महाभारत में श्रीकृष्ण ने न चली होती ये चाल, पांडवो की हार निश्चित थी…

जीवन में जब कभी हम हारते हैं, तो अक्सर मन में विचार आता है कि आखिर हमसे क्या गलती हो गई कि हम जीत से दूर रह गए। ऐसे में हार पर मंथन शुरू हो जाता है। महाभारत में ऐसा ही एक प्रसंग है। 

महाभारत में श्रीकृष्ण ने न चली होती ये चाल, पांडवो की हार निश्चित थी...

 

कुरूक्षेत्र की रणभूमि पर मूर्च्छित पड़े दुर्योधन का। भीम के वार ने दुर्योधन को चारों-खाने चित्त कर दिया था। भूमि पर बेसुध पड़े दुर्योधन ने हवा में तीन उगलियां उठाई और श्रीकृष्ण की ओर देखा। श्रीकृष्ण को समझते हुए देर नहीं लगी। उन्हें दुर्योधन की स्थिति देखते ही पता चल गया कि उसके मन में क्या प्रश्न उठ रहा है।

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दुर्योधन के मन के 3 सवाल

भूमि पर गिरते ही दुर्योधन को पता चल गया कि वो पराजित हो चुका है और अब जीत का कोई विकल्प नहीं बचा है। दुर्योधन के मन में रह-रहकर 3 सवाल आ रहे थे।

  • गुरू द्रोण के बाद अश्वथात्मा को सेनापति बनाना चाहिए था। गलत रणनीतियों के कारण महाभारत के युद्ध में पराजय मिली है।
  • विदुर को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए था जिससे कौरवों का पक्ष मजबूत होता।
  • हस्तिनापुर के इर्द-गिर्द किला बनवाना चाहिए था।

 

अगर इन तीन बातों पर विचार किया जाता तो महाभारत में कौरवों की हार नहीं होती।

इन सवालों का जवाब देते हुए श्रीकृष्ण ने कहा, ‘किसी भी स्थिति में तुम्हारी हार होनी ही थी, क्योंकि तुमने अन्याय किया था। यदि तुम हस्तिनापुर के पास किला बनवा देते, तो नकुल उसे अपने दिव्य घोड़े के साथ मिलकर तोड़ देता। अश्वथात्मा को सेनापति बनाने से युधिष्ठिर को इतना क्रोध आता कि पूरी सेना एक बार में ही नष्ट हो जाती। विदुर रणभूमि में अगर कौरव की तरफ से लड़ते तो मैं स्वयं पाडंवों की तरफ युद्ध करता।

 

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