हर चीज फ्री की अच्छी लगती जब बात फ्री सेक्स की आई तो…

अब वो तमाम मौके याद करो जब आपके सामने ‘फ्री’ नाम का डेढ़ अक्षर का शब्द आया, और आप खुद को रोक नहीं पाए. भले बाद में दिमाग की बिजुली चली जाए. भले खंभा पकड़ के, बुक्का फाड़ के रोना पड़े. भले जिंदगी सोशल मीडिया पर गरियाते गुजर जाए. चाहे वो फ्री वाई फाई और फ्री बिजली पानी पाने के लालच में दिया गया वोट हो या एकाउंट में घर बैठे लाखों आने का लालच.

मेरा पहली बार पब्लिकली करम काटा था ‘फ्री इंडिया कॉन्सेप्ट’ नाम की एक कंपनी ने. जो एक कथित मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनी थी. इसमें पैसे लेकर लोगों को अपने नीचे A,B,C बनाने होते थे. उस कंपनी में पैसा लगाना मेरे जीवन की बड़ी उपलब्धि थी. उसके बाद मेरे फिफ्टी परसेंट रिश्तेदार खत्म हो गए. मेरे भरोसे उन्होंने उसमें पैसा लगाया, जो डूब गया. सोचो मां बाप कितनी मुश्किल से अपनी दोस्तियों को रिश्तेदारी में बदलते हैं. उन रिश्तेदारियों को दुश्मनी में बदलने का काम इस कंपनी ने किया. मेरा तबसे ‘फ्री’ से छत्तिस का आंकड़ा है.

अभी तक वो सारे ऐड याद हैं. एक के साथ एक फ्री, साबुन के साथ शैंपू फ्री, जूते के साथ डोरी फ्री, इंगलिश स्पीकिंग कोर्स के साथ पर्सनैलिटी डेवलपमेंट फ्री. वैष्णो देवी की यात्रा के साथ पुरी दर्शन फ्री, मैगी के साथ मसाला फ्री, पान मसाले के साथ तंबाकू फ्री. इस तरह के फ्री में डूबते उतराते रहे हैं हम लोग. जिंदगी भर.

बात फ्री सेक्स की आई तो बवाल हो गया
ऊपर वाली कैटेगरी में सुकून से जी रहे थे हम लोग. हमारी सर्दी, गर्मी और बरसात की सीजनल सेल एकदम जियरा उघाड़ चल रही थीं. अचानक एक हंगामा तारी हो गया.

कविता कृष्णन नाम की एक्टिविस्ट और ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन एसोसिएशन की सेक्रेट्री ने पलीते में अगरबत्ती छुआ दी. ‘फ्री सेक्स’ की बात करके. आग लग गई. किसी उजबक ने पूछ दिया “फिर तो तुम्हारी मम्मी ने भी किया होगा फ्री सेक्स?” जवाब कविता की मम्मी ने दिया. कि हां मैंने भी किया है. सबको फ्री सेक्स ही करना चाहिए.

जब से ये पोस्ट फेसबुक पर आई है, हर रोज नई तरह की बहस और कुंठा सामने आ रही है. सबको खयाल है संस्कृति की रक्षा का. और उसकी रक्षा के लिए मां बहन की गाली देना बहुत जरूरी हो जाता है. ये अनिवार्य आवश्यकता है.

एक वीर्यवान पुरुष ने उनको न्योता दिया “कविता जी, फ्री सेक्स का प्रदर्शन हम दोनों इण्डिया गेट पर करें तो कैसा रहेगा?”

कायदे से इस पोस्ट के बाद दिल्ली पुलिस का फर्ज बनता है कि उस आदमी को अरेस्ट किया जाए. क्योंकि वो पोटेंसियल अपराधी है. सार्वजनिक जगह पर सेक्स करना भारत के कानून में अपराध है. और पब्लिक प्लेस पर ऐसा करने की मंशा जताना भी. अगर कोई फेसबुक पर पोस्ट कर दे कि वह दो दिन बाद लाल किले में विस्फोट कर देगा तो पुलिस उसे तत्काल अरेस्ट कर लेगी. और उसके ‘शुद्धिकरण’ के बाद छोड़ भी देगी कि ‘अब जाव, कुछ दिन हल्दी मट्ठा पियो.’

खैर, पुलिस, साइबर सेल वगैरह शिकायत के बाद भी एक्शन कहां ले पाते हैं. उनके ऊपर इत्ता वर्कलोड है. तो पुलिस की जिम्मेदारी पर उंगली मत उठाओ. ये पता करो कि ये कौन सा वाला ‘फ्री’ है.

इनको शायद गलतफहमी हुई कि ये फ्री ‘25% एक्स्ट्रा’ वाला फ्री है. यानी मार्केट में फ्री सेक्स बट रहा है. ऐसा लगा जैसे कॉलगर्ल ने अपने घर के बाहर ‘फ्री’ का बोर्ड लगा दिया. लूट लो, सब बाप का माल है. और फिर अपनी उस बेइज्जती करने, नीचा दिखाने वाली ‘शालीन धमकी,’ जो इतनी महीन थी कि पकड़ में न आए, उसे तर्कों से डिफेंड किया.

फर्क क्या है दोनों फ्री में
सस्ते में कहें तो ये “साबुन के साथ शैंपू फ्री” वाला फ्री नहीं है. ये है “डैंड्रफ फ्री शैंपू” वाला फ्री. माने डैंड्रफ से आजादी. फ्रीडम. सबको अपना सेक्स पार्टनर चुनने की आजादी. अपनी सेक्स पोजीशन चुनने की आजादी. नापसंद आदमी चाहे वो पति ही हो, उससे सेक्स के लिए न कहने की आजादी. जो अभी तक हमारे समाज में औरत को प्राप्त नहीं है. अगर आप दांत चियार के ये कहते हैं कि “अरे कहां साब, अब तो सब अपने मन की हैं.” तो ये वही डायलॉग है कि “कहां रह गया है जातिवाद?” और फिर भी दलितों के मंदिर में घुसने पर उसकी शुद्धि की जाती है. उनको अपनी शादी में घोड़ी नहीं चढ़ने दिया जाता. अभी बहुत लड़ाई बाकी है दोस्त. और हां, इसका मतलब किसी को पब्लिक प्लेस में बुलाकर सेक्स की आजादी नहीं है. उसके खिलाफ कानून है. भविष्य में ऐसा हो जाए वो अलग बात है.

देखो साब सीधा फंडा है. जानवर को भी आजादी है अपना सेक्स पार्टनर चुनने की. मुर्गी सबसे हैंडसम मुर्गा चुनती है. मोर को अपने पार्टनर से इजाजत लेनी पड़ती है, ढिनचक नाचना पड़ता है. सांड भी बाकी सांडों को भगाकर अपनी योग्यता सिद्ध करता है. ये नहीं कि सांस का मरीज है, बाकी सांड उससे भाई बंदी में कह दें कि “भाई तू ही कर ले. तेरा टाइम नजदीक है. हमारा क्या है कहीं और देखेंगे.”

ऐसा सिर्फ हमारे समाज में होता है. कि 55 साल का बूढ़ा जबरदस्ती या किसी लालच में 20 साल की लड़की के मत्थे मढ़ दिया जाता है. 20 बिसुवा के बांभन हैं लड़की वाले, उनको अपने से ऊंचे कुल का लड़का चाहिए. भले वो लड़का लड़की को फूटी आंख न सुहाए. दन्न से ब्याह करा दिया गला पकड़कर. और दूल्हेराजा भले चरसी, लड़कीबाज और हांफ की बीमारी से ग्रस्त हों, उसकी हर इच्छा सिर माथे रखनी है. भाई वह परमेश्वर है. जितनी बार चाहे, जैसे चाहे वह सब कर सकता है. बीवी का कोई हक नहीं. वो कभी नहीं कह सकती कि “साले तेरे मुंह से बास आ रही है, नहीं करना तेरे साथ.”

एक समस्या हमारे समाज के साथ ये भी है कि यहां सेक्स एजूकेशन देने पर बात हो रही है. वो भी बच्चों को. वो भी बड़े सीमित स्तर पर. लेकिन इन बूढ़ों को भी तो सेक्स एजूकेशन की जरूरत है. ये संस्कृति की रक्षा करना चाहते हैं. दूसरी तरफ इंडिया गेट पर सेक्स का न्योता देते हैं. इनको घर के बच्चे समझाएं कि “दादा, संस्कृति सहमति से सेक्स पर नहीं, पब्लिक प्लेस पर सेक्स के बुलावे से खराब होगी.”

हां, नए बदलते समाज में स्त्री का ‘फ्री’ होना अखरता तो है ही. लेकिन कब तक? बदलाव शुरू हो चुका है यार, हजम करने की कोशिश करो. मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं.

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