वैज्ञानिकों का दावा-अब पुरानी बिल्डिंग के मलबे से आकार लेगी नई ईमारत

अब पुरानी इमारतों के मलबे से नई बिल्डिंगों का निर्माण किया जा सकेगा। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआइ) रुड़की ने इस तरह की तकनीक खोजने का दावा किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस रीसाइकल्ड एग्रीगेट तकनीक के प्रयोग से नए भवनों की लागत 40 फीसद तक घट जाएगी।

देश में निर्माण कार्यों की तेजी और बढ़ते शहरीकरण से अपशिष्ट उत्पादन बढ़ता जा रहा है। विध्वंस के कारण मलबे में गैर-बायोडिग्रेडेबल सामग्री मसलन कंक्रीट, सीमेंट, प्लास्टर, प्लास्टिक, लकड़ी, धातु आदि निकलती हैं, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं।

ऐसे में अपशिष्टों के कारण होने वाली पर्यावरणीय समस्याओं एवं प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को कम करने के लिए निर्माण क्षेत्र में कंक्रीट अपशिष्ट का रीसाइकल्ड एग्रीगेट (आरए) के रूप में इस्तेमाल जरूरी है। सीबीआरआइ के वैज्ञानिकों की यह तकनीक कारगर साबित होगी और टिकाऊ निर्माण के लिए विध्वंस अपशिष्टों का कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जा सकेगा।

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संस्थान के एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंड क्ले प्रोडेक्टस ग्रुप के मुख्य वैज्ञानिक एवं ग्रुप लीडर वैज्ञानिक डॉ. एके मिनोचा व उनकी टीम ने पुरानी इमारतों के मलबे से नए भवन बनाने की यह तकनीक विकसित की है।

डॉ. मिनोचा के अनुसार खासतौर से मेट्रोपॉलिटिन सिटी मसलन दिल्ली, मुंबई, पुणे, कोलकाता आदि शहरों में विध्वंस अपशिष्टों के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। इस तकनीक के प्रयोग से कंक्रीट एवं भवन घटकों मसलन ईंट, रेत, बजरी, सीमेंट, ब्लॉक आदि बनाने में किया जा सकता है।

जल्द ही इस तकनीक का इस्तेमाल कर एक डेमो हाउस बनाया जाएगा। इसके लिए हाउसिग एंड अर्बन डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (हुडको) से वार्ता चल रही है।

डॉ. मिनोचा के अनुसार सभी प्रदेशों में निर्माण एवं विध्वंस (सी एंड डी) प्लांट लगाने पर सरकार का जोर है। वर्तमान में दिल्ली के बुराड़ी और शास्त्री पार्क में ही सी एंड डी प्लांट हैं। बताया कि यह प्रोजेक्ट उन्हें डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की ओर से दिया गया था। जिस पर वह और उनकी टीम पिछले पांच साल से काम कर रही है।

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