होली: ठंडाई का मतलब भांग नहीं, कई रोगों से एक पल में दिलाती है छुटकारा
अक्सर लोग ठंडाई को भांग से जोड़कर देखते हैं। मगर वास्तव में ठंडाई का मतलब शीतल पेय से है। ऐसा पारंपरिक पेय, जो गर्मी से झुलसते शरीर को शीतलता प्रदान करता है, यह प्यास ही नहीं बुझाता मन को भी आह्लादित करता है। रा याद करें वह गाना ‘जय जय शिव शंकर! कांटा लगे ना कंकड़, कि प्याला तेरे नाम का पिया!’ सुनते ही आंखों के आगेे पीतल के लोटे को एक घूंट में गटककर भंग की तरंग में बहकने वाले बनारसी का एक चित्र उभरने लगता है। यह ‘खइके पान बनारस वाला’ छोरा नहीं, उम्रदराज पंडित जी भी हो सकते हैं। कद्दावर पहलवान भी हो सकते हैं। मैथिली के कालजयी लेखक खट्टर काका की कहानियों में ठंडाई की उपस्थिति एक सजीव पात्र जैसी रहती है। बुरा हो 1960 वाले दशक के हिप्पियों का, जिन्होंने इसकी चुस्की लेते ही, इसे ‘आमंड-ग्रास ड्रिंक’ का नाम दे दिया और फिरंगियों के साथ ही हिंदुस्तानियों की निगाह में यह नशीली चीज बन गई। वहीं, रही सही कसर पूरी कर दी चालू फिल्मी गानों ने।
ठंडाई का नाम जुड़ा है, भोलेनाथ शंकर, बनारस की नगरी और होली के त्योहार के साथ। इस रिश्तेदारी ने भी इस गलतफहमी को बढ़ावा दिया कि बिना बूटी यानी भांग के ठंडाई घोटी-छानी नहीं जा सकती है। यह सच है कि कई शौकीन बिना हल्के सुरूर के प्याले ही रह जाते हैं, पर अधिकांश बादाम की गिरी और औंटा कर गाढ़े गए दूध से सुवासित इस दिव्य शरबत का सेवन सात्विक अवतार में कर ही तृप्त हो जाते हैं।
वास्तव में, ठंडाई पारंपरिक शीतल पेय है, जो गर्मी से झुलसते शरीर को दाह, ताप-संताप से मुक्ति दिलाता है। प्यास ही नहीं बुझाता मन को भी आह्लादित करता है। दूसरे देसी शरबतों से यह अलग इसलिए है, क्योंकि यह पौष्टिक भी है। वहीं, होली में मौसम बदलने की सार्वजनिक घोषणा करता है ठंडाई।