जानें क्यों काली-मोटी लडकियों के लिए दुनिया है इतनी ज़ालिम
‘क्या? तुम्हें केक नहीं पसंद? तुम्हें देखकर तो ऐसा नहीं लगता!’ बर्थडे पार्टी में मौजूद लोग एक ‘मोटी’ लड़की की तरफ़ हैरत से देखते हुए पूछते हैं. मुंबई के स्टोर में एक लड़की अपनी साइज़ का लहंगा मांगती है तो सेल्समैन उसे जिम जाने की सलाह देता है.
फेयरनेस क्रीमों के विज्ञापन की बात तो रहने ही देते हैं. अब तो बाज़ार में वजाइना को गोरा बनाने वाले प्रोडक्ट्स भी आ गए हैं. 24 साल की आकांक्षा को अपने वजन को लेकर बहुत ताने सुनने पड़े हैं.
उन्होंने बताया, ”मुझे याद आता है, मैं दसवीं में पढ़ती थी और एक दिन क्लास के बाहर खड़े होकर आइसक्रीम खा रही थी. तभी वहां से मेरी एक टीचर गुजरीं. उन्होंने हंसते हुए कहा, मुझे जरा भी हैरत नहीं होती कि तुम इतनी मोटी कैसे हो गई हो. पास में खड़े सभी बच्चे हंसने लगे. मुझे बहुत बुरा लगा. ये सब तब हुआ जब मैं ईटिंग डिसऑर्डर के बेहद बुरे दौर से गुज़र रही थी.”
आकांक्षा ने आगे बताया, ”इसी तरह एक बार ग्रुप फोटो खींचे जाने के दौरान प्रिंसिपल ने मुझे किनारे खड़े होने को कहा. उन्होंने कहा कि मैं मोटी हूं इसलिए मेरा बीच में खड़ा होना ठीक नहीं रहेगा. मैं इतनी परेशान हो गई थी कि वजन घटाने के लिए सिगरेट पीने लगी थी. लेकिन अब मैं किसी के तानों की परवाह नहीं करती, मेरे लिए स्वास्थ्य ज्यादा ज़रूरी है.”
बॉडी शेमिंग तो जानते ही होंगे
आजकल इंटरनेट पर एक नया ट्रेंड चल पड़ा है. ‘काली’, ‘मोटी’ और ‘बदसूरत’ लड़कियों की तस्वीरों से मीम्स बनाए जाते हैं. फिर दोस्तों को टैग करके उनसे शादी करने का प्रस्ताव दिया जाता है. और फिर शुरू होता है सिलसिला ‘बॉडी शेमिंग’ का.
बॉडी शेमिंग का मतलब है किसी को उसके शारीरिक बनावट या रंग की वजह से शर्मिंदा किया जाना.
आप में से कितनों ने काली या मोटी गुड़िया से खेला है? कितनों ने आम लड़कियों जैसी दिखने वाली मैनिकिन्स देखी हैं? हाल ही में ‘जर्नल ऑफ ईटिंग डिसऑर्ड्स’ में एक रिसर्च स्टडी छपी है.
इसमें बताया गया है कि जैसी मैनिकिन्स (पुतलों) को हम शोरूमों या दुकानों में देखते हैं अगर इंसान वाकई ऐसा हो तो वह पूरी तरह से अनफ़िट होगा.
इतना ही नहीं, ऐसे फ़िगर की कल्पना करना भी सच्चाई से परे है. स्टडी कहती है कि अगर महिलाएं मैनिकिन्स जितनी पतली हो जाएं तो उनके पीरियड्स भी नहीं होंगे
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हालांकि मेल मैनिकिन्स फीमेल मैनिकिन्स जितने दुबले-पतले तो नहीं होते लेकिन डेटा कलेक्शन के दौरान पाया गया कि उनमें से बहुत से ऐसे हैं जो अवास्तिवक रूप से मैस्क्युलिन यानी मर्दाना हैं.
रिसर्चरों ने ब्रिटेन के दो शहरों के शोरूमों में मैनिकिन्स पर स्टडी की. स्टडी के लेखक डॉ. एरिक रॉबिन्सन ने बताया,”इस बात के साफ़ सबूत हैं कि बेहद दुबली-पतली काया को आदर्श मानकर लोग, ख़ासकर लड़कियां कई तरह के मानसिक रोगों और ईटिंग डिसऑर्डर का शिकार हो रही हैं.”
साइकॉलजिस्ट डॉ नीतू राणा बताती हैं कि बॉडी शेमिंग का सबसे ज्यादा शिकार टीनएजर्स और युवा वर्ग होता है. डॉ नीतू ने कहा, ”आत्मविश्वास बॉडी शेमिंग की वजह से बहुत कमजोर पड़ चुका होता है. बॉडी शेमिंग सिर्फ शारीरिक बनावट तक ही सीमित नहीं है. कपड़ों की चॉइस और बोल-चाल के तरीकों को लेकर भी लोगों को खूब शर्मिंदा किया जाता है.”
एक ख़ास तरह का फ़िगर हासिल करने का हौव्वा कुछ इस कदर हावी है कि दुनिया के कई देशों में लड़कियां ‘एनरेक्सिया’ से पीड़ित हैं और उन्हें डॉक्टरों की मदद लेनी पड़ती है.
इमोशनल डिसऑर्डर तो नहीं
एनरेक्सिया एक तरह का इमोशनल डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति पर वजन घटाने का भूत कुछ इस तरह हावी हो जाता है कि वह खाना खाने से ही इनकार कर देता है. इससे मौत तक हो सकती है.
फ़िल्मों और सीरियल्स में मोटे किरदारों को बेवकूफ़ दिखाए जाने का भी चलन है. छोटे बच्चों के लिए बनाए जाने वाले कार्टून शो भी इससे अछूते नहीं हैं. ‘डोरेमॉन’ के जियान को देखिए या फिर ‘कितरेत्सू’ के बूटागोरिला को. दोनों को ही मोटा और मंदबुद्धि दिखाया गया है.
मोटे किरदारों को ‘ह्यूमर’ के लिए इस्तेमाल किए जाता है. फिल्म ‘कल हो न हो’ की स्वीटू को याद करिए और याद कीजिए कॉमिडी शो में पलक (कीकू शारदा का किरदार) को.
सवाल यह है कि क्या आने वाले वक़्त में हम सामान्य शारीरिक ढांचे वाले मैनिकिन्स देख सकेंगे? क्या हमारे बच्चों को खेलने के लिए काली और सामान्य फ़िगर वाली गुड़िया मिलेगी?