सही वक्त पर, सही रणनीति के साथ हो रहा है मोदी का इजरायल दौरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीन दिवसीय इजरायल दौरे पर हैं. मोदी इजरायल जाने वाले देश के पहले पीएम हैं 70 वर्षों में किसी भी भारतीय पीएम ने इजरायल का दौरा नहीं किया था. अपने कार्यकाल के चौथे साल में मोदी ने इजरायल जाने के लिए सबसे सही वक्त चुना है. उनका दौरा कई मायनों में काफी अहम माना जा रहा है.

सही वक्त पर, सही रणनीति के साथ हो रहा है मोदी का इजरायल दौरा

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पीएम मोदी का इजरायल दौरा बड़े रणनीतिक कारणों को ध्यान में रखते हुए तय किया गया. यह वह पांच कारण हैं जो इस वक्त मोदी के इजरायल दौरे को अहम बना देते हैं.

मुस्लिम विरोधी छवि

फिलिस्तीन के साथ ऐतिहासिक कारणों की वजह से मुस्लिम हमेशा से इजरायल को नकारते आए हैं. यहां सबसे लंबे वक्त से सत्ता संभाल रहे पीएम बेंजामिन नेतन्याहू को दक्षिणपंथी विचारधारा के कट्टर समर्थक माना जाता है. उनपर फिलिस्तीन को बदनाम कर यहूदियों को नियंत्रित करने के आरोप भी लगते रहे हैं. साथ ही नेतन्याहू पर अरब देशों और मुस्लिमों को छवि खराब करने के आरोप भी हैं. 

2002 के गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी भी ध्रुविकरण करने वाले नेता के रूप में उभरे हैं. वामपंथियों और मुस्लिमों की नजर में मोदी की पार्टी बीजेपी और उनका वैचारिक संगठन आरएसएस भी अपनी मुस्लिम विरोधी छवि के लिए जाना जाता है. साथ ही उनकी पार्टी देश की बहुसंख्यक आबादी की तरफदार भी मानी जाती है. मोदी सत्ता संभालने के तुरंत बाद अगर इजरायल जाते तो देश की मुस्लिम आबादी के बीच गलत संदेश जा सकता था और तब वह दौरा उनकी मुस्लिम विरोधी छवि पर मुहर लगाने का काम करता.  

तेल उत्पादक देशों पर नजर

भारत में तेल की जरूरत का 80 फीसद हिस्सा आयात किया जाता है. 2025 से 2030 तक यह आंकड़ा 80-85 फीसद का पहुंच जाएगा. सऊदी अरब जो कि दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पाद देश है और भारत में सबसे ज्यादा तेल निर्यात करता है. अंतराराष्ट्रीय नियमों के चलते 2008-15 के दौरान भारत ने अरब से तेल खरीद को बढ़ाया है. दूसरे देश को देखें तो व्यापार के लिहाज से भारत, चीन और अमेरिका के बाद यूएई का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है. भारत से दूसरा सबसे बड़ा निर्यात यूएई में ही किया जाता है.

पीएम मोदी इन देशों का दौरा पहले ही कर चुके हैं. अगर मोदी इन देशों से पहले इजरायल का दौरा करते तो यह इससे भारत के कारोबारी रिश्ते को खतरा हो सकता था. साथ ही तेल के आयात को भी झटका लग सकता था. इसी वजह से मोजी ने पहले पूर्व एशियाई देशों को दौरा किया और उसके बाद इजरायल जाने का फैसला किया.    

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भारतीय समुदाय के हित

खाड़ी देशों में करीब 70 लाख भारतीय कामगार रहते हैं. पश्चिमी एशिया में सबसे ज्यादा भारतीय प्रवासी हैं जिनमें सऊदी अरब और यूएई सबसे ऊपर है. कुवैत, बहरीन, ओमान भी ऐसे ही देश हैं जहां भारतीय मूल के लिए काम की तलाश में जाते हैं. यह कामगार भारत में 50 फीसदी पैसा वापस भेजते हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था मदद पहुंचती है.  

इजरायल की वजह से अगर भारत और अरब देशों के संबंध बिगड़ते हैं तो यह कामगारों के लिए परेशानी पैदा कर सकता है. इजरायल खुद भी कुशल कारीगरों के तलाश में है और भारत के साथ साझेदारी बढ़ाना चाहता है.

आतंकवाद

बदलते वैश्विक माहौल में आतंकवाद से निपटने के लिए भारत को पश्चिम एशियाई देशों में निर्भर रहना पड़ेगा. उसका एक बड़ा कारण है कि इन देशों को आतंकी अपनी पनाहगाह समझते हैं. भारत के दवाब के बाद इन देशों ने भी अपने देश से आतंकी खतरे को खदेड़ना शुरू कर दिया है. सऊदी अरब ने फसीह मोहम्मद को अपने देश बाहर कर दिया है जिसपर 2010 के बेंगलुरु धमाको में शामिल होने का आरोप था. यूएई भी कई आतंकियों को देश से बाहर कर चुका है. मिडल ईस्ट के साथ भारते के बेहतर संबंध आतंकवाद के खात्मे के लिए मददगार साबित होंगे.  

पाकिस्तान का घेराव

पश्चिमी एशियाई देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भी सहायक होंगे. आतंकी वारदातों के आरोपियों को देश से निकाला जाना पाकिस्तान के लिए संदेश है कि भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंध बदल रहे हैं. यह जाहिर करता है कि भारत आतंक वारदातों के लिए पश्चिम एशियाई मुल्कों की जमीन के इस्तेमाल पर कड़ा रुख रखता है.    

2015 में मोदी के दौरे पर भारत और यूएई के बीच साझा बयान में भी कहा गया था कि दुनिया को कोई भी मुल्क अपनी जमीन को आतंक के लिए इस्तेमान ना होने दे. साथ ही आतंकी संगठनों को किसी भी तरह की वित्तीय मदद या समर्थन पर ना दें जिसके बल पर वह किसी और मुल्क में आतंकी घटनाओं को अंजाम दे सकें. 2016 में भारत और सऊदी अरब के बीच भी कुछ इसी तरह का समझौता हुआ था जिसमें आतंकी पर लगाम लगाने के लिए प्रतिबद्धता जताई गई थी.

पाकिस्तान का नाम लिए बिना इन दोनों देशों से पाक को चेतावनी दी गई थी कि वह आंतक के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल बंद करे. यह दुनिया को दो तेल उत्पादक और मुस्लिम बाहुल्य देशों के रवैये में बदलाव का बड़ा कदम माना जा सकता है.

एक बेहतर राजनीतिक कदम

मोदी ने इजरायल जाने से पहले उन सभी देशों का दौरा कर लिया जो भारत से नाराज हो सकते है या उसे उपेक्षित कर सकते हैं. पीएम मोदी के इजरायल दौरा से भारत को काफी फायदा हो सकता है. खास तौर पर रक्षा, कृषि, और नई पद्धति अपनाने के नजरिये से भारत और इजरायल की साझेदारी काफी अहम हो जाती है.

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