राजस्थान: कम मतदान प्रतिशत ने सभी को चौंकाया, नाक की लड़ाई ने बढ़ाया तीन सीटों पर वोट प्रतिशत

प्रदेश में दो चरणों में हुए लोकसभा चुनावों के लिए सभी 25 सीटों पर मतदान हो चुका है। दोनों चरणों में कुल 61. 53% वोट डाले गए। देखा जाए तो 2019 की तुलना में इस बार 25 में से 22 सीटों पर वोट प्रतिशत कम रहा लेकिन तीन सीटों कोटा, बांसवाड़ा और बाड़मेर ने वोटिंग के पिछले रिकॉर्ड तोड़े। इसकी बड़ी वजह त्रिकोणीय संघर्ष और व्यक्तिगत लड़ाई रही।

बाड़मेर की सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले और बांसवाड़ा और कोटा में प्रत्याशियों की नाक की लड़ाई ने वोटिंग प्रतिशत ऊपर लाने का काम किया। हालांकि नाक का प्रश्न तो नागौर और चूरू की सीटों पर भी था लेकिन यहां वोटिंग पिछले चुनावों की तुलना में यहां वोटिंग कम रही।

कोटा : पिछले चुनावों में हुई 69.29% वोटिंग के मुकाबले इस बार यहां 71.26% वोटिंग हुई, वो भी तब जब पूरे राजस्थान में वोट प्रतिशत गिरा। वोट प्रतिशत बढ़ने के पीछे की वजह दो बड़े चेहरों के बीच नाक की लड़ाई और पार्टी में भीतरघात बताई जा रही है।

कोटा में बीजेपी के ओम बिड़ला का मुकाबला बीजेपी के ही बागी प्रहलाद गुंजल से हुआ। यह मुकाबला दोनों नेताओं के लिए नाक की लड़ाई बन चुका था। गुंजल को जहां कांग्रेस का भीतरघात नुकसान पहुंचा रहा था, वहीं ओम बिड़ला लिए यह काम बीजेपी के नेता कर रहे थे।

बांसवाड़ा : यहां बीजेपी के महेंद्रजीत मालवीय से बीएपी के राजकुमार रोत का मुकाबला था, जिसे कांग्रेस ने भी समर्थन दिया था लेकिन यह मुकाबला दो पार्टियों के बीच या जाति के बीच नहीं बल्कि यह इस क्षेत्र के सबसे बड़े आदिवासी चेहरे को लड़ाई बन चुका था। यही कारण रहा कि यहां वोटिंग को लेकर दोनों पक्षों में जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला।

बाड़मेर : यहां बीजेपी के कैलाश चौधरी, कांग्रेस के उम्मेदाराम और निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी के बीच त्रिकोणीय मुकाबले में कांटे की टक्कर देखने को मिली। साथ ही यहां भीतरघात का भी असर रहा और इसी के चलते कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक अमीन खान को 6 साल के लिए पार्टी से निलंबित भी कर दिया।

नागौर : नाक की लड़ाई तो यहां भी थी लेकिन पिछले चुनावों की तुलना में यहां वोटिंग कम रही हालांकि इसकी वजह राजपूत वोटरों की नाराजगी बताई जा रही है। यहां कई विधानसभाओं में राजपूत वोटरों की संख्या बहुत ज्यादा है लेकिन कम वोटिंग की पहली वजह यह रही कि यहां दो जाटों के बीच मुकाबला था और दूसरी वजह गुजरात के पूर्व सीएम पुरुषोत्तम रुपाला के बयान के चलते राजपूतों की नाराजगी रही, जिसके चलते राजपूत बाहुल्य वाले बूथों पर मतदान प्रतिशत बहुत कम रहा।

चूरू : यह सीट दो नेताओं की अंदरूनी लड़ाई में फंसी। यहां मुकाबला दो जाट प्रत्याशियों के बीच था, जिसमें बीजेपी से देवेंद्र झाझड़िया और कांग्रेस से बीजेपी के बागी राहुल कस्वां थे लेकिन यहां असली लड़ाई राहुल कस्वां और राजेंद्र राठौड़ के बीच थी। इसके बाद भी यहां वोटिंग पिछले चुनावों की तुलना में कम रही, इसकी वजह भी राजपूत वोटरों की कम वोटिंग रही।

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