जानें दिवाली में पटाखे जलाने का इतिहास, कब से शुरू हुआ इसका चलन

दिल्ली में बढ़ते प्रदुषण के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आ रहीं लोगों की प्रतिक्रियाएं चर्चा में हैं. कुछ ने इसे सही फैसला बताया को कुछ ने इसे धार्मिक परंपरा के विरुद्ध कहा. लोगों के रिएक्शन्स का सिलसिला जारी है. जानिए भारतीयों ने कब से शुरू किया पटाखे जलाना और कब बना गया ये हमारी संस्कृति का हिस्सा.

जानें दिवाली में पटाखे जलाने का इतिहास, कब से शुरू हुआ इसका चलन

जब भगवान राम 14 बरस के वनवास से लौटे थे तो क्या उनकी प्रजा ने भी पटाखे जलाकर खुशियां मनाई थीं?

हर त्योहार पर खुशी मनाने के तरीके में वक्त से बदलाव आता है. दुर्गा पूजा की शुरुआत लगभग तीन सदी पहले बंगाल में हुई थी. इस वक्त अंग्रेजी राज की शुरुआत थी. एक समृद्ध ज़मींदार ने अपने अंग्रेज  मालिकान को खुश करने के लिए धूमधाम के साथ एक समारोह का आयोजन करने का फैसला किया. बाद में यही समारोह दुर्गा पूजा में तब्दील हो गया. ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में मनाए जाने वाले पर्व गणेश चतुर्थी का इतिहास है. इसे सार्वजनिक रूप से मनाने का सुझाव बाल गंगाधर तिलक ने दिया था.

दिवाली पर पटाखे जलाने की परंपरा के पीछे की हकीकत भी ऐसी ही है. पटाखों को तमिलनाडु के शहर शिवकाशी से बढ़ावा मिला. शिवकाशी तमिलनाडु के विरुद्धनगर जिले में नगरपालिका शहर है, जो कि पटाखा उद्योगों के लिए जाना जाता है. पटाखे आज के समय में दिवाली का बेहद खास हिस्सा माने जाने लगे हैं. इससे पहले कि यह रोशनी का सादगी भरा त्योहार था. इस पर्व पर बंगाल को छोड़कर भारत के ज्यादातर हिस्सों में लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं. बंगाल में इस मौके पर काली पूजा की जाती है.

दीपावली, वो हिंदू पर्व है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है

‘दिवाली’ को ‘दीपावली’ भी कहा जाता है, और ‘रोशनी के त्योहार’ से भी जाना जाता है. उत्तर भारत में, दिवाली उस समय का प्रतीक है जब राम ने रावण पर जीत हासिल की थी. इस मौके पर मनाए गए जश्न में रोशनी की, जो खुशी का प्रतीक थी.

दिवाली हिंदू कैलेंडर के महीने अश्वेयुजा के अंत में लगातार पांच दिनों का त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी , दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज शामिल हैं. दिवाली अमूमन अंग्रेजी कैलेंडर के अक्टूबर/नवंबर में मनाई जाती है. हिंदू और सिख इसे सिर्फ त्योहार ही नहीं बल्कि मेल-मिलाप के समारोह की तरह मनाते हैं.

संस्कृत में दीपावली शब्द का मतलब है, ‘करीने से रखी रोशनी जो अंधेरे पर विजय की चमक बिखेरे’ होता है. जैसे-जैसे सदियों में संस्कृत का ज्ञान कम हुआ, इस शब्द को दिवाली में बदल दिया गया, खासकर उत्तर भारत में. दक्षिण भारतीय इसे दीपावली कहते हैं. दोनों शब्दों का मतलब ‘रोशनी की कतारें’ ही है.

दिल्ली में बढ़ते प्रदुषण के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आ रहीं लोगों की प्रतिक्रियाएं चर्चा में हैं. कुछ ने इसे सही फैसला बताया को कुछ ने इसे धार्मिक परंपरा के विरुद्ध कहा. लोगों के रिएक्शन्स का सिलसिला जारी है. जानिए भारतीयों ने कब से शुरू किया पटाखे जलाना और कब बना गया ये हमारी संस्कृति का हिस्सा.

जब भगवान राम 14 बरस के वनवास से लौटे थे तो क्या उनकी प्रजा ने भी पटाखे जलाकर खुशियां मनाई थीं?

हर त्योहार पर खुशी मनाने के तरीके में वक्त से बदलाव आता है. दुर्गा पूजा की शुरुआत लगभग तीन सदी पहले बंगाल में हुई थी. इस वक्त अंग्रेजी राज की शुरुआत थी. एक समृद्ध ज़मींदार ने अपने अंग्रेज  मालिकान को खुश करने के लिए धूमधाम के साथ एक समारोह का आयोजन करने का फैसला किया. बाद में यही समारोह दुर्गा पूजा में तब्दील हो गया. ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में मनाए जाने वाले पर्व गणेश चतुर्थी का इतिहास है. इसे सार्वजनिक रूप से मनाने का सुझाव बाल गंगाधर तिलक ने दिया था.

दिवाली पर पटाखे जलाने की परंपरा के पीछे की हकीकत भी ऐसी ही है. पटाखों को तमिलनाडु के शहर शिवकाशी से बढ़ावा मिला. शिवकाशी तमिलनाडु के विरुद्धनगर जिले में नगरपालिका शहर है, जो कि पटाखा उद्योगों के लिए जाना जाता है. पटाखे आज के समय में दिवाली का बेहद खास हिस्सा माने जाने लगे हैं. इससे पहले कि यह रोशनी का सादगी भरा त्योहार था. इस पर्व पर बंगाल को छोड़कर भारत के ज्यादातर हिस्सों में लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं. बंगाल में इस मौके पर काली पूजा की जाती है.

दीपावली, वो हिंदू पर्व है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है

‘दिवाली’ को ‘दीपावली’ भी कहा जाता है, और ‘रोशनी के त्योहार’ से भी जाना जाता है. उत्तर भारत में, दिवाली उस समय का प्रतीक है जब राम ने रावण पर जीत हासिल की थी. इस मौके पर मनाए गए जश्न में रोशनी की, जो खुशी का प्रतीक थी.

दिवाली हिंदू कैलेंडर के महीने अश्वेयुजा के अंत में लगातार पांच दिनों का त्योहार है. इसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी , दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज शामिल हैं. दिवाली अमूमन अंग्रेजी कैलेंडर के अक्टूबर/नवंबर में मनाई जाती है. हिंदू और सिख इसे सिर्फ त्योहार ही नहीं बल्कि मेल-मिलाप के समारोह की तरह मनाते हैं.

संस्कृत में दीपावली शब्द का मतलब है, ‘करीने से रखी रोशनी जो अंधेरे पर विजय की चमक बिखेरे’ होता है. जैसे-जैसे सदियों में संस्कृत का ज्ञान कम हुआ, इस शब्द को दिवाली में बदल दिया गया, खासकर उत्तर भारत में. दक्षिण भारतीय इसे दीपावली कहते हैं. दोनों शब्दों का मतलब ‘रोशनी की कतारें’ ही है.

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