मुस्लिम भी मनाते हैं चंद्र ग्रहण? ये है सबसे गहरा कनेक्‍शन, जरूर करें ये…

साल 2020 का पहला चंद्र ग्रहण आज रात 10 बजकर 37 मिनट पर लगने जा रहा है। चंद्र ग्रहण को लेकर हिंदू धर्म में कई मान्यताएं हैं और इसके दुष्प्रभावों से बचने के लिए इसमें कई तरह के उपाय भी किए जाते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है इस्लाम धर्म से भी चंद्र ग्रहण का गहरा कनेक्शन है और इस धर्म में भी इसे लेकर विशेष उपाय बताए गए हैं।

चंद्र ग्रहण

इस्लाम में भी चंद्र ग्रहण के दौरान मुस्लिम धर्म के लोगों को नमाज पढ़ने की सलाह दी गई है। इसमें कहा गया है कि चंद्र ग्रहण के दौरान लोगों को मस्जिद में जाकर एक साथ बैठकर नमाज अता करनी चाहिए।

क्‍यों नमाज है जरूरी

चंद्र ग्रहण के दौरान पढ़े जाने वाली इस नमाज को ‘सलात अल कुसूफ’ कहा जाता है। यह नमाज दिन में पांच बार पढ़ी जाने वाली नमाज से एकदम अलग और काफी लंबी होती है।

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‘सलात अल कुसूफ’ के दौरान नमाजी को जमीन पर माथा टेककर दुआ करनी होती है। इस वक्त नमाजी अल्लाह की शक्तियों और उसके उपकारों को याद करते हुए उनसे दुआ करते हैं। ताकि चंद्रग्रहण के दौरान अल्लाह उन्हें रहमत बख्शे।

कौन पढ़े नमाज

मोहम्मद पैगंबर के आदेशानुसार, चंद्र ग्रहण के दौरान सभी मुस्लिमों के लिए नमाज पढ़ना जरूरी नहीं है। इस दौरान सिर्फ उन्हीं मुस्लिम लोगों को नमाज पढ़नी चाहिए जिनकी नजर चंद्रग्रहण के वक्त चंद्रमा पर पड़ी हो।

याद रहे कि इस अवधि में चंद्रमा पर नजर पड़ते ही मस्जिद की तरफ रुख कर लेना चाहिए और तब तक नमाज पढ़नी चाहिए जब तक चंद्रग्रहण का असर पूरी तरह से खत्म न हो जाए। इसी वजह से इसमें सामान्य नमाज से ज्यादा वक्त लगता है।

 

इस्लाम में सूर्य और चंद्रमा को अल्लाह की दो निशानियों माना गया है। अल्लाह इन्हें इसलिए भेजता है ताकि लोग इसे देखें और ग्रहण खत्म होने की दुआ करें। नमाज पढ़ने के बाद संबंधित इंसान के ऊपर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता।

चंद्रग्रहण के नमाज के वक्त नमाजी का चेहरा काबा (मक्का मुकर्रमा) की तरफ होना चाहिए, क्योंकि यह नमाज के अरकान में से एक रुक्न है, जिसके बिना नमाज सही नहीं मानी जाती है।

कब से हुई शुरूआत

इस्लाम धर्म में ऐसी मान्यताएं हैं कि पैगंबर मोहम्मद के बेटे इब्राहिम की मौत चंद्रग्रहण के दौरान ही हुई थी। इसलिए चंद्रग्रहण को इब्राहिम की मौत का कारण माना जाता है।

हालांकि चंद्र ग्रहण की घड़ी को इस्लाम धर्म में किसी की मौत या जिंदगी से जोड़कर नहीं देखा जाता। कुछ देशों में चंद्रग्रहण के दौरान इस नमाज को पढ़ना जरूरी माना जाता है।

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