जब हम किसी को ‘किस’ करते हैं तो एक ‘किस’ के दौरान करीब 8 करोड़ बैक्टीरिया का आदान प्रदान होता है. इनमें से सभी बैक्टीरिया नुकसान पहुंचाने वाले नहीं हों, ऐसा भी नहीं है.ऐसे में ‘किस’ करने के व्यवहार का चलन क्या है? अगर यह उपयोगी है तो फिर ऐसा तो सभी जानवरों को करना चाहिए, या फिर सभी इंसानों को करना चाहिए? हालांकि हकीकत यह है कि ज्यादातर जानवर ‘किस’ नहीं करते हैं।
इस नए अध्ययन में दुनिया के 168 संस्कृतियों का अध्ययन किया गया है, जिसमें केवल 46 प्रतिशत संस्कृतियों में लोग रोमांटिक पलों में अपने साथी को ‘किस’ करते हैं।
ये है किस करने की वजह
2013 में वलोडारस्की ने ‘किस’ करने की प्रवृति पर विस्तार से अध्ययन किया। उन्होंने सैकड़ों लोगों से ये पूछा कि एक दूसरे को ‘किस’ करते वक्त उनके लिए सबसे खास बात क्या थी। इसमें पता चला कि शरीर की सुगंध से लोग एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं।
वलोडारस्की कहते हैं, “हममें स्तनधारियों के सारे गुण हैं, इसमें समय के साथ हमने कुछ चीजें जोड़ भी ली हैं।” इस नजरिए से देखें तो ‘किस’ करने को सांस्कृतिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया. यह इंसानों के एक दूसरे के करीब पहुंचने की कोशिश है। वलोडारस्की के मुताबिक इसकी शुरुआत कब हुई, ये पता लगाना बेहद मुश्किल है।
हजारों साल पुराना है किस्सा किस का…
‘किस’ जैसी किसी क्रिया का सबसे पुराना उदाहरण हिंदुओं की वैदिक संस्कृति में मिलता है जो करीब 3500 साल पुराना है। वहीं मिस्र की प्राचीन संस्कृति में ‘किस’ करने की बजाए लोग एक दूसरे को बाहों में समेट कर करीब आते थे।