बार जनता दल यूनाइटेड, एक-एक बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोक दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (उर्स),एक बार निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की है।

देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी (भाजपा) का ‘केसरिया’ मधेपुरा की धरती पर अबतक नहीं लहराया है। देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय दिग्गज नेताओं में शुमार रहे शरद यादव ने वर्ष 1991 से मधेपुरा लोकसभा सीट पर आठ बार हुए आम चुनाव में अपनी दावेदारी दी, जिसमें उन्हें चार बार जीत मिली थी। इन 33 वर्षों के दौरान यह पहला चुनाव होगा जब लोकसभा चुनाव में मधेपुरा सीट के ईवीएम या मतपत्र के प्रत्याशियों के कॉलम में शरद यादव नही दिखेंगे। इस बार के चुनाव में मधेपुरा लोकसभा सीट नीतीश की पार्टी जदयू के खाते में गई है। यहां से जदयू ने एक बार फिर वर्तमान सांसद दिनेश चंद्र यादव पर भरोसा जताया है तो वहीं इंडिया गठबंधन में यह सीट लालू की पार्टी राजद के खाते में गई है। राजद इस बार कुमार चंद्रदीप को अपना उम्मीदवार बनाया है। कुमार चंद्रदीप, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति रहे पूर्व सांसद डॉ. रविंद्र कुमार यादव रवि के पुत्र और संविधान सभा के सदस्य कमलेश्वरी प्रसाद यादव के पौत्र हैं। भूपेन्द्र नारायण मंडल, बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की जन्मभूमि, लालू यादव, शरद यादव, पप्पू यादव जैसे दिग्गजों की कर्मभूमि मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें हैं।

वर्ष 2008 में हुए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति थोड़ी बदल गई है। पहले मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में आलमनगर, किशुनगंज, कुमारखंड, सिंहेश्वर, मधेपुरा और सहरसा जिले का सोनवर्षा विधानसभा क्षेत्र शामिल था। नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा के अलावा सहरसा जिले का सहरसा, सोनवर्षा और महिषी विधानसभा सीट शामिल हैं। सोनवर्षा, आलमनगर, बिहारीगंज और महिषी पर जदयू का कब्जा है। सहरसा मे भाजपा और मधेपूरा विधानसभा सीट पर राजद का कब्जा है। इस बार के चुनाव के लिए राजद की ओर से शरद यादव के पुत्र शांतनु बुंदेला और जदयू की ओर से बीपी मंडल के पौत्र निखिल मंडल के चुनाव में उतरने की चर्चा जोरो पर थी लेकिन बात नहीं बन सकी। मधेपुरा संसदीय सीट से जदयू, राजद, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत 08 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 20 लाख 73 हजार 587 है। इनमें 10 लाख 76 हजार 586 पुरूष, 09 लाख 96 हजार 951 महिला और थर्ड जेंडर 50 हैं, जो तीसरे चरण में 07 मई को होने वाले मतदान में इन 08 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे।

इस बार के चुनाव में मधेपुरा संसदीय सीट पर जहां जदयू प्रत्याशी दिनेशचंद्र यादव दूसरी बार जीतने की कोशिश में लगे हैं, वहीं राजद के कुमार चंद्रदीप अपने पिता डॉ. रविंद्र कुमार यादव रवि की विरासत को आगे ले जाने की चुनौती है। सभी पार्टी के प्रत्याशी अपने अपने पक्ष में वोटरों को रिझाने में लगे हुए दिख रहे हैं। पिछड़ा वर्ग को संविधान में 27 फीसदी आरक्षण देने वाला मंडल कमीशन आयोग के अध्यक्ष रहे बीपी मंडल की घरती रही मधेपुरा जिला इस बार के लोकसभा चुनाव में क्या गुल खिलाती है, यह तो समय बताएगा।

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