सुप्रीम कोर्ट ने जारी की गाइडलाइंस, कहा- जेल का नाम ‘सुधार गृह’ रखना ही काफी नहीं

नई दिल्ली. जेलों में कैदियों की हालत सुधारने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सभी हाईकोर्ट और राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस 2012 के बाद जेलों में हुई अस्वाभाविक मौतों पर स्वत: संज्ञान लेकर पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिलवाएं। साथ ही राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि कैदियों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराएं। जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा कि जेल का नाम बदलकर ‘सुधार गृह’ करने से बात नहीं बनेगी। जेलों के हालात सुधारने के लिए पर्याप्त काम करने की जरूरत है। 13 जून, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी ने तत्कालीन चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कहा था कि जेलों में कैदियों के हालात परेशान करने वाले हैं। उन्होंने पत्र में 1382 कैदियों के साथ बातचीत का हवाला दिया था। कोर्ट ने इस पत्र को जनहित याचिका में बदलकर सुनवाई शुरू की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने जारी की गाइडलाइंस, कहा- जेल का नाम ‘सुधार गृह’ रखना ही काफी नहीं

सुप्रीम कोर्ट के 11 दिशा-निर्देश

1. 2012 से 2015 के बीच जेलों में कैदियों की अस्वाभाविक मौतों संबंधी एनसीआरबी के आंकड़ों पर सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस स्वत: संज्ञान लें। पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा दिलवाने की व्यवस्था करें।
2. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों को केंद्र सरकार 31 अक्टूबर तक सभी जेलों में पहुंचाए। सभी जेलों में मॉडल प्रिजन मैनुअल लागू करवाएं। जेलों में आत्महत्या और अस्वाभाविक मौतें रोकने के लिए मानवाधिकार आयोग की स्ट्रेटजी, नेलसन मंडेला नियम और गाइडलाइंस लागू की जाएं।
3. गृह मंत्रालय एनसीआरबी को आदेश दे कि डेटा में स्वाभाविक और अस्वाभाविक मौत का अंतर स्पष्ट करे। यह काम 31 अक्टूबर तक पूरा हो जाए।
4. राज्य सरकारें जेलों में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य पुलिस और ब्यूरो आॅफ पुुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ मिलकर जेल स्टाफ को कैदियों के प्रति संवेदनशील बनाएं।
5. जेलों में विशेष काउंसलर होने चाहिए। वह मानसिक परेशानी से गुजर रहे कैदियों को समझाएं। ऐसे कैदी हिंसक हो सकते हैं और उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति भी हो सकती है।

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6. कैदियों की परिजनों से मुलाकात को बढ़ावा दें। मुलाकात का समय बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। परिजनों से बात करवाने के लिए फोन और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की संभावना पर भी विचार करना चाहिए।
7. हर हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस अपने क्षेत्र की जेलों में कैदियों की दुर्दशा पर जांच कराए और सुधार संबंधी निर्देश दे।
8. स्वास्थ्य सुविधाएं कैदियों का अधिकार है। जेलों में अस्वाभाविक मौत रोकने के लिए जेल में स्वास्थ सेवाएं सुधारना जरूरी है। कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और दिल्ली की जेलों में सुविधाएं निम्न दर्जे की मिलीं। यह अस्वाभाविक मौत का एक प्रमुख कारण है। सभी राज्य सरकार जेलों में सर्वे करवाकर कैदियों को मिलने वाली सहायता का जायजा लें और खामियां दूर करें।
9. कैदियों की स्थिति सुधारने के लिए एक बोर्ड बनाएं। इसमें समाज के प्रबुद्ध लोगों को शामिल करें, जो मॉडल जेल मैनुअल लागू कराए और
कैदियों के सुधार में सहयोग करें। राज्य सरकारें इस काम को 30 नवंबर तक पूरा कर लें।
10.सरकार “ओपन जेल’ की व्यवस्था पर विचार करे। हिमाचलप्रदेश की शिमला जेल और दिल्ली में यह प्रयोग कामयाब रहा है।
11. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय जेजे एक्ट 2015 की सिफारिशें लागू करने के लिए सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर चर्चा करें कि ऐसी घटनाएं कैसे रोकी जा सकता हैं। यह कार्य 31 दिसंबर 2017 तक पूरा कर लिया जाए।

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